शूकर की बढ़ती मांग      Publish Date : 16/02/2025

                                 शूकर की बढ़ती मांग

                                                                                                                                                                              डॉक्टर पूतन सिंह

भारत में पोर्क की प्रति व्यक्ति खपत की दर सबसे अधिक नागालैंझ में है। यहां के आदिवासी लगभग प्रत्येक घर में उत्पादित शूकर का ताजा मांस खाना पसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त, यहां काले शूकरों को सांस्कृतिक प्राथमिकता भी प्रदान की जाती रही है। शूकर पालन नापगाओं की सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ जुड़ा हुआ है। एक अनुमान के अनुसार नागालैंड में लगभग 60 हजार मीट्रिक टन पोर्क का माँग प्रति वर्ष होती है, जबकि राज्य का अपना वार्षिक उत्पादन लगभग 30 हजार मीट्रिक टन है।

                                                                               

अतः राज्य में लगभग 50 प्रतिशत पोर्क माँस की उपलब्धता है। मानव की आबादी में वृद्वि और राज्य में शूकर की आबादी में कमी आने के कारण माँग और आपूर्ति का यह अंतर और भी अधिक बढ़ता ही जा रहा है। अब राज्य की पोर्क की माँग की पूर्ति के लिए पंजाब, हरियाणा और दक्षिण भारतीय राज्यों से जीवित शूकरों का आयात करता है।

नागालैंड में शूकर उत्पादन प्रणाली की कम उत्पादकता की समस्या का समाधान करने के सन्दर्भ में, उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र के लिए भाकृअनुप-अनुसंधान परिसर नागालैंड केन्द्र, मेडजिफेमा ने वर्ष 2009 से शूकर उत्पादन के लिए भाकृअनुप-मेगा बीज परीयोजना को लागू किया है।

उक्त परियोजना के अंतर्गत रानी शूकर के साथ शूकेर उत्पादन की तकनीक को मानकीकृत एवं विकसित किया गया था। रानी शूकर, शूकर पर भाकृअनुप-एनआरसी में विकसित किए गए हैम्पशायर और घुंगरू शूकर नस्लों का एक मिश्रण है। नागालैंड में रानी शूकर का वजन औसतन 280 से 350 ग्राम प्रतिदिन की दर से बढ़ता है।

इसकी यौन परिपक्वता की आयु 7 महीने से लेकर 10 महीने तक की होती है। जन्म के समय पिग्लेट्स की औसत संख्या 8 से 12 तक की होती है। एक अच्छे प्रकार से प्रबंधित खेत में, रानी शूकर एक वर्ष में दो बार प्रजनन करती है। इस प्रकार से वह प्रति वर्ष 16 से 24 पिग्लेट पैदा करती है और इसके जीवनकाल की उत्पादकता (औसतन 5 वर्ष) 80 से 120 पिगलेट तक मानी जाती है।

                                                                     

भाकृअनुप-एनईएच क्षेत्र के लिए अनुसंधान परिसर, नागालैंड केन्द्र के द्वारा शूकर उत्पादन प्रणाली को स्थाई आधार पर बढ़ाने के लिए भी निरंतर प्रयास किए जा रहे र्हैं। शूकर महापरियोजना के तहत, केन्द्र ने विभिन्न हितधारकों को शूकरों के 6500 उन्नत जर्मप्लाज्म प्रदान किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, केन्द्र के द्वारा आधुनिक शूकर उत्पादन प्रौद्वोगिकियों में लगभग 1,000 व्यक्तियों को परीक्षण प्रदान किया गया है। इसके निरंतर प्रयासों के चलते, वर्षभर शूकर ब्रीडर फार्मों में वृद्वि हुई है। केन्द्र के द्वारा शूकर पालन को बढ़ावा देने के लिए युवा उद्यमियों को आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है।

नागालैंड के दीमापुर जिले के एक गाँव, सेथेकेमा में चकेसांग जनजाति के एक युवा उद्यमी, श्री सेवे वाडेओ, पिग यूनिट स्थापित करने की अपनी योजना के साथ वर्ष 2017 में नागालैंड केन्द्र के एनईएच क्षेत्र के लिए भाकृअनुप-अनुसंधान परिसर के सम्पर्क में आए। केन्द्र ने उन्हें शूकर प्रजनन पर जोर देने के साथ ही वैज्ञानिक एवं आधुनिक तरीके से शूकर पालन का प्रशिक्षण भी प्रदान किया। केन्द्र में प्रशिक्षण प्राप्त कर श्री सेवे को प्रजनन के लिए शूकरों को पालने के लाभ का पता चला।

केन्द्र के द्वारा उन्हें रानी मादा पिगलेट भी उपलब्ध कराए गए। उन्होंने शूकरों में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) का प्रशिक्षण भी प्राप्त कया और नर शूकरों को मोटा करने के लिए उनका पालन किया। सेवे अपने सभी पशुओं का प्रजनन कार्य एआई के माध्यम से ही करते हैं।

                                                                

सेवे अब, पिगलेट की बिक्री से भी लाभ कमा रहे हैं। एआई की सस्ती कीमत के कारण वह प्रजनन व्यय पर शून्य राशि व्यय कर रहे हैं। इसके साथ ही वह एआई की सुविधाजनक उपलब्धता के चलते अपने समस्त पशुओं को दीमापुर से लगभग 7 घंटे की दूरी पर 7,000 रूपये से लेकर 8,000 रूपये तक में बेच रहे हैं।

वर्ष 2017 से अब तक सेवे ने लगभग 1,000 हजार से अधिक पिगलेट बेचे हैं और 250 पिगलेट उनके फार्म में चर्बी के लिए पाले गए हैं। इस प्रकार श्री सेवे अपने शूकर फार्म से प्रतिवर्ष 3.5 से 4.0 लाख रूपये तक कमा लेते हैं।

लेखकः डॉक्टर पूतन सिंह, प्रधान वैज्ञानिक भारतीय कृषि पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जत नगर बरेली।