गन्ने की उन्नत खेती      Publish Date : 28/02/2024

                                    गन्ने की उन्नत खेती

                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

वस्तुतः दोमट मृदा को गन्ने की खेती के लिए सर्वाधिक उत्तम माना जाता है, वहीं भारी दोमट मिट्टी में में भी गन्ने की भरपूर पैदावार जी जा सकती है। क्षारीय, अम्लीय तथा जिन भूमियो में पानी का जमाव रहता है, ऐसी भूमियों पर गन्ने की खेती नही की जा सकती है। गन्ने की बुआई हेतु खेत को तैयार करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर तीन बार हैरो चलाना चाहिए इसके साथ ही देशी हल से पाँच-छह जुताई करना भी आवश्यक होता है। गन्ने की बुआई करने के समय खेत में नमी का होना भी आवश्यक है। जिस खेत में गन्ने की बुआई करनी है उसमें पिछले वर्ष की फसल में कोई रोग नही होना चाहिए।

                                                                          

मृदा-परीक्षण के बाद जारी संस्तुतियों के अनुसार ही गन्ने की फसल में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। विभिन्न संस्तुतियों के अनुसार 150-180 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश तथा 25 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट का प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना उचित रहता हैं उपरौकत दी गई मात्राओं की पूर्ति के लिए 275 कि.ग्रा. यूरिया, 190 कि.ग्रा. एन.पी.के. (12%, 32%, 16%) एवं 16 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश अथवा 275 कि.ग्रा. यूरिया, 130 कि.ग्रा. एन.पी.के. तथा 67 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हैक्टेयार गन्ने की फसल में देना चाहिए।

नाइट्रोजन की एक तिहाई एव्र फॉस्फोरस पोटाश, जिंक सल्फेट की सम्पूर्ण मात्रा बुआई के समय ही प्रयोग करें। इसमें फॉस्फोरस को एन.पी.के. (12%, 32%, 16%) के अनुसार देना चाहिए जिससे पोटाश की आवश्यकता की पूर्ति भी हो जाती है। नाइट्रोजन की शेष दो-तिहाई मात्रा को दो बार में पहली बार बुआई के 60 दिन के बाद तथा दूसरी बार बुआइ्र के 90 दिन के बाद छिड़काव विधि के द्वारा दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के बायोफर्टिलाइजर जैसे एजोटोबैक्टर एवं फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने वाले कल्चर (पी.सी.बी.), जिसमें प्रत्येक की 5 कि.ग्रा./हैक्टेयर मात्रा बुआई के समय देनी चाहिए। रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा हरित खाद अथव कम्पोस्ट खाद लगभग 10-12 टन प्रति हैक्टर की दर से डालने के पश्चात् उपज अच्छी होती है।

बीज की तैयारी

                                                       

    जिस खेत से गन्ने का बीज लेना हो उस खेत में खाद का प्रयोग अच्छी तरह से करना चाहिए, इसके साथ ही निरोगी गन्ना होना चाहिए ध्यान रखें कि यदि गन्ने के केवल ऊपरी भाग को ही बुआई के काम में लाया जाए तो अंकुरण अधिक होता है। बीज के लिए गन्ने के तीन आँखों वाले टुकड़ों को ही काटना चहिए इस प्रकार से 40,000 टुकड़े प्रति हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होगे जिनका वजन लगभग 70-75 क्विंटल होगा। बीज की बुआई करने से पूर्व बीज को कार्बनिक कवकनाशी के द्वारा उपचारित कर लेना चाहिए।

बुआई

    बसंत ऋतु में 75 से.मी. की दूरी पर और शरद ऋतु में 90 से.मी. की दूरी पर रिजर से 20 से.मी. गहरी नालियाँ खोदनी चाहिए। इसे बाद इन नालियों में उर्वरक डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। बुआई के 5 दिनों के बाद गामा बीएचसी (लिंडेन) का 1200-1300 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई में प्रयुक्त गन्ने के टुकड़ों के ऊपर छिड़काव से दीमक व जड़ एवं तना भेदक नही लगते हैं। इस घोल को 50 लीटर पानी में घोलकर नालियों पर छिड़ककर उन्हें मृदा से बन्द कर देना चाहिए। यदि पायरिला के अंड़ों की संख्या बढ़ रही हे मो उस समय किसी भी रसायन का प्रयोग नही करना चाहिए, इसके लिए किसी कीट विशोषज्ञ से सुझाव प्राप्त करें। यदि गन्ने की खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप हो गया है तो 5 लीटर गामा बी.एच.सी. 20 ई.सी. का प्रति हैक्टेयर की दर से खेत की सिंचाई करते समय प्रयाग करना चाहिए।

