एक प्राकृतिक कीटनाशी है कॉफी Publish Date : 22/03/2023
एक प्राकृतिक कीटनाशी है कॉफी
ब्राजील के वैज्ञानिकों के द्वारा की गई एक खोज के अनुसार बगैर भुने कॉफी के दानें ‘प्राकृतिक कीटनाशी’ के समान कार्य करने में सक्षम हैं। कॉफी के बीज में पाये जाने वाले पदार्थ लंगुमिन में प्रोटीन 45 प्रतिशत तक होता है, जो पौधों को कीटों से बचा सकता है। विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से सिद् हुआ है कि इस प्रोटीन की सूक्ष्म मात्रा भी कीटो का 50 प्रतिशत तक सफाया करने में पूर्ण रूप से सक्षम है।
ब्राजील की यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्पिनास के वैाानिक पाउलो मज्जीफेरा के नेतृत्व वाली टीम के द्वारा कॉफी की दो प्रजातियों, कॉफिया अरेबिका तथा कॉफिया रेसीमोसा की प्रोटीन का प्रयोग काऊपी वीविल के लार्वा को नष्ट करने में सफलतापूर्वक किया गया, और इससे बच जाने वाले लार्वा का वजन भी काफी कम हो गया।
इस खोज के बाद अब वैज्ञानिक अब इस सम्भावना पर विचार कर रहे हैं कि इस पौधे के जीन को गेंहूँ एवं मक्के जैसी महत्वपूर्ण फसलों में समायोजित किया जाए जिससे इन फसलों के पौधे अपनी रक्षा स्वयं ही कर पाएं। इस प्रोटीन का सेवन करना मानव के लिए भी पूरी तरह से हानिरहित है और माइक्रोबियल कल्चर के माध्यम से इस प्रोटीन का भारी मात्रा में उत्पादन करना भी सम्भव होगा।
बादाम मरीजों की शुगर कम करने में है सहायक
मधुमेह के मुहाने पर पहुंच रहे प्री डायबिटीज लोगों की संख्या तेजी से देश में बढ़ती जा रही है, हाल ही में किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि भोजन से 30 मिनट पूर्व 20 ग्राम बादाम के नियमित सेवन से वे मधुमेह रोगी होने से बच सकते हैं मध्य में विशेषज्ञों ने शोध के आधार पर यूरोपीयन जर्नल आफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन के ताजा अंक में शोध के परिणाम प्रकाशित किए हैं उस अध्ययन के अनुसार डायबिटिक लोगों पर किया गया है जो दो समूहों में बांटकर भोजन से 30 मिनट पहले 20 ग्राम बादाम उनको खिलाई गए फिर साथ 7 दिन के अंतराल पर बदला गया यह पाया गया कि 12 हफ्ते में 23.3 प्रति डायबिटिक से सामान्य ब्लड शुगर की स्थिति में आ गए इस में प्रकाशित शोध परिणाम के अनुसार शुगर से पीड़ित लोगों को खाने से पहले यदि बादाम को शामिल कर लिया जाए तो वह अपनी शुगर को नियंत्रित कर सकते हैं
थैले वाली लेडी’ हिना को मिला
‘सुषमा स्वराज अवार्ड
मेरठ। भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय महिला मोर्चा द्वारा देश की प्रखर वक्ता, नारी शक्ति की प्रतीक, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. सुषमा स्वराज की स्मृति में ‘सुषमा स्वराज अवार्ड का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम 10 सशक्त सामाजिक महिलाओं को अवार्ड प्रदान किया गया। जिला भाजपा महिला मोर्चा द्वारा सरधना में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रदेश मंत्री रुचि गर्ग रहीं। यहां पूर्व विधायक संगीत सोम की ब्लॉक प्रमुख पत्नी प्रीति सोम, जिलाध्यक्ष डॉ. मंजू सेठी व कार्यक्रम संयोजक पूनम राणा ने महिलाओं को सम्मानित किया। ‘कांति देवी फाउंडेशन’ की राष्ट्रीय अध्यक्ष, जिले व प्रदेश में प्लास्टिक मुक्त भारत का अभियान चलाने वाली ‘थैले वाली लेडी’ से मशहूर एडवोकेट हिना रस्तोगी को ‘सुषमा स्वराज अवार्ड’ प्रदान किया गया।
