चना की प्रति बीघा अधिकतम उपज देने वाली किस्में      Publish Date : 12/10/2024

           चना की प्रति बीघा अधिकतम उपज देने वाली किस्में

                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जो किसान भाई आने वाले सीजन में चना की फसल लगाने के बार में मन बना रहे है तो, ऐसे ऐसे किसान भाईयों को हमारे कृषि विशेषज्ञ, कृषि वैज्ञानिक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मोदीपुरम,मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर जानकारी दे रहें हैं चना की नई वैरायटीज के सम्बन्ध में-

                                                          

1. चना की फूले विक्रांत किस्म।

2. चना पूसा मानव (BGM–20211) किस्म।

3. चना की आर. वी. जी. 204 (RVSSG 8102) किस्म।

4. चना की जॉकी - 92 - 18 किस्म।

5. चना काबुली की पी. के. वी. -2 (काक-2) किस्म।

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चना जो भारत की सबसे महत्वपूर्ण और परम्परागत दलहनी फसल है, चने को दालों का राजा भी कहा जाता है.। भारत में मुख्य रूप से चने की खेती से उत्त्तरप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार आदि राज्यों में की जाती है। जबकि, सबसे अधिक मध्यप्रदेशराज्य में चने की खेती की जाती है।

चना एक शुष्क एवं ठंडी जलवायु की फसल है जिसे रबी मौसम में उगाया जाता है। सोयाबीन फसल की कटाई कर लेने के बाद नवंबर/दिसंबर यानी रबी सीजन में चने की बुवाई शुरू कर दी जाती है।

वर्तमान समय में देश का लगभग प्रत्येक किसान चाहता है कि, वह अपनी लगाई गई फसल से ज्यादा से ज्यादा उपज ले सकें। ऐसे में हम किसान भाईयों को बता दे कि, चने के अच्छे उत्पादन के लिए बेशक उन्हें बीजाई हेतु एक अच्छी किस्म ळतंउ टंतपमजपमे का चयन करना होता है।

ऐसे में कई अधिकाश किसान भाईयों की क्वेरी यह रहती है, कि वह चने की कौन सी किस्म का बीज लें, जिससे उन्हें इसकी अधिक से अधिक उपज मिल सके? चने की सबसे अच्छी और अधिक पैदावार देने वाली किस्म कौन सी है? आज हम अपने इस लेख में किसान भाईयों के इन्हीं प्रश्नों के उत्तर डिटेल में देंगे। अतः किसाना भाईयों से अनुरोध है कि वह चने की टॉप किस्मों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस आर्टिकल को पूरे ध्यान से और अंत तक पढ़ें।

काबुली चने की पी. के. वी.-2 (काक-2) किस्म

                                                                 

काबुली चने की यह किस्म पंजाबराव कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा वर्ष 2001 में माह अक्टूबर / नवंबर रबी सीजन में बुआई करने हेतु जारी की गई है।

यह एक अत्यंत अर्ली किस्म है, जिसकी अवधि 91 से 113 दिन की होने से वर्षा की नमी में या मात्र एक सिंचाई देने पर भी सूखे की स्थिति में उत्तम उपज देने में सक्षम किस्म है। इस किस्म के पौधे की ऊँचाई लगभग 56 से.मी. फैलाव वाली किस्म, फूलों के रंग सफेद, इसकी फली व दाने का आकर बोल्ड होता है।

यह किस्म विल्ट रोग के लिये प्रतिरोधक होती है। अत्यंत जल्दी आने वाली किस्म होने से यह किस्म हरे चने, छोले आदि में विक्रय के लिए एक सर्वश्रेष्ठ किस्म, खाने में अत्यंत स्वादिष्ट होने के कारण इसका बाजार भाव किसानों को अच्छा मिलता है।