सिंचाई

    शरद ऋतु के दौरान मैदानी भागों में बोई गई फसल सिंचाई, बरसात के पहले तथा 2 बरसात के बाद और बसंत में बुआई की गई फसल में 6 सिंचाई (4 वर्षा के पूर्व एवं 2 वर्षा के बाद) करनी चाहिए। एक सिंचाई कल्ले निकलते समय अवश्य करनी चाहिए। तराई के क्षेत्रों में बरसात से पूर्व कुल 2-3 सिंचाईयाँ ही पर्याप्त होती हैं, तो वहीं बरसात के समय एक ही सिंचाई पर्याप्त रहती है।

खरपतवार नियंत्रण

    गन्ने की बुआई करने के 25-30 दिन के अंतर पर तीन गुड़ाईयाँ करके गन्ने में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण होता हैं। रसायनों के द्वारा खरपतवार को नष्ट नही किया जा सकता है। गन्ने की बुआई के तुरन्त बाद खरपतावार होने की दशा में एट्रॉजिन तथा सेंकर का एक कि.ग्रा. सक्रिय पदार्थ 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सारणीः गन्ने की प्रमुख प्रजातियाँ

                                                                         

शीघ्र पकने वाली

  • तराईः कोशा-88230, कोशा-92254, कोशा-95255, कोशा-96260 तथा कोशा-69268 आदि।
  • पश्चिमीः कोशा-64, कोशा-88230, कोशा-92254, कोशा-95255, कोशा-96268 एवं कोशा-03234 आदि।
  • मध्यवर्तीः कोशा-64, कोशा-90265, कोशा-87216 तथा कोशा-96258 आदि।
  • जल भराव से प्लावितः कोशा-92255 तथा को. पंत-90233 आदि।
  • मध्य देर से पकने वालीः 8432 आदि।
  • पश्चिमीः कोशा-767, को. पंत-84121, कोशा-8432, कोशा-96269, कोशा-99259, को. पंत- 90233, कोशा-97284, कोशा-0750 तथा कोशा-01434 आदि।
  • मध्यवर्तीः कोशा-767, कोशा-93218, कोशा-96222 तथा कोशा-92223 आदि।
  • जल भराव से प्लावितः कोशा-767, यू.पी.-9529, यू.पी.-9530 तथा कोशा-96269 आदि।

बुआई के समयः

  • शरदकालीन बुआई 15 अक्टूबर तक हो जानी चाहिए।
  • बसंतकालीन बुआई 15 फरवरी से 15 मार्च तक हो जानी चाहिए।

कटाईः

    जैसे ही रिफ्रेक्टोमीटर (दस्ती आवपन मापी) का बिन्दु 18 पहुँचे, गन्ने की कटाई आरम्भ कर देनी चाहिए। यन्त्र के अभाव में गन्ने की मिठास से गन्ने का पता लग जाता है।

पेड़ी प्रबन्धनः

    भारतवर्ष में गन्ने की उघ्त्पादन क्षमता अन्य देशो की अपेक्षा कम है। इसका एक मुख्य कारण किसान के द्वारा गन्ना पेड़ी का उचित प्रबन्ध नही कर पाना है। जबकि गन्ने में पेड़ी फसल गन्ने की बावक फसल (बोई गई फसल) से अधिक महत्वपूर्ण होती है। अतः पेड़ी का उचित प्रबन्धन कर गन्ने का अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। पेड़ी की एक फसल लेना आर्थिक दृष्टि से अच्छा रहता है। विशेषरूप से ध्यान दें कि पेड़ी को ध्यान में रखते हुए गनने की उसी प्रजाति की बुआई करनी चाहिए जिसकी पेड़ी फसल अच्छी रहती है।

गन्ने की प्रजातियाँ

  • शीघ्र पकने वालीः कोशा-8436, कोशा-88230, कोशा-95255, कोशा-96268 तथाको.से-1232 आदि।
  • देर से पकने वालीः कोशा-96275, कोशा-8432, कोशा-96260, कोशा-92423 तथा यू.पी.-97 आदि।

गन्ने की बुआई करने का उचित समयः

    नवम्बर से जनवरी माह में तापमान के कम होने के कारण काटे गये गन्ने का फुलाव कम होता है। इसी कारण इसकी पेड़ी भी अच्छी नही होती है। इससे अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इस गन्ने की कटाई मध्य जनवरी से मार्च तक करनी चाहिए।

गन्ने की कटाई के लिए उचित विधिः

                                                                   

    गन्ने की कटाई से पूर्व खेत की मेड़ समतल करके गन्ने की कटाई तेज धार वाले काटने वाले यन्त्र से धरती सतह से मिलाकर कटाई करनी चाहिए। ऐसा नही करने पर अंकुर पेड़ के ऊपर निकलने के कारण पेड़ी पैदावार कम होगी।

सिंचाईः गन्ने की कटाई करने के तुरन्त बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके बाद प्रति 20-25 दिन के बाद सिंचाई नियमित रूप से करते रहें। वर्षा ऋतु में यदि 20-25 दिन तक वर्षा न हो तो इस अन्तराल में सिंचाई करते रहें।

