भिण्ड़ी की उन्नतशील खेती वैज्ञानिक विधि से      Publish Date : 27/03/2023

                                                            भिण्ड़ी की उन्नतशील खेती वैज्ञानिक विधि से

                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

    ग्रीष्म ऋतु में सेवन की जाने वाली सब्जियों में भिण्ड़ी का अद्वितीय स्थान हैं, जिसकी अगेती फसल को लेकर किसान भाई एक अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं, क्योंकि गर्मियों में भिण्ड़ी के अच्छे भाव मिल जाते हैं। भ्ण्ड़िी का उत्पत्ति स्थान भारत ही है, जहाँ पर इसे कच्चे फलों के लिए उगाया जाता है और सामान्य रूप से इसे सब्जी के रूप में पकाकर सेवन किया जाता है। पकी हुई भिण्ड़ी के काले या भूरे बीजों को भूनकर कॉफी के स्थान पर भी उपयोग किया जाता है। भिण्ड़ी के पौधों का उपयोग पपेर उद्योग में भी किया जाता है और इन पौधों का तना रेशा निकालने के काम में आता है। भिण्ड़ी का उपयोग कब्ज के रोग से राहत पाने के लिए भी किया जाता है। भिण्ड़ी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा खनिज इलवणों के अतिरिक्त विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ तथा थायमिन, राइबोफ्लेविन तथा निकोटाइनिक अम्ल भी पाया जाता है। भिण्ड़ी की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक तकनीक इस प्रकार से है-

भूमि का चयन एवं उसकी तैयारीः- भिण्ड़ी का उत्पादन समस्त पकार की मृदाओं में आसानी से किया जा सकता है, परन्तु इसके अच्छे उत्पादन के लिए अच्छे जल निकास और पानी का अच्छा शोषण करने वाली दोमट मृदा उपयुक्त रहती है। इसके लिए भूमि का पी.एच. मान 6.0 से 6.8  के मध्य भिण्ड़ी के अनुकूल होता है। खेत की दो से तीन बार जुताई कर मिट्टी का भुरभुरा बना लिया जाता है और प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगा देना उचित रहता है। यदि खेत में दीमक का प्रकोप होता हो तो अन्तिम जुताई से पूर्व इण्डोसल्फॉन नामक कीटनाशक दवा (4 प्रतिशत चूर्ण) का भुरकाव 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दस से करना चाहिए।

भिण्ड़ी की उन्नत प्रजातियाँ

                                                         

भिण्ड़ी की उत्तम पैदावार को प्राप्त करने के लिए पूसा सावनी, पूसा मखमली, पार्किन्स लाँग ग्रीनख् अर्का अनामिका तथा अर्का अभय नामक प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए। जबकि पार्किन्स लाँग ग्रीन पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अनुकूलित है।

बीज दर एवं बीजोपचार करने का तरीका

    भिण्ड़ी की गर्मी की फसल के लिए 18 से 20 कि.ग्रा. और बरसात के मौसम की फसल के लिए 10 से 12 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की बीज दर उचित होती है। गरमी की फसल की बुआई के लिए बीज की बुआई करने से पूर्व भिण्ड़ी के बीज को 24 घण्टों के लिए पानी में डुबोकर रखा जाता है। इससे अंकुरण शीघ्र एवं अच्छा होता है, चूँकि इस मौसम में वृद्वि भी सीमित ही होती है, इसलिए भिण्ड़ी के बीज को वृद्विकारक साइटोजाईम (10 प्रतिशत) से उपचारित करके बुआई करने से भिण्ड़ी का उत्पादन अधिक प्राप्त होता है।

भिण्ड़ी की बुआई का समय एवं विधि

    भिण्ड़ी की बुआई मैदानों में दो बार की जाती है जिनमें से गर्मी की फसल के लिए फरवरी-मार्च माह में तथा बरसात की फसल के जून-जुलाई के माह में की जाती है। भिण्ड़ी की बुआई पंक्ति विधि से ही करनी चाहिए। गर्मी की फसल के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 से.मी. तथा पौधें से पौधे की दूरी 15-20 से.मी, जबकि बरसात की फसल के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40-45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 25-30 से.मी. रखनी चाहिए। यदि भिण्ड़ी की फसल लगातार लेनी हो तो फसलों के बीच कम से कम तीन सप्ताह का अन्तराल अवश्य होना चाहिए।

उर्वरकों की मात्रा

    भिण्ड़ी की बुआई के दो सप्ताह पूर्व 12,000 कि.ग्रा. अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए। इसक अतिरिक्त 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.गा. फॉस्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधाी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई करने से पूर्व तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा का प्रयोग बुआई के एक माह के बाद करना चाहिए।

सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई

    यदि भूमि नमी पर्याप्त स्तर पर उपलब्ध नही है तो ऐसे में बुआई से पूर्व ही एक सिंचाई कर देनी चाहिए। वहीं ग्रीष्मकालीन फसल में 8 से 10 दिन के अन्तराल पर और बरसात के मौसम में आवश्यकता के अनुसार भिण्ड़ी की फसल की सिंचाई करनी चाहिए।

खरपतवारों के नियन्त्रण हेतु भिण्ड़ी की फसल में निराई एव्र गुड़ाई करने से भिण्ड़ी की अच्छी उपज प्राप्त होती है। इसलिए पूरी फसल में 4 से 5 निराई गुड़ाई करनी चाहिए।

पौध संरक्षण

कीट नियन्त्रणः- भिण्ड़ी की फसल में मुख्य रूप से जैसिड़, प्ररोह एवं फलरोधक कीट एवं कपास की सूँड़ी आदि कीट हानि पहुँचाते हैं। इन कीटों के नियन्त्रण के लिए निम्नलिखत उपय करने चाहिए-

1.   अवरोधक प्रजातियों (जैसे जैसिड के लिए पूसा सावनी) आदि का प्रयोग करना चाहिए।

2.   कीटग्रस्त प्ररेाहों एवं तरूण फलों को कीट सहित काटकर जला देना चाहिए।

3.   इनके प्राकृतिक शत्रु कीटों जैसे लैडी बर्ड भृंग तथा क्राइसोपरला आदि का सेरक्षण करना चाहिए।

4.   यदि कीटों का प्रकोप अधिक स्तर पर हो तो कीटनाशक दवार्ठयों का प्रयोग करना ही उचित होता है। जैसे कि जैसिड़ के नियन्त्रध के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. दवा की 750 मि.ली. दवा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग निश्चित समयान्तराल पर करना चाहिए।

कपास की सून्डी के नियन्त्रण के लिए फेसीलोन 35 ई.सी. 2 से 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर तथा क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 2 से 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। 

रोग नियन्त्रणः भिण्ड़ी में पीत शिरा मैजिक विषाणु तािा चूर्णी फफूँद आदि रोग पमुख रूप से होते हैं।

पीत शिरा मैजिकः- फसल में इस रोग का प्रकोप हो जाने से पौधों की पत्तियाँ तथा फल पीले पड़ जाते हैं। इस रोग का संक्रमण वषाकालीन भिण्ड़ी पर अधिकतर होता है। यह रोग सफेद मकखी के द्वारा प्रसारित किया जाता है। इस रोग से ग्रसित पोघों को जड़ से उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा इस रोग की प्रतिरोधक किस्म पूसावनी का प्रयोग बुआई के लिए करें। इस रोग के संवाहक कीट को समाप्त करने के लिए डाइमेथोएट 0.03 प्रतिशत, मिथाइल डेमेटोन 0.025 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करने से लाभ प्राप्त होता हैं

चूर्णी फफँूदः- इस रोग का प्रकोप होने पर भिण्ड़ी के पोघों की पत्तियों के नीचे सफेद चूर्ण के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। रोग का प्रकोप अधिक हो जाने पर पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने के बाद झड़ जाती हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए डायनोकेप 48 इ।.सी. नामक फुूँदी नाशक दवा 50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी अथवा घुलनशील गन्धक का घोल 250 ग्राम दवा प्रति 100 लीटर पानी के घेल का छिड़काव करने से रोग का शमन होता है।

फसल की तुड़ाई

    फसल में फूल खिलने के 6 से 7 दिनों के बाद भिण्ड़ी की तुड़ाई करने का सबसे उचित समय माना जाता है। गरमी की भिण्ड़ी की तुड़ाई 1.5 से 2 माह के बाद तथा बरसात की भिण्ड़ी की तुड़ाई बुआई 2.5 से 3 माह के बाद करनी चाहिए। भिण्ड़ी के फलों की तुड़ाई उनकी तरूण अवस्था में ही कर लेनी चाहिए। अन्यथा पौधों की वृद्वि एवं उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

उपज

    गरमी की भिण्ड़ी की फसल से 50 कुन्तल तथा बरसात की भिण्ड़ी की फसल से 100 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त की जा सकती है। जबकि इसी औसत उपज 70 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है।

बीजोत्पादन

    जिस समय पौधों पर लगे फल पूर्ण रूप से सूख जाते हैं, अर्थात फलों के अन्दर जब बीज पूर्ण रूप से पककर तैयार हो जाते हैं तो उन्हें तोड़कर अलग रख लिया जाता है। अगले वर्ष की फसल लेने के लिए फलों से बीज को निकालकर उसकी खेतों में बुआई कर दी जाती है। भिण्ड़ी के बीजदर 12 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उचित रहती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।