इस किस्म की बुआई करते समय लाईन से लाईन की दूरी 18 इंच ( 45ग10 से.मी.) रखने एवं  इसकी बीज दर 110-115 किलो प्रति हेक्टेयर रखने, फर्टिलाइजर अनुशंसा छ - 40-60, च् 30 प्रति हेक्टेयर रखने, एक से दो सिंचाई देने पर अच्छी उपज मिलती है। इस किस्म ने अपनी अत्यधिक उत्पादन क्षमता व सूखा निरोधक किस्म होने का प्रदर्शन किया है। जल्दी आने के गुणों के कारण अपना एक विशिष्ट स्थान काबुली चने की खेती करने वाले किसानों के बीच में बना लिया है।

चना की किस्म फूले विक्रांत

                                                          

चने की यह फुले विक्रांत किस्म एक अत्यंत उन्नत एवं नवीनतम किस्म महात्मा फूले कृषि विश्वविद्यालय, राहुरी के द्वारा हाल ही में जारी की गई है। फूले विश्वविद्यालय से पूर्व में भी चने की अत्यंत लोकप्रिय किस्में विजय, विशाल एवं दिग्विजय आदि को जारी किया जा चुका है।

किन्तु अब यह किस्में बहुत पुरानी हो चुकी थी अतः नई परिस्थिति एवं वातावरण के अनुरूप एक नवीन किस्म जो कि विभिनन रोगों एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधकता के साथ किसानों को अधिकतम उत्पादन प्रदान करने के साथ ही उन्हें अधिकतम लाभ प्रदान कर सकें। ऐसी एक किस्म की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी।

इसी बात को ध्यान रखते हुए मध्यम एवं गहरी जमीनों के लिए 20 अक्टूबर से रबी की बीजाई हेतु बीज दर 30 कि.ग्रा. एकड़ रखने एवं 1 से 2 सिंचाई देने पर उच्च परिणाम देने वाली है यह किस्म, जो कि असिंचित स्थितियों के लिए भी उपयुक्त किस्म है।

इस किस्म का दाना आकर्षक रंग पीला- ब्राउन, आकार में मध्यम व विल्ट (उक्टा) के लिए प्रतिरोधकता वाली इस किस्म में सिंचित स्थितियों में अधिकतम उत्पादन क्षमता 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं व्यवहारिक परिस्थितियों में किसानों द्वारा इससे भी अधिक उत्पादन लेकर चने की खेती को लाभ की खेती बनाने का कार्य इस किस्म का उत्पादन लेकर किसान प्राप्त कर सकेगें। इस किस्म की अवधि 105 से 110 दिन की होती है।

चना की जॉकी - 92 - 18 किस्म

                                                          

पंजाबराव कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा वर्ष 2008 में देश के मध्य क्षेत्र हेतु रबी में बुआई करने के लिए जारी की गई इस किस्म की अवधि सिंचाई अनुसार 93 से 120 दिन की है। अतः यह एक अर्ली किस्म होने के साथ ही सूखे की स्थिति में या वर्षा में पानी की कमी में भी अच्छी उत्पादन देने में सक्षम होती है।

चने की इस किस्म के पौधे अर्ध फैलाव, दाना बोल्ड, दाने का रंग पीला, सुनहरा, पौधा अच्छे विगर वाला, पौधे की ऊँचाई 37 से.मी., फूलों की संख्या काफी अधिक, फूलों का रंग गहरा गुलाबी, फली का साईज बड़ा, 100 दानों का वजन 28.5 ग्राम तक होता है।

चने की यह किस्म जड़ सड़न एवं फ्यूजेरियम विल्ट रोग के लिये प्रतिरोधक है। इस किस्म के पौधे का तना मजबूत होने से आड़ा (लॉजिंग) पड़ने की समस्या नहीं। परिपक्वता अवधि के 15-20 दिन बाद भी शेटरिंग चने के फूटने/खिरने की समस्या नहीं आती है।

