बकरी पालन आधारित समेकित कृषि प्रणाली Publish Date : 17/01/2025
बकरी पालन आधारित समेकित कृषि प्रणाली
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
भारतीय कृषि के अंतर्गत फसलों के साथ पशुपालन और अन्य गतिविधियों का संतुलित संयोजन एक पुरानी परंपरा रही है, जो सीमांत और लघु किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय और पोषण का मुख्य स्रोत भी रहा है। हालांकि, हरित क्रांति के दौरान, देश में खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इस पारंपरिक प्रणाली को बदल दिया गया है।
फसल उत्पादन पर केंद्रित होकर धान-गेहूं जैसी एकल फसल प्रणालियों को अपनाया गया। निस्संदेह, इस बदलाव ने उस समय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की और विदेशी अनाज पर निर्भरता कम/समाप्त कर दी है। इसके दीर्घकालिक प्रभावों ने किसानों की आय और कृषि की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डाला। फसल आधारित प्रणालियों में किसानों को एकल उत्पादन प्रणाली पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इससे उनकी आय में स्थिरता नहीं रहती।
वर्ष 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, फसल उत्पादन से किसानों की आय में केवल 1 प्रतिशत की वृद्वि हुई, जबकि पशुधन आधारित प्रणालियों के अंतर्गत यह वृद्वि 7 प्रतिशत रही। इससे स्पष्ट होता है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन जैसी अन्य गतिविधियों का एकीकरण करना भी आवश्यक है।
इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, भारतीय कृषि के सामने विभिन्न चुनौतियां हैं। इनमें खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्वि और उनकी आजीविका की स्थिरता सुनिश्चित करना भी शामिल है। ऐसे समय में समेकित कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस.) एक प्रभावी समाधान के रूप में उभर कर सामने आ रही है। इसमें खेती के विभिन्न घटकों को एक साथ जोड़कर एक ऐसा मॉडल तैयार किया जाता है, जो न केवल किसानों की आय बढ़ाता है, बल्कि मौसम और बाजार के उतार-चढ़ाव से उत्पन्न जोखिमों को भी कम करता है।
बकरी-पालन आधारित समेकित कृषि प्रणाली, छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक स्थायी और लाभदायक कृषि प्रणाली के रूप में उभर रही है। इस प्रणाली के माध्यम से रोजगार सृजन एवं पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम किया जा सकता है। यह मॉडल पशु आधारित मॉडल है अतः इससे कम लागत में उच्च गुणवत्ता के दूध, अंडे, मांस, दाना एवं चारे का उत्पादन किया जा सकता है। इससे परिवार के बच्चों एवं महिलाओं को कुपोषण से दूर किया जा सकता है। इसके साथ ही इसका सफलतापूर्वक कार्यान्वयन किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों से भी सुरक्षित रखता है।
मुर्गीपालनः अंडा व मांस उत्पादन हेतु कुक्कुटपालन से किसान वर्षभर लाभ कमा सकते हैं। मुर्गी की बीट को खाद के रूप में मृदा की उर्वराशक्ति को बढ़ाने हेतु उपयोग में लिया जा सकता है। इससे पफसलोत्पादन में वृ(ि होगी एवं पफसल अवशेष, बचे हुए बकरी चारे एवं अनाज को मुर्गियों के खाद्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है। केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम में 250 मुर्गियों से इस घटक की शुरुआत की गई।
यदि किसान 250 मुर्गियां रखते हैं, तो इनसे उन्हें 50 प्रतिशत नर व 50 प्रतिशत मादा मुर्गियां प्राप्त होती हैं। इन 50 प्रतिशत मुर्गों को बेचकर किसान लगभग 30-35 हजार रुपये कमा सकते हैं। इसके साथ ही इन मुर्गियांे से एक वर्ष में लगभग 10-12 हजार अंडे प्राप्त कर सकते हैं। इन्हें बेचकर लगभग 1.0-1.25 लाख रुपये कमा सकते हैं। इसके अलावा किसान मुर्गियों से प्राप्त अंडे व मांस से अपने परिवार को भरपूर पोषण उपलब्ध करवा सकता है।
आय वृद्वि केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम द्वारा विकसित बकरी आधारित समेकित कृषि प्रणाली मॉडल के तुलनात्मक अध्ययन में, जिसमें केवल बकरी पालन और मुर्गीपालन ही शामिल थे। यह पाया गया कि परिवर्तनीय लागत पर केवल बकरीपालन से किसानों को प्रति माह 19,855 रुपये का शुद्व लाभ होता है, जबकि केवल मुर्गीपालन से यह लाभ 6,006 रुपये प्रतिमाह होता है।
इसके विपरीत, बकरी आधारित समेकित कृषि प्रणाली मॉडल अपनाने से किसानों को प्रति माह 32,514 रुपये का शुद्व लाभ प्राप्त होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बकरी आधारित समेकित कृषि प्रणाली मॉडल किसानों की आजीविका सुरक्षा और आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पशुधन, बागवानी, डेरी, मछलीपालन, मुर्गीपालन, बकरीपालन, मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन जैसी विभिन्न गतिविधियों का एकीकृत समावेश किया जाता है। इससे किसानों को वर्षभर आय प्राप्त होती है और उनके पास उत्पादों की विविधता भी होती है। इससे न केवल उन्हें पोषण मिलता है, बल्कि वे बाजार के उतार-चढ़ाव का सामना भी आसानी से कर पाते हैं। समेकित कृषि प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पुनर्चक्रण पर आधारित होती है।
इसमें 3 आर के सिद्वांत-कम करना (रिड्यूस), पुनः उपयोग (रियूज) और पुनर्चक्रण (रिसाइकिल) का पालन किया जाता है। इससे पर्यावरण के अनुकूल तरीके से कृषि को प्रोत्साहन मिलता है।
इसके अलावा, इस प्रणाली से रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं। इसमें कई प्रकार की कृषि गतिविधियां एक साथ होती हैं, जिससे किसानों और उनके परिवारों को वर्ष भर रोजगार मिलता रहता है।
बकरीपालन आधारित समेकित कृषि प्रणाली लघु एवं सीमांत किसानों के लिए फसल आधारित समेकित कृषि प्रणालियों की तुलना में पशु आधारित समेकित कृषि प्रणाली अधिक लाभकारी सिद्व हो सकती है। देश में इस वर्ग के किसानों के लिए पशुपालन एक प्रमुख गतिविधि रही है। इसके अतिरिक्त, देश में लगभग 19.5 करोड़ लोग कुपोषण से ग्रसित हैं, कुपोषण के विरूद्व लड़ाई में यह प्रणाली कारगर सिद्व हो सकती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।