मजबूत पैर बचाते हैं हार्ट फेल हेाने से Publish Date : 29/05/2023
मजबूत पैर बचाते हैं हार्ट फेल हेाने से
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
हाल ही में किए गए एक नए शोध में सामने आया है कि हार्ट अटैक के शिकार ऐसे लोगों में, जिनके पैर मजबूत थे, उनमें आगे चलकर आर्ट फेल होने की सम्भावनाएं काफी कम होती है।
इस शोध के परिणामस्वरूप शोधकर्ताओं ने हार्ट अटैक के शिकार लोगों को जाँघों की मांसपेशियों को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग एक्सरसाईज जैसे स्क्वाट, हिप थ्रस्ट आदि के बारे में सलाह दी है।
इस शोध में वर्ष 2007 से 2020 के बीच मायोकार्डिनल इंफ्रेक्शन (हार्ट अटैक) से पीड़ित अस्पताल में भर्ती 932 मरीजों को शामिल किया गया था। अस्पताल में भर्ती होने के दौरान इन लोगों में हार्ट फेल्योर से सम्बन्धित कोई लक्षण उपलब्ध नही थे।
इन मरीजों की औसत आयु 66 वर्ष थी, जिनमें से 753 मरीज पुरूष थे। इस रिपोर्ट को हार्ट फेल्योर 2023: ए साइंटिफिक काँग्रेस ऑफ द यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी पराग्वे में प्रकाशित किया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पैरों की मजबूती मायोकॉर्डियल इंफ्रेक्शन के बाद हार्ट के फेल होने जैसे हालातों को बनने से रोकता है। शोध से जुड़े केनसुके यूनो ने कहा कि पैरों की मांसपेशियों की ताकत का पता लगाकर हम हार्ट अटैक के शिकार व्यक्ति में हार्ट फेल्योर जैसी स्थितियों के विकसित होने का पता लगा सकते हैं।
पैरों की ताकत का पता लगाने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति को किसी कुर्सी पर बिठाकर उसकी जाँघ की मांसपेशियों में पाँच सेकेण्ड के लिए खिंचाव पैदा करने के लिए कहा जाता है।
नई तकनीक से अब प्रयोगशाला में भी बच्चे पैदा हो सकेंगे
प्रयोगशाला में भ्रूण को विकसित करने की तकनीकी पहले से ही उपलब्ध हैए लेकिन भविष्य में बच्चे भी लैब में पैदा हो सकेंगे। यह दावा जापान के वैज्ञानिकों ने किया है। वैज्ञानिकों को प्रयोगशाला में अंडाणु और शुक्राणु बनाने में सफलता प्राप्त हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक को विकसित करने में अभी और समय लगेगा।
जापान क्यूशू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को लैब में चूहों पर किए गए एक शोध में अंडा और स्पर्म बनाने में सफलता मिली है। विश्वविद्यालय के स्टेम सेल के प्रोफेसर कात्सुहिको हयांशी ने बताया कि उनकी टीम ने प्रयोगशाला में स्पर्म और अंडे बना लिए हैं। अब इनसे भ्रूण भी बनाया जाएगा, जिन्हें बाद में कृत्रिम गर्भाश्य में विकसित किया जाएगा।
बता दें कि इस साल मार्च में जनरल नेचर में इस शोध को प्रकाशित किया गया था। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वर्ष 2028 तक यह हकीकत बन कर सामने आ सकता है।
अब कोशिकाओं से शुक्राणु और अंडाणु बन सकेगा
प्रोफेसर हयांशी और उनकी टीम ने 7 चूहों पर यह प्रयोग किए। शोध टीम के अनुसार नर चूहे की त्वचा कोशिकाओं का इस्तेमाल कर अंडा बनाया जा सकता है और इसी तरह शुक्राणु भी तैयार किए गए हैं। लैब में अंडाणु और शुक्राणु बनाने की इस प्रक्रिया को इन विट्रो गैमेेटोजेनेसिस (आईवीजी) कहा जाता है।
प्रोफेसर हयांशी ने अनुमान लगाया कि मनुष्यों के अंडे जैसी पोस्ट कोशिकाएं तैयार करने में अभाी 5 साल लगेंगे और यह पूरी प्रक्रिया बेहद सुरक्षित होगी। हालांकि स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेनरी ग्रीली ने कहा कि विश्वसनीयता पाने में 10 साल तक का समय लग सकता हैं।
बांझपन से निजात मिलेगी
प्रयोग के सफल होने के बाद दुनिया में लोगों का बांझपन जैसी दिक्कतों से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में 6 में से 1 व्यक्ति बांझपन जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए यह तकनीकी किसी वरदान से कम नहीं होगी।
कदम आगे बढ़़ाएं, परन्तु पीछे देखना भी जरूरी
