गन्ना की किस्म कोलख 16202 के कई खास गुण      Publish Date : 16/08/2024

                      गन्ना की किस्म कोलख 16202 के कई खास गुण

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु

                                                                                    

कोलख 16202 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जिसे भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म अगेती है और लगभग 10 महीने में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 93.2 टन है और चीनी की रिकवरी 17.74 प्रतिशत है। यह सूखे और लाल सड़न के प्रति प्रतिरोधी है, इस किस्म को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है।

जलभराव क्षेत्र के लिए है गन्ने की यह किस्म

कोलख 16470 एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के लिए उपयुक्त है। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 82.5 टन है और इसमें चीनी की मात्रा 17.37 प्रतिशत है। यह किस्म जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए बेहतर है और लाल सड़न और स्मट रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। यह गन्ने के मुख्य कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है।

गन्ने की किस्म CoPb-99 बेहतर क्यों है?

                                                                      

गन्ने की CoPb-99  किस्म एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जिसे पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के गन्ना शोध केंद्र कपूरथला के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है। यह जल्दी पकने वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 90.1 टन है और चीनी की मात्रा 18.01 प्रतिशत है। यह तना छेदक और चोटी बेधक कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है और लाल सड़न रोग के प्रति भी प्रतिरोधी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अवसर पर कृषि और ग्रामीण विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया और बताया कि यह पहल भारतीय किसानों की जीवन गुणवत्ता में सुधार के लिए की गई है। इन नई किस्मों के माध्यम से भारत में फसल उत्पादन को और अधिक स्थिर और लाभकारी बनाने की दिशा में अहम कदम उठाए गए हैं।

 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।