अच्छी अंकुरण क्षमता एवं फैलावदार गुणों के कारण इस चने की किस्म की बीज दर 85 से 100 किलो प्रति हेक्टेयर। लाईन से लाईन की दूरी 12″ इंच, फर्टिलाइजर अनुशंसा छ-20च्-40ज्ञ 60 रखने पर एवं अक्टूबर माह में प्रथम से दूसरे सप्ताह में बुआई करने पर आदर्श परिणाम प्रदान करती है।

व्यवहारिक परिस्थितियों में चना किसानों के द्वारा 30 क्विंटल हेक्टेयर से भी अधिक उत्पादन इस किस्म ने किसानों को देकर उनकी प्रिय किस्म के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली है।

चना पूसा मानव (BGM – 20211) किस्म

                                                     

चने की यह अत्यंत उन्नत किस्म पूसा एवं (IARI) नई दिल्ली के द्वारा हाल ही में देश के मध्य क्षेत्र के लिए जारी की गई किस्म है, जो कि म.प्र., राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और विदर्भ आदि क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई है। चने की यह एक चमत्कारी, एडवांस जनरेशन की जिनोमिक्स तकनीक से बनाई गई एक अति उन्नत किस्म है।

इस किस्म की अवधि काफी अर्ली लगभग 108 से 110 दिन, दाना पीला (गहरा भूरा), आकर्षक 100 दानों का वजन लगभग 20 ग्राम, बीज दर 25-30 किलो प्रति एकड़ है। यह किस्म विल्ट (उक्टा) के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी किस्म है। यह शुष्क, जड़ गलन, कालर रॉट एवं बोने पन के प्रति भी मध्यम रूप से प्रतिरोधी होती है।

इस किस्म की उत्पादन क्षमता परम्परागत किस्मों की अपेक्षा लगभग दोगुनी है यानि लगभग 42 क्विंटल हेक्टेयर तक का व्यवहारिक रूप से इस किस्म का उत्पादन किसानों द्वारा लिया गया है। इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा 18.92ः जो कि सर्वाधिक है।

हर घेघरे में (पाड) में 2-3 दाने अत्याधिक शाखाओं वाला फैलावदार पौधा, बेड पद्धति, चुपाई (डिबलिंग) विधि, डिप पद्धति से भी इस किस्म का उत्पादन लिया जा सकता है। चने की यह चमत्कारी किस्म चने की खेती में एक मील का पत्थर साबित होगी तथा चने की खेती को एक नई दिशा प्रदान करेगी।

चना की आर. वी. जी. 204 (RVSSG 8102) किस्म

                                                            

चने की यह अत्यंत उन्नत किस्म मैकेनिकल हार्वेस्ट हेतु ऊँची किस्म होने से हार्वेस्टर से काटने के लिए एक उपयुक्त किस्म है। चने यह किस्म राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यायल के सिहोर केन्द्र से वर्ष 2021 में जारी की गई थी।

देश के मध्य क्षेत्र मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट, बुंदेलखण्ड के लिए समय से बुआई करने के लिए अनुशंसित की गई है। चने की इस किस्म को ICCV 10 व ICCL 87322 चने की किस्मों के क्रास से विकसित किया गया है।

इस किस्म का दाना आकर्षक, मध्यम आकार, 100 दानों का वजन लगभग 24 ग्राम इस किस्म की अवधि 110 दिन, सिंचित अवस्था में रहेगी।

चने की इस किस्म को एडवांस जनरेशन की किस्म के रूप में एक बड़ा नाम किसानों के बीच मिलने वाला है क्योंकि यह अपनी रोग प्रतिरोधकता, उच्च उत्पादकता, हार्वेस्टर से काटने की सुविधा जिससे मजदूरी, समय व लागत की बचत के जैसे गुणों के लिए जानी जाती है, जो इस किस्म को बहुत जल्दी एक बड़े कृषि क्षेत्र में आच्छादित कर देंने में सक्षम हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।