औषधीय पौधों की तीन किस्मों का विकास      Publish Date : 01/06/2025

        औषधीय पौधों की तीन किस्मों का विकास

देश में किसानों की आय के साथ ही औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर के द्वारा अश्वगंधा, ईसबगोल और असलिया की नई किस्मों का विकास किया गया है। इन किस्मों में प्रताप अश्वगंधा-1, प्रताप ईसबगोल-1 तथा प्रताप असलिया (आलिया)-1 शामिल हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने इन तीनों किस्मों को एक साथ ही अधिसूचित किया है। गौरतलब है कि देश में किसी भी कृषि विश्वविद्यालय में अनुसंधान परियोजना का यह पहला अवसर है कि जब एक साथ तीन किस्मों को एक साथ अधिसूचित किया गया हो।

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ0 अरविन्द वर्मा ने बताया कि एक लम्बे अनुसंधान के बाद इन किस्मों के अधिसूचित होने का लाभ किसानों के प्राप्त होगा। डॉ0 वर्मा ने बताया कि नई दिल्ली में आईसीएआर उप-महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) डॉ0 संजय कुमार सिंह की अध्यक्षता में बागवानी फसल मानकों, अधिसूचना और किस्मों के विमोचन सम्बन्धी केन्द्रीय उप-समिति की 32वीं बैठक में उक्त तीनों किस्मों को अधसूचित किया गया है। ज्ञात हो कि इन किस्मों का विकास अखिल भारतीय समन्वित औषधीय पादप अनुसंधान परियोजना के अन्तर्गत किया गया है। इन किस्मों के प्रजनक डॉ0 अमित दाधीच हैं।

विमोचित की गई किस्मों का विवरण-

प्रताप ईसबगोल-1:

ईसबगोल की यह किस्म 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी औसत उपज 1207 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर है। इसके साथ ही यह किस्म ईसबगोल के प्रमुख रोगों के प्रति बहु-रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त है।

प्रताप अश्वगंधा-1:

अश्वगंधा की यह पहली किस्म है जिसे राजस्थान में विकसित करने के बाद अधिसूचित किया गया है। इस किस्म की औसत शुष्क जड़ उपज 421 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर है और यह अश्वगंधा के पुमुख रोगों के प्रति भी अपनी प्रतिरोधक क्षमता का प्रदर्शन करती है।

प्रताप असालिय (आलिया)-1:

आलिया की यह किस्म 111 दिन में पककर तैयार होने वाली इस किस्म की औसत बीज उपज 2028 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर है। ज्ञात हो कि असालिया को चन्द्रसूर भी कहते हैं। इसके अलावा यह किस्म भी असालिया में लगने वाले प्रमुख रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता से युक्त है।