मानकों के अनुरूप बीज एवं उर्वरकों का उपयोग करे किसान      Publish Date : 14/08/2023

                                          मानकों के अनुरूप बीज एवं उर्वरकों का उपयोग करे किसान

                                            

    भारत मानक ब्यूरो एवं सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशालय की ओर से आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान क्षेत्र के किसानों से अपील की गई की वे मानकों के अनुरूप ही उर्वरकों एवं बीज आदि की खरीददारी कर उसका उपयोग करें। इस कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्रों पर कार्यरत वस्तु विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया था। इस कार्यक्रम के दौरान क्वालिटी पैरामीटर्स ऑफ एग्रो इनपुट पर कार्यक्रम की अध्ययक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 के के सिंह ने की। भारत मानक ब्यूरो से जुड़े अधिकारी विक्राँत, रोहित रॉय और हरीश मीना के द्वारा भी उपयोगी जानकारियाँ प्रदान की गई। इस कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार डॉ0 पी के सिंह, डॉ0 सतेन्द्र कुमार, डॉ0 के जी यादव, डॉ0 पी के सिंह, डॉ0 एस के लोधी, डॉ0 एम के त्रिपाठी आदि भी मौजूद रहे।

                                              अपनी आय को बढ़कर आत्मनिर्भर बने महिलाएं

                                               

    सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन केन्द्र का शुभारम्भ किया गया और इसी के साथ ही पौधारोपण भी किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 के के सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय स्थित इस केन्द्र से जुड़कर कृषि क्षेत्र में रोजगार और आय को बढ़ाने के सम्बन्ध में अपेक्षित ज्ञान प्राप्त कर आत्मनिर्भर बन सकती हैं। कार्यक्रम के दोरान डॉ0 विवेक धामा ने स्वागत भाषण दिया। विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ0 रामजी सिंह के द्वारा भी केन्द्र की उपयोगिताओं को बताया गया। डॉ0 रश्मि ने केन्द्र के द्वारा संचालित गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान की। इस कार्यक्रम में डॉ0 रीना बिश्नोई, डॉ0 अर्चना आर्या और डॉ0 रेखा दीक्षित आदि के सहित अन्य विभुतियाँ भी शामिल रहीं।

                                                    वायु में पीएम कणों के बढ़ने के कारण लोंगों के दिव्याँग होने का खतरा बढ़ा

                                                            

तेहरान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में किया दावा

ऽ   वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2019 तक के आँकड़ों से निकाला गया निष्कर्ष।

ऽ   इससे दुनियाभर में लोगों की मौत और उनके विकलाँग होने का खतरा 31 प्रतिशत तक बढ़ गया है।

ऽ   पीएम कणों के 2.5 से 10 होने के कारण लोगों के जीवन में विकलाँगता के स्तर में बढ़ोत्तरी हुई है, जो अपने आप में एक चिन्ताजनक स्थिति है।

-फरशाद फरजादफर, शोधकर्ता।

वर्तमान समय के दौरान विश्वभर में वायु प्रदूषण का स्तर अपने खतनाक स्तर पर पहुँच गया है। हाल ही में किए गए एक नए अध्ययन में कहा गया है कि वायु में पीएम प्रदूषण (कण) की बढ़ोत्तरी होने के कारण के कारण ह्नदय से सम्बन्धित बीमारियों में भी अप्रत्याशित वृद्वि दर्ज की जा रही है, जिससे समय से पूर्व ही होने वाली मौतों एवं विकलाँगता में 31 प्रतिशत तक की वृद्वि हो चुकी है।

उक्त अध्ययन ईरान की तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं के द्वारा किया गया है। शोधकर्ताओं के द्वारा इसे ‘द ग्लोबल बर्डन डिजीज अर्थात जीबीडी का नाम दिया गया है।’ अपने इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने वर्ष 1990 से वर्ष 2019 तक के आँकड़ों को शामिल किया था।

                                                                  

शोधकर्ताओं के अनुसार विश्व के 204 देशों की वायु में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) प्रदूषण के स्तर का विश्लेषण इस अध्ययन के दौरान किया गया। इस विश्लेषण के माध्यम से ज्ञात हुआ कि जहाँ वर्ष 1990 में इन पीएम के कारण पूरे विश्व में कुल 26 लाख लोग विकलाँग हुए तो वहीं वर्ष 2019 में यह आँकड़ा बढ़कर 35 लाख लोगों तक पहुँच गया था।

