सवाल आपके जवाब प्रो0 सेंगर के Publish Date : 11/03/2024
सवाल आपके जवाब प्रो0 सेंगर के
सवाल :- मैं आंवला लगाना चाहता हूं कृपया मुझे मार्गदर्शन प्रदान करें।
जवाब :- आमतौर पर किसी भी फल के पेड़ को लगाने के लिये सबसे उचित समय जून माह होता है। मई में खेत की तैयारी कर, जून में रोपण कर देना चाहिए और वर्षा से पौधों को अतिरिक्त सिंचाई अलग से ना करना पड़े। सिंचाई साधन उपलब्ध होने पर फरवरी-मार्च में भी आंवले को लगाया जा सकता है। इसके लिए आप निम्न उपचार करें-
पौधे से पौधे की दूरी 6 से 8 मीटर रखें।
- खेत में 1x1x1 मीटर चौड़े-लम्बे-गहरे गड्ढें तैयार करें और प्रत्येक गड्ढों में गोबर की खाद 15-20 किग्रा0 की दर से डालें।
- दीमक से बचाव के लिये 5 ग्राम क्लोरोपायरीफास प्रति गड्ढे में डालें।
- पहले वर्ष प्रति पेड़ 150 ग्राम यूरिया भी डाले।
- इसके बाद पांच वर्ष तक बढ़ते क्रम में 200, 250, 300 तथा 350 ग्राम यूरिया के साथ 450 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाकर प्रति पौधा डालते रहे।
- फलों में दरार या कालापन रोकने के लिये 6 गाम बोरेक्स प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अंतर से छिड़काव भी करें। यह छिड़काव माह सितंबर-अक्टूबर में अधिक लाभकारी होता है।
सवाल :- गेहूं में सिंचाई कब दी जाये इसकी कोई पहचान हो तो बतलायें।
जवाब :- गेहूं की फसल में सिंचाई की अवस्था पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है क्योंकि सिंचाई का असर सीधा-सीधा उत्पादन पर पड़ता है आमतौर पर निम्न लक्षणों के दिखाई देने पर सिंचाई की जानी चाहिए।
- पौधों के बाहरी लक्षण जैसे पत्तियों का मुरझाना तथा ऐठना।
- तने का झुक जाना।
- पौधों के जड़ों के आसपास की भूमि की मिट्टी हाथ में लेकर उसका गोला बनाकर हवा में उछालने पर यदि गोला बिखर जाये तो पौधों को सिंचाई की तत्काल आवश्यकता है। यदि गोला वैसे ही बना रह जाये तो सिंचाई की आवश्यकता तुरंत नहीं मानी जानी चाहिए।
- स्थानीय किस्मों तथा ऊंची किस्मों में एक सिंचाई 30-35 दिनों बाद तो विकसित किस्मों में पहली सिंचाई 21 दिनों बाद देना सीधा-सीधा उत्पादन पर असर करता है। दो सिंचाई होने पर स्थानीय किस्मों में दूसरी सिंचाई 65-70 दिनों बाद दी जानी चाहिए ।
समस्या :- गेहूं का गेरूआ रोग कब आता है बचाव के उपाय बतायें।
समाधान :- गेहूं का गेरूआ एक खतरनाक बीमारी है जिसका अपना एक इतिहास भी है। गेरूआ अमूमन तीन प्रकार का होता है। काला गेरूआ, भूरा गेरूआ तथा आंशिक क्षेत्रों में पीला गेरूआ इस बीमारी के कारण गेहूं की खेती पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है। गेरूआ पर प्रतिबंध लगाने हेतु सधन अनुसंधान किये गये और अंततः काला गेरूआ पर प्रतिबंध स्वरूप रोग रोधी जातियाँ आज कृषकों के खेतों पर है कल्याण सोना, सोनालिका से चली ये जातियों की श्रृंखला आज भी निरंतर चल रही है जी डब्ल्यू 273, मंगला, कंचन समेत कई व्याधियां आज न्रचलित हैं परिणामस्वरूप आज गेहूं की उत्पादकता चार गुनी बड़कर 2600 किलो/हे. के आसपास आ गई है। वर्तमान में केवल भूरा पत्तियों का गेरूआ प्रभावित करता है। बचाव के लिये निम्न उपाय करें।
- लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।