पूसा डबल जीरो सरसों 33, सरसों की उन्नत किस्म Publish Date : 01/10/2024
पूसा डबल जीरो सरसों 33, सरसों की उन्नत किस्म
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा
वर्तमान समय में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा फसलों की नई किस्मों के बीज विकसित किए जा रहे हैं। जो जलवायु अनुकूल होने के साथ ही विभिन्न कीट-रोगों के लिए प्रतिरोधी होते हैं, जिसे लगाकर किसान कम लागत में अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इस क्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा सरसों की एक उन्नत किस्म “पूसा डबल जीरो सरसों 33” का विकास किया गया है। सरसों की यह किस्म सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होने के साथ ही अच्छा उत्पादन भी देती है।
पूसा डबल जीरो सरसों 33 को वर्ष 2021 में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा किसानों के लिए जारी किया गया था। सरसों की इस किस्म को देश के जोन-प्प् के लिए अनुमोदित किया गया है। जिसमें राजस्थान (उत्तरी और पश्चिमी भाग), पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश आदि शामिल है। अतः इन राज्यों के किसान पूसा डबल जीरो सरसों 33 की खेती कर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
पूसा डबल जीरो सरसों 33 की विशेषताएँ
- सरसों की यह किस्म समय से बुआई और सिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त है।
- पूसा डबल जीरो 33 किस्म लगभग 141 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
- इस किस्म से किसान औसतन 26.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त कर सकते हैं।
- वहीं इस किस्म की अधिकतम उपज क्षमता 31.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।
- पूसा डबल जीरो सरसों 33 सफेद रतुआ रोग के लिए प्रतिरोधी है, अतः ऐसे किसान जहां सफेद रतुआ रोग लगता है, वे किसान इस किस्म की खेती कर सकते हैं।
- डबल जीरो शून्य किस्म में 1.13 प्रतिशत इरूसिक एसिड, 15.2 ppm ग्लूकोसाइनोलेट्स होता है।
- इस किस्म में तेल की मात्रा लगभग 38 प्रतिशत तक होती है, वहीं इसके बीज का रंग पीला होता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।