बीजोत्पादनः मसूर की उन्नत प्रजातियाँ      Publish Date : 18/01/2024

                            बीजोत्पादनः मसूर की उन्नत प्रजातियाँ

                                                                                                                                               डॉ0 आर. एस. सेंगर,  डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 वर्षा रानी

                                                                            

‘‘मसूर, भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में से एक प्रमुख फसल है, जो कि निर्धन वर्ग की प्रोटीन सम्बन्धित आवश्यकताओं को पूरा करने केा एक प्रमुख स्रोत है। मसूर की फसल भारत के लगभग समस्त असिंचित तथा बारानी क्षेत्रों प्रमुखता के साथ उगाई जाती है। मसूर में मुख्य पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, रेशा, फॉस्फोरस, आयरन, विटामिन-सी, कैल्शियम, विटामिन-ए तथा रिबोफ्लेविन आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पाए जाते हैं और इसके साथ ही सोने पे सुहागा यह है कि मसूर की खेती करने से भूमि का उर्वरा-शक्ति में भी बढ़ोत्तरी होती है। इससे भूमि की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक दशओं में भी उत्तरोत्तर सुधार होता है।

मसूर की खेती के द्वारा 30-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से मसूर की जड़ों में बनने वाली गाँठों में उपस्थित एजोटोबैक्टर के माध्यम से भूमि में स्थिर की जाती है। यह एक बहुत कम लागत वाली फसल होने के कारण पूरे देश में पसंद की जाती है।प्रस्तुत लेख में हम मसूर के उन्नत बीज उत्पान के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे।’’

भारत में मसूर की उत्पादकता विश्व के विकसित तथा अन्य विकासशील देशों की अपेक्षा बहुत कम होने के कारण देश को दलहन का आयात प्रतिवर्ष करना पड़ता है। आयात के ऊपर इस निर्भरता को कम करने के लिए उत्पादकता को बढ़ाना अति आवश्यक है, इसके लिए उन्नत बीज उत्पादन तकनीक जैसे- खाद, उर्वरक, सिंचाई, फसल-सुरक्षा आदि के साथ-साथ उन्नत प्रजाति के बीज का उत्पादन करना तथा उसे कम कीमत पर किसानों को उपलब्ध कराना भी आवश्यक है।

जलवायु

     मसूर की उत्तम फसल के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी बुआई, बढ़वार के समय और पकते समय अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। मसूर की फसल के लिए 20-320 सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। मसूर के अंकुरण एवं फूल आने के समय अधिक वर्षा के कारण अंकुरण प्रभावित होता है, और फूल गिर जाते हैं तथा परागण क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव होने के कारण इसमें फलियाँ कम लगती है और उपज में भारी गिरावट आती है। अधिक वर्षा वाले, अधिक ठण्ड़े तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्र मसूर के बीज उत्पादन के लिए सही नही रहते हैं।

प्रजातियाँ

     मसूर के बीज को उसके आकार एवं टेस्टवेट के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है, जिन प्रजातियों का टेस्टवेट 25 ग्राम से अधिक होता है, उन्हें मोटे दाने वाली प्रजाति कहते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में मलका मसूर के नाम से जाना जाता है। इन प्रजातियों ाक मुख्यतः उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र तथा महाराष्ट्र में उगाया जाता है। जिन प्रजातियों का टेस्टवेट 25 ग्राम से कम होता है, यह बारीक दाने वाली प्रजातियाँ होती हैं, ज्निहें स्थानीय भाषा में मसरी के नाम से पुकारा जाता है। भारत में इसका उत्पादन मुख्यतः उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा आसोम आदि राज्यों में किया जाता है। मसूर की प्रमुख प्रजातियों का विवरण सारणी-1 में प्रदर्शित किया गया है-

भूमि एवं उसकी तैयारी

     मसूर के बीज उत्पादन के लिए दोमट या दोमट बलुई भूमि, जिसकी जलधारण क्षमता अधिक हो एवं उसकी जल निकास की उत्तम व्यवस्था होना आवश्यक है, मृदा की पी0एच0 7-8 के आसपास तथा उसमें पर्याप्त मात्रा में जीवाँश का उपस्थित होना चाहिए, उपरोक्त गुणों से युक्त मृदा को मसूर की खेती के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है। भूमि की तैयारी के लिए दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल अथवा हैरो से करने के बाद दो जुताई कल्टीवेटर से करने के बाद पाटा अवश्य लगाएं जिससे कि बुआई करने के समय मिट्टी भुरभुरी बने रहे।

                                                                         