कर्षण क्रियाएँ

      गन्ने की कटाई एवं सिंचाई के तुरन्त बाद ठूँठों की छँटाई अवश्य करें। गन्ने के दो पेड़ों के बीच 45 से.मी. या इससे भी अधिक खाली स्थान हो तो 25-30 दिनों की तैयार नर्सरी अथवा पॉलीबैग सेटलिंग से खाली पड़े स्थाना बुआई करें, परन्तु इनकी कटाई 15 अप्रैल तक अवश्य कर दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए सिचाई के बाद निराई-गुडाई करते रहें। फसल को गिरने से बचाने के लिए मृदा चढ़ाएं तथा बँधाई भी कर देनी चाहिए।

सूखी पत्ती बिछाना

    सीमित सिंचाई उपलब्ध होने तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेड़ी गन्ने की दो पंक्तियों के बीच 7.5 से.मी. मोटी तह की सूखी पत्तियाँ बिछाने से नमी संरक्षण होता है। वर्षाकाल में यह पत्तियाँ सड़कर जमीन के अन्दर जैविक पदार्थ की मात्रा को बढ़ाकर उर्वराशक्ति में बढ़ोत्तरी करती है। सूखी पत्ती बिछाने के उपरांत उस पर लिंडेन 13 प्रतिशत फेनेवेल रेट डस्ट 0.4 प्रतिशत का 25 कि.ग्रा./हेक्टर की दर से करना चाहिए।

उर्वरक का प्रयोग

    सामान्य मृदा परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का का प्रयोग करना चाहिए। 10 से 12 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद डालना भी आवश्यक होता है। पेड़ी गन्ने को बावक फसल की अपेक्षा 20 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। गन्ने के अवशेषों को सड़ाने के लिए सूक्ष्मजीवों को अतिरिक्त नाइट्रोजन की आवश्यकता पड़ती है। अतः 180 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए।

    चोटी-बेधक, अंकुर-बेधक, गन्ना-बेधक आदि बेधक कीटों की रोकथाम के लिए ट्राइकोग्रामा अंड परजीवी 50,000 अंड़े प्रति हैक्टर की दर से बुआई करने के एक महीने के बाद से प्रारम्भ करके खेत में 5 बार 10 दिनों के अंतराल पर छोड़ते रहना चाहिए। इसके लिए अंड़ें लगे ट्राईकोकार्ड को टुकड़ों में काटकर पंक्तियों की निचली सतह पर लगाना चाहिए।

फसल सुरक्षा

                                                           

बीज उपचारः बुआई से पूर्व बीज का उपचार स्थानीय चीनी मिल में उपस्थित नम-गरम वायु उपचार संयत्र के बाद कार्बोडाजिम 200 ग्राम प्रति 100 लीटर के घोल में बीज को 10 मिनट तक उपचारित करने के बाद बुआई करें। 100 लीटर पानी का घोल 30 क्विंटल गन्ने के बीज के टुकड़ों को उपचारित करने के लिए पर्याप्त रहता है।

रोगो की रोकथामः गन्ने में लगने वाले रोग मुख्य रूप से बीज द्वारा ही लगते हैं। अतः रोगों की रोकथाम के लिए निम्न तरीकों को अपनाए-

  • स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज ही बुआई के लिए प्रयोग करना चाहिए।
  • बीज के टुकड़े काटते समय लाल, पीले रंग एवं गाँठों पर जड़ निकाल लें तथा सूखे टुकड़ों को अलग कर दें।
  • बीज को ट्राईकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर उपचारित करके बुआई करें।
  • रोग लगे खेत में 2-3 वर्ष तक गन्ने की फसल की बआई न करें।

कीटों की रोकथाम

  • दीमक एवं अंकुर-बेधक (अर्ली सत वेटर) की रोकथाम क्लोरोपाइरीफॉस 4 लीटर/हैक्टर की दर से 1300-1300 लीटर पानी में घोल कर कूँड़ों में बुआइ्र के बाद गन्ने के टुकड़ों के ऊपर छिड़काव करें।
  • जुलाई माह के द्वितीय पखवाड़ें में एक छिड़काव इन्डोसल्फॉन 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से करें जिससे कि तना-बेधक, उपोरी-बेधक, स्लग केटरपिलर एवं करंट कीट आदि की रोकथाम सम्भव हो सके।
  • चोटी-बेधक की प्रथम पीढ़ी एवं काला चिट्टा आदि कीटों की रोकथाम के लिए 8-10 अप्रैल के आसपास मोनोक्रोटोफॉस 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • चोटी-बेधक की तृतीय पीढ़ी की रोकथाम के लिए जून के अन्तिम सप्ताह अथवा जुलाई के प्रथम सप्ताह में 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से फ्यूराडॉन को सूखे रेत या राख में मिलाकर बिखेर दें और इसके बाद खेत की सिंचाई करें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।