प्राकृतिक हैं मोटे अनाजों की खेती
पूर्व काल में हमारे पूर्वज पूर्ण रूप से प्राकृतिक खेती ही किया करते थे जिसके अन्तर्गत मोटे अनाजों की भरपूर फसल हुआ करती थी और लोगों को पोष्टिक भोजन की प्राप्ति होती थी। परन्तु हरित क्रान्ति के दौर सं आरम्भ हुआ रासायनिक खेती के दौर के चलते किसानों के द्वारा मोटे अनाजों कीखेती से किनारा कर लिया गया।
अब किसान रायानिक खेती कर रहे हैं, जबकि अब सराकार का जोर मोटे अनाज की खेती पर अधिक है, ऐसा प्रतीत होता है कि अब प्राचीन खेती करने का समय वापिस आ गया है। मोटे अनाजों की खेती के प्रति किसानों को जागरूक करने के लिए अब सरकार विभिन्न योजनाएं ला रही है। किसान विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाएं, जिससे उनकी आय में इजाफा हो सकेगा।
किसान अपने परिवार और बच्चों के लिए अपने खेतों में विभिन्न प्रकार के फलदार तथा छायादार वृक्षों का रोपण भी करें, इससे उन्हें स्वादिष्ट एवं पोष्टिक फल भी खाने को मिलेंगे।
यह फैंसला किसान स्वयं करे कि उन्हें अपनी उपलब्ध जमीन के किस हिस्से में कौन सी फसल उगानी है जिससे कि उन्हें अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकेगा।
गो-आधारित कृषि से किसानों की आय हुई दोगुनी
जैविक कृषि ‘‘कृषक संगम’’ में तमिलनाडु से आए किसान राम स्वामी ने बताया कि वह अपनी 25 एकड़ भूमि पर पिछले दस वर्षों से गो-आधारित खेती करते चले आ रहे हैं, जिससे उनकी आय अब रायासायनिक खेती की अपेक्षा दोगुनी हो चुकी है।
इसी कार्यक्रम में कर्नाटक से आए एक किसान रमेश राजू ने बताया कि वह अपनी 20 एकड़ भूमि में विभिन्न प्रकार की खेती करते हैं, जो पूरी तरह से गो-आधारित एवं जैविक खेती ही होती है।
राजू बताया कि वह पिछले 20 वर्षों से नारियल, सुपारी, कॉफी, सन्तरा और आम सहित करीब तीन दर्जन फलों की खेती करते चले आ रहे हैं। वह अपनी इस जैविक खेती के माध्यम से ही लगभग 50 मजदूरों को प्रतिदिन रोजगार भी दे रहे हैं।
कार्यक्रम में ओडिशा से आए एक किसान ज्ञानेन्द्र नायक बताते हैं कि वह वर्ष 2002 से धान की खेती कर रहे हैं और अभी तक वह लगभग 10 किस्म के धान की पैदावार अपने खेतों में कर चुके हैं। जबकि पिछले 20 वर्षों से उन्होंने अपने खेतों में पेस्टीसाइड्स का प्रयोग नही किया है, जिससे उनकी भूमि की उर्वरता बढ़ने के साथ ही उनकी आय में भी पर्याप्त वृद्वि हुई है।
कार्यक्रम में आन्ध्र प्रदेश से आए किसान रामकृष्ण मूर्ति कहते हैं कि उनके यहाँ वर्षा बहुत कम होती है और वहां पर वृक्षों की संख्या भी बहुत कम है।
लेखकः डा0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और जैव प्रोद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष हैं।