मूंगफली का बीज उत्पादन      Publish Date : 23/02/2025

                                मूंगफली का बीज उत्पादन

                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

‘‘मूंगपफली (ऐराकिस हायपोजिया) एक प्रमुख तिलहनी फसल है। यह वनस्पति प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है। इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में 1.5 गुना, अंडों से 2.5 गुना एवं फलों से 8 गुना अधिक होती है। इसमें 50 प्रतिशत वसा होता है। प्रकृति ने इसे भरपूर मात्रा में विभिन्न पोषक तत्वों से सजाया-संवारा है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने का काम करती है।

                                                             

विश्व में चीन के बाद भारत, मूंगपफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और यह प्रतिवर्ष लगभग 10.21 मिलियन टन मूंगपफली का उत्पादन करता है। देश में मुख्यतः गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तेलंगाना तथा महाराष्ट्र आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है। इन राज्यों का मूंगपफली उत्पादन में लगभग 90 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान है। राजस्थान में मूंगपफली 7.39 लाख हैक्टर में बोयी जाती है और यहां प्रतिवर्ष लगभग 16.19 लाख टन मूंगपफली का उत्पादन होता है। राज्य में मुख्य रूप से बीकानेर, जोधपुर, चुरु, जैसलमेर, जयपुर, सीकर, चितौड़गढ़ और उदयपुर आदि जिलों में मूंगपफली की खेती की जाती है।

मूंगपफली का महत्वः

मूंगपफली में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। इसे भारत में गरीबों का बादाम भी कहा जाता है। यह देश में वनस्पति तेल की कमी को पूरा करने में एक मूंगपफली एक अहम भूमिका निभाती है। इसके दानों में 48-50 प्रतिशत तेल तथा 28-30 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसके अलावा इसमें खनिज पदार्थ (जैसे-पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैंग्नीज, जिंक तथा आयरन) तथा विटामिन ‘के’, ‘ई’ और बी6 भी भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।

मृदा का चयनः

                                                        

मूंगपफली के बीजोत्पादन के लिए ऐसी मृदा का चयन करें, जिसमें पिछले दो वर्षों से मूंगपफली की किसी किस्म की खेती नहीं की गई हो।

पृथक्करण दूरीः खेत के चारों तरफ 3 मीटर की दूरी पर मूंगपफली की फसल नहीं बोई जानी चाहिए।

बुआई का समय एवं बीज दरः

 मूंगपफली की बुआई का उपयुक्त समय जून का प्रथम पखवाड़ा है। मध्यम गुली वाली झुमका किस्मों का 100 कि.ग्रा. तथा फैलने व अर्द्व-विस्तारी किस्मों का 80 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी झुमका किस्मों के लिए 30 सें.मी. तथा फैलने व अर्द्व-विस्तारी किस्मों के लिए 45 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए। उभरी क्यारियां बनाकर बुआई करने पर बीज की उपज एवं गुणवत्ता में वृद्वि होती है।

फसल संरक्षण व्याधि प्रबंधनः

जड़ गलन रोगः इस रोग की प्रभावी रोकथाम के लिए कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत एवं थीरम 37.5 प्रतिशत (वीटावेक्स पावर) का 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।

विषाणु गुच्छा रोगः रोग ग्रसित क्षेत्र में बाजरे की बुआई 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से करें व 15 दिनों बाद बाजरे को पलटकर मूंगपफली की बुआई करें। इसके अलावा, बुआई के समय ब्लाइटॉक्स 50 प्रतिशत डस्ट को 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से डालने पर रोग कम लगता है।

कीट प्रबंधनः

                                                               

सफेद लटः खड़ी फसल में सफेद लट का नियंत्रण करना भी आवश्यक है। इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 300 मिली लीटर या क्यूनालोपफॉस 25 ई.सी. 4 लीटर प्रति हैक्टर की दर से सूखी बजरी या मिट्टी में मिलाकर पौधों की जड़ों के पास डालकर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

दीमकः खड़ी फसल में इसका प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरोपायरीपफॉस 20 ई.सी. 4 लीटर प्रति हैक्टर की दर से सिंचाई के पानी के साथ दें।

बीजोपचारः कॉलर रॉट रोग से बचाव के लिए बुआई करने से पहले कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत एवं थीरम 37.5 प्रतिशत (वीटावेक्स पॉवर) 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजों को उपचारित करें। सफेद लट की रोकथाम के लिए बीजों को 6.5 मि.ली. इमिडाक्लोप्रिड 600 एफ. एस. प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचारित करके बोयें।

उर्वरक प्रबंधनः मूंगपफली के खेत में प्रति हैक्टर की दर से 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन तथा 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस का बुआई के समय प्रयोग करें। सिंचित क्षेत्रों में छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों के लिए 250 कि.ग्रा. तथा मोटे दाने वाली किस्मों के लिए 400 कि.ग्रा. जिप्सम प्रति हैक्टर की दर से (तीन वर्ष में एक बार) बुआई से एक-दो सप्ताह पूर्व भूमि में मिलाकर सिंचाई करें। बीज उत्पादन हेतु उपरोक्त के अतिरिक्त बुआई पूर्व 7.5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट (जिंक की कमी वाली मृदाओं में) तथा 25 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से मिट्टी में मिला दें। इसके बाद 30 एवं 60 दिनों की फसलावस्था पर 2 प्रतिशत यूरिया दें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।