फसल अवशेष से खाद      Publish Date : 21/08/2023

                                                                    फसल अवशेष से खाद

वेस्ट (कचरा) पूसा डीकम्पोजर

                                                                

    राष्ट्रीय जैविक केन्द्र के द्वारा वर्ष 2015 में ‘पूसा डिकम्पोजर’ की खोज की गई थी। इस यंत्र का प्रयोग कम समय में जैविक कचरे से खाद बनाने के लिए किया जाता है, इसके साथ ही यह मृदा के स्वास्थ्य करने में भी बड़े पैमाने पर काम करता है। इसके साथ ही इस यंत्र का उपयोग पौधों में उत्पन्न होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

    पूसा डीकम्पोजर को देशी गाय के गोबर से सूक्ष्म जैविक जीवाणुओं को निकाल कर बनाया गया है। वेस्ट डीकम्पोजर की 20 मात्रा की पैक्ड बोतल को बाजार में 20 रूपये की बेची जा रही है। पूसा डीकम्पोजर का निर्माण राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद के द्वारा किया गया है, जिसे आईसीएआर के द्वारा भी सत्यापित किया गया है।

कचरे से वेस्ट डीकम्पोजर को तैयार करने की विधि

                                                         

  • एक ड्रम में 200 लीटर पानी लेकर उसमें 2 किलोग्राम गुड़ को उसमें मिलाएं।
  • इसके बाद एक बोतल वेस्ट डीकम्पोजर को इस गुड़ के तैयार घोल में मिलाएं।
  • ड्रम में वेस्ट डीकम्पोजर को अच्छी तरह से मिक्स करने के लिए इसे एक लकड़ी के डण्डे से चलाए।
  • अब घोल के इस ड्रम को वायुरूद्व बनाकर ढंक दें और प्रतिदिन 1 या 2 बार इसे डण्ड़े की सहायता से चलाते रहें।
  • लगभग पाँच दिनों के अन्दर इस ड्रम का घोल क्रीमी कलर का हो जायेगा अर्थात ए बोतल से 200 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर का घोल तैयार हो जाता है।

विशेषः किसान भाई उपरोक्त विधि से 200 लीटर तैयार वेस्ट डीकम्पोजर घोल से 20 लीटर घोल लेकर 2 किलोग्राम गुड़ और 200 लीटर पानी के साथ दाबारा से एक ड्रम वेस्ट डीकम्पोजर का घोल तैयार कर सकते हैं।

                                                 देवदार के वृक्षों की ऊँचाई में 22 मीटर तक की कमी आई

                                               

    मौसम में होने वाले परिवर्तनों के चलते अब हिमालय की तस्वीरें भी निरंतर बदल रही हैं। हिमालय पर्वत पर स्थित ग्लेशियरों को बुरी तरह से प्रभावित करने के बाद अब बदलते मौसम की मार हिमालय पर स्थित पेड़-पौधों पर भी पड़ रही है।

    हिमालयी क्षेत्र में अध्ययनरत वैज्ञानिकों के विभिन्न शोधों के माध्यम से यह बात सामने आई है कि मौसम के कारण पिछले 120 वर्ष के समय में धार्मिक, व्यापारिक औषधीय रूप से महत्वपूर्ण देवदार के वृक्षों को भी बरी तरह से प्रभावित किया है।

                                               

    मौसम में होने वाले परिवर्तन के कारण कभी अत्याधिक वर्षा और बर्फबारी तो कभी अत्याधिक गर्मी के चलते इन वृक्षों का पोषण भी प्रभावित हो रहा है। इसके कारण देवदार के वृक्षों की लम्बाई में 37 से लेकर 47 प्रतिशत तक कमी दर्ज की जा रही है।

                                                                

    यह प्रभाव 2,500 मीटर से अधिक ऊँचाई से ऊपर उगने वाले देवदार के वृक्षों पर अधिक पाया गया है, जबकि नीचे वाले क्षेत्रों पर अध्ययन करना अभी बाकी है। उत्तराखण्ड़, हिमालय और जम्मु-कश्मीर में भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नही है। गोविन्द वल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिकों ने तीन राज्यों में स्थित 17 स्थानों का अध्ययन करने के बाद यह चिंता व्यक्त की गई है।

                                                    ग्लेडियोलस पुष्पों की प्रर्शनी और इसका फसल प्रबधन

                                                  

    जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ग्लेडियोलस पुष्प, सभी प्रकार के पुष्पों में एक विशेष स्थान रखता है। ग्लेडियोलस पुष्प की व्यवसायिक खेती के माध्यम से अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि फूलों की खेती और ग्लेडियोलस पुष्प के माध्यम से बनने वाले विभिन्न उत्पादों को बना एवं उनका विपणन कर आज का युवा नौकरी की राह को छोड़कर एक सफल उद्यमी बनकर अधिक लोगों के लिए नौकरी प्रदाता बन सकते हैं। इस दौरान ग्लेडियोलस पुष्प का क्षेत्रफल, उत्पादन एवं विपणन कर अधिक लाभ उठानें पर भी जोर दिया गया।

                                                        

    पुष्पों में लगने वाले प्रमुख रोग एवं ग्लेडियोलस पुष्प के प्रमुख रोग एवं उनका एकीकृत व्याधि प्रबन्धन के बारे में जानकारी भी प्रदान की। ग्लेडियोलस के कन्द गलन रोग एवं बोट्राइटिस ब्लाईट का नियन्त्रण करने के लिए केप्टान 2 ग्राम, बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से कन्द उपचार एवं छिड़काव 7 दिन के अन्तराल पर करके इन पर नियन्त्रण किया जा सकता है।