परीक्षाफलों का महीना 12वीं पास कर चुके विद्यार्थियों के लिए जैसे उम्मीदों का एक नया आकाश लेकर आता हैं, जहाँ से वे सफलता की सीढ़ी के पहले पायदान पर पैर रखते हैं और अपने जीवन की एक नई शुरूआत करते हैं।
असल में यह समय इन विद्यार्थियों के जीवप का संक्रांति काल होता है। जिसके अन्दर जहाँ एक ओर तो उनकी कच्ची उम्र होती है तो वहीं दूसरी ओर नई दुनिया का नया द्वार होता है, जहाँ उन्हें दुनिया की सीख, समझ तथा नए अनुभवों से दो-चार होना होता है।
लेकिन इनके बहुत से ऐसे साथी भी होते हैं जो कि इस रेस में उनसे थोड़ा पीछे रह जाते हैं। यही असफलता कई बार मन में निराशा को भी जन्म देती है। परन्तु जिस प्रकार से जीवन में कुछ भी स्थाई नही होता है, ठीक उसी प्रकार से असफलता भी स्थाई नही होती है। अतः निरंतर प्रयास, लगन एवं परिश्रम से वे भी सफलता को प्राप्त कर ही लेते हैं।
तो फिर हम इन असफलताओं को अपनी मजबूत जडें ही क्यों नही बना लेते हैं, जो अन्ततः हमारी सफलता के वृक्ष को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करने में सक्षम हो। यह बिलकुल बांस के पेड़ की तरह से ही है जिसका विकास उसको लगाते ही नही होता, और फिर भी हम उसमें खाद-पानी आदि देते ही रहते हैं और कुछ वर्ष के बाद यह केवल 6 सप्ताह में ही 80 फीट तक बढ़ जाता है।
हालांकि यह गुजरे समय के दौरान भी निष्क्रिय नही रहता, अपितु यह 80 फीट की लम्बाई को सम्भालने के लिए जमीन के अन्दर मौजूद अपनी जड़ों को मजबूती प्रदान करता है।
इसी प्रकार से आप भी पीछे छूट गए अपने दोस्तों के लिए एक खाद एवं पानी की तरह से कार्य करें। अपने कदमों को आगे बढ़ाने के साथ ही थोड़ा-सा पीछे मुड़कर भी देखिए, अपने हाथ को बढ़ाएं और उनका हाथ थामकर उन्हें विश्वास देकर उनका संबल बनने का प्रयास करें।
इसके बाद देखिए इस स्नेह, दोस्ती और मजबूत रिश्तों के साथ यह जिन्दगी कितनी खूबसूरत दिखने लगती है।
यूं तो आसान नही थी डगर,
मगर हम काँटों को भी फूलों की तरह ही सहेजते रहे,
थाम लिया एक-दूजे को,
और पगडंड़ियों को और,
एक मुकम्मल रास्ता तैयार करते रहे।
विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस (28 मई)
जागरूकता में है समाधान
मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति लोगों की जागरूकता में इजाफा हुआ है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के माध्यम से भी यही स्पष्ट होता है कि 15-24 वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं में स्वच्छ तरीकों को अपनाने को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। इन प्रवासों को सतत रूप से जारी रखने की आवश्यकता हैं मासिक धर्म के दौरान उचित स्वच्छता के नही होने से गम्भीर बीमारियों का जोखिम भी रहता हैं जेसे- प्रजनन पथ संक्रमण षनी आरटीआई, मूत्रपथ का संक्रमण अर्थात यूटीआई आदि। पर्याप्त स्वच्छता के नही होने से सर्वाईकल कैसर की आशंका बढ़ जाती है।
ध्यान रखने योग्य कुछ आवश्यक तथ्य
- सैनेटरी पैड्स, टेपोन, मेस्टुअल कप आदि को सुरक्षित रखें।
- इनमें से किसी भी उत्पाद का उपयोग लम्बे समय तक न करें। एक सेनेटरी पैड अथवा टेपोन का प्रयोग 10 से 12 घंटे से अधिक नही करना चाहिए।
- एक ही अधिक का अधिक प्रयोग करने से टॉक्सिस शाक सिंड्रोम और सेप्सिस की समस्या हो सकती है।
- सैनेटरी पैड बदलने के लिए आप अलार्म भी सेट कर सकती हैं।
- अपने जेनेटिकल एरिया की स्वच्छता को बनाए रखें।
- गर्मियों के मौसम में पसीना आने व नमी होने के कारण संक्रमण का जोखिम भी अधिक रहता है।
- शरीर में पानी की कमी न होने दें। खानपान का संतुलन भी मासिक धर्म के दौरान होने वाली कठिनाईयां कम होती हैं।
- अपने निजी अंगों की सफाई में क्षारयुक्त या बहुत कठोर साबुन का प्रयोग करने से बचें।
- बहुत अधिक दर्द या असहजता को हल्के में न लें।
- सम्भव प्रतिमाह होने वाली ऐसी जटिलताएं एंड्रोमेट्रोसिस या फाइब्रायड के लिए खतरे की घंटी हो।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयए मेरठ स्थित कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष हैं तथा लेख में प्रस्तुत विचार उनके स्वयं के हैं ।