ज्ञात हो कि पीएम प्रदूषण वायु में ठोस पदार्थों के छोट-छोटे कण होते हैं, जो कि वाहन उत्सर्जन, धुआँ और धूल आदि से फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं, और इन्हें पीएम-2.5 और पीएम-10 के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

डपग्रह एवं कम्प्यूटर मॉडल से की गई निगरानीः- शोधकर्ताओं ने वर्ष 2019 के अपडेट से जीबीडी के अध्ययन तक एक विशेष उपकरण का उपयोग कर पीएम प्रदूषण के जोखिमक ा अनुमान लगाया था। इस दौरान उपग्रह और जमीनी स्तर पर निगरानी, वायुमण्ड़ल में उपलब्ध रसायनों के कम्प्यूटर मॉडल्स और भूमि-उपयोग डाटा आदि के माध्यम से प्राप्त जानकारियाँ भी शामिल थी।

    शोधकर्ताओं के द्वारा विकलाँगता-समायोजित जीवन वर्षों (डीएएलवाई) के अन्तर्गत होने वाले परिपवर्तनों का विश्लेषण किया गया था। डीएएलवाई एक माप होती है, जो किसी आबादी पर स्वाथ्य स्थिति के पूर्ण प्रभाव का आंकलन करने के लिए जीवन की हानि और जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव, दोनों पर ही विचार करता है।

इसके कारण पुरूषों की अधिक मृत्यु हुईः- अध्ययन में यह भी सामने आया कि समस्त उपायों में एम वायु प्रदूषण के द्वारा विकलाँता एवं मृत्यु में होने वाली वृद्वि, महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में अधिक थी, जबकि घरेलू पीएम वायु प्रदूषण से विकलाँता और मृत्यु की दर में कमी पुरूषों की तुलना में महिलाओं में कम थी।

पीएम वायु प्रदूषण का प्रभाव महिलाओं पर कमः- पीएम प्रदूषण के चलते कुल मौतों में वृद्वि एक समान रूप से नही देखी गई है। वायु में विद्यमान इन कणों के कारण पुरूषों में वृद्वि 43 प्रतिशत तक देखने को मिली तो इनके कारण महिलाओं में विकलाँगता का स्तर 28.2 प्रतिशत तक ही दर्ज किया गया।

                                     

    हालांकि इस शोध में यह भी सामने आया कि समय से पूर्व होने वाली मौतों में 36.7 प्रतिशत तक की कमी भी आई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पीएम प्रदूषण के कारण आयु मानक वाले सीवीडी मृत्यु और विकलाँगता में 8.1 प्रतिशत की वृद्वि भी हुई है।

विटामिन-के की कमी के कारण पड़ता है फेफड़ों की कार्यक्षमता पर कुप्रभाव

    कोपेनगेहन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल एवं कोपेनगेहन यूनिवर्सिटी के शोधर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में पाया कि मानव के रक्त में विटामिल-के की कमी होने से उसके फेफड़ों की कार्यक्षमता भी कुप्रभावित हो सकती है, यह अध्ययन ईआरजे ओपेन रिसर्च पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसके कारण मानव में अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के साथ ही सांसों में घरघराहट के जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है।

    विटामिन-के, हरी पत्तेदार सब्जियों, वनस्पति तेल और अनाज के दानों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध पाया जाता है। यह रक्त के थक्का बनने में सहायता करता है, जिसके कारण विभिन्न परिस्थितियों में होने वाले घाव शीघ्रता से भरते हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं को अभी फेफड़े के स्वास्थ्य में विटामिन-के की सकारात्मक भूमिका के बारे में अधिक जानकारी नही है।

    शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में कोपेनहेगन में निवास करने दवाले 24 से 77 वर्ष तक के 4,092 प्रतिभागियों को शामिल किया। इसमें उन्होंने सभी प्रतिभागियों के ब्लड सैंपल एकत्र कर उनके फेफड़ों की कार्य क्षमता का परीक्षण किया, जिसे स्पारोमेट्री कहा जाता है।