फसलों को पाले से बचाना भी है जरूरी Publish Date : 21/01/2024
पाले से फसलों को बचाना भी है जरूरी
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु
सर्दी के मौसम में शीत लहर एवं पाले से इन्सानों के साथ ही साथ पशुपक्षी, फसल आदि सभी प्रभावित होते हैं. सावधान न रहने पर बहुत नुकसान भी हो सकता है-
इन्सानों के साथ-साथ पशुपक्षी भी पाले से बचने के उपाय कर लेते हैं, लेकिन फसलों को बचाने के लिए किसानों को सावधानी बरतनी होती हैं। पाले से टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि में 50 प्रतिशत से ज्यादा का नुकसान हो सकता है। अरहर में 70 प्रतिशत, गन्ने में 50 प्रतिशत, गेहूं व जौ में 10 से 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं, यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं, उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कई फल गिर जाते हैं। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं।
रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां, फलियां आने व बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती हैं। इसलिए ऐसे समय में किसानों को सावधान रह कर अपनी फसलों की पाले से सुरक्षा के उपाय करने चाहिए। जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात को पाला पड़ने की संभावना रहती है।
वैसे तो आमतौर पर पाले का अनुमान दिन के बाद के वातावरण से लगाया जा सकता है। सर्दी के दिनों में जिस दिन दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती हैं एवं हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए. दोपहर के बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात के बाद से ही हवा रुक जाए, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती हैं। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे पहर में पाला पड़ने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।
आमतौर पर तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए, अगर शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो नुकसान नहीं होता है, परंतु यदि इसी बीच हवा चलना बन्द हो जाए और आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक होता है।
जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो, उस रात 12 बजे से 2 बजे के आसपास खेत की उत्तर-पश्चिम दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेंड़ों पर रात में कूड़ाकचरा या घासफूस जला कर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में कुछ गरमी आ जाए। सुविधा के लिए मेंड़ पर 10 से 20 फुट के अंतराल पर कूड़ेकरकट के ढेर लगा कर धुआं करें। इस विधि से 4 डिगरी सैल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
पौधशाला के पौधों एवं छोटे पौधे वाले उद्यानों, नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पौलीथिन अथवा भूसे आदि से ढक देना चाहिए। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानी उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांध कर क्यारियों को किनारों पर लगाएं और दिन में उन्हें पुनः हटाएं।
पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई कर देनी चाहिए। नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है। दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेंड़ों पर और बीचबीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल एवं अरंडी आदि लगा दिए जाएं, तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है।
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लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।