                                                   चित्रः मसूर की प्रजाति- वीएल-514

बीज की मात्रा तथा बीज का उपचार

      25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर जिकसा अंकुरण लगभग 85 प्रतिशत तक हो, वह दाने के आकार एवं प्रजातियों की बढ़वार के आधार पर पर्याप्त रहता है। मसूर की बुआई से पूर्व इसके बीज का उपचार आवश्यक रूप से करें, क्योंकि बीज को उपचारित करने से इसकी फसल में कीट एवं व्याधियों का प्रकोप कम होता है और बीज के अंकुरण में सहायता प्राप्त होती है, साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता एवं उत्पादकता भी अच्छी रहती है। सबसे पहले बीज को कवकनाशी जैसे थायरम अथवा बाविस्टील 2.5 ग्राम!कि.ग्रा की दर से उपचारित करने के छह घण्टे बाद दीमक के नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस 2 मि.ली. प्रति कि.ग्रात्र की दर से उपचारित करें।

इस बीज को 12 घण्टे के लिए छाया में सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके बाद जैविक उपचार के लिए 100 ग्राम गुड़ को एक लीटर पानी में उबाल कर इसके ठण्ड़ा होने के पश्चात् 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर को इस गुड़ में घोल कर इसे अच्छी तरह से मिलाएं। इसके बाद कल्चर के इस घोल को 25-30 कि.ग्रा. मसूर में अच्छी तरह से मिलाएं जिससे कि प्रत्येक बीज के ऊपर कल्चर की एक परत् सी चढ़ जाए, और इसको छाया में अच्छी तरह से सुखाने के बाद बीज की बुआई करें।

                            सारणी-1: मसूर की प्रमुख प्रजातियाँ    

                                               

प्रजाति का नाम

वर्ष अनुमोदन

फसल की अवधि (दिन)

उत्पादन/पैदावार

(क्विंटल/हैक्टर)

अनुमोदित क्षेत्र

विवरण

आरबीएल 11-6

2017

100

12-14

उत्तरी मध्य तथा पश्चिमी क्षेत्र

इसका दान मोटा, उकठा प्रतिरोधी

पंत मसूर (पी.एल098)

2017

135-145

15-17

उत्तराखण्ड़

उकठा, जड़-गलन मध्यम प्रतिरोधी

पूसा अगेती मसूर (एल 4717)

2016

96-106

12-13

उत्तरी तथा मध्य क्षेत्र

सूखा एवं तापमान प्रतिरोधी, जिंक एवं आयरन की अधिकता

केशवानन्द मसूर-1 (आर एल जी-5)

2016

115-120

12-14

राजस्थान

बारीक दाने वाली प्रजाति

के एल बी 2008-4 (कृति)

2016

115-120

16-18

उत्तर प्रदेश

दाना मोटा, उकठा एवं रतुआ प्रतिरोधी

के एल एस 09-3 (क्रिश)

2016

105-110

14-16

उत्तर प्रदेश

दाना बारीक, उकठा प्रतिरोधी

आई पी एल 526

2016

130-135

16-18

उत्तर प्रदेश

मध्यम बड़ा दाना, उकठा एवं सूखा प्रतिरोधी

राज विजय मसूर 31 (जे एल 31)

2014

115-120

16-18

मध्य प्रदेश

दाना बड़ा, उकठा प्रतिरोधी

एल एल 931

2012

146-147

12-13

उत्तराखण्ड़

रतुआ और फली-छेदक प्रतिरोधी

वी एल मसूर-133 (बी एल-133)

2011

150-155

11-12

उत्तराखण्ड़

उकठा,रतुआ तथा जड़-गलन प्रतिरोधी

वी एल मसूर-514 (बी एल-514)

2011

149-159

10

उत्तराखण्ड़

उकठा, जड़-गलन के मध्यम प्रतिरोधी एवं फली-छेदक प्रतिरोधी

पंत मूसर 7 (पी एल-14)

2010

140-147

15

पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश

फली-छेदक, रतुआ एवं उकठा प्रतिरोधी

पंत मसूर 8 (पी एल-063)

2010

130-135

15

उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र

रतुआ, एवं उकठा मध्यम प्रतिरोधी तथा फली-छेदक प्रतिरोधी

पंत मसूर 6 (पी एल-02)

2010

125-145

11

उत्तराखण्ड़

झुलसा, रतुआ, उकठा तथा फली-छेदक प्रतिरोधी

वी एल मसूर-129

2010

151-155

9

उत्तराखण्ड़

उकठा, जड़-गलन एवं फली-छेदक प्रतिरोधी

मोइट्री डब्ल्यू बी एल 77

2009

110-117

15

उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र

उकठा प्रतिरोधी

शेखर मसूर 2 (के एल बी-303)

2009

120-128

14

उत्तर प्रदेश

उकठा एवं रतुआ मध्यम प्रतिरोधी

शेखर मसूर 3 (के एल बी-320)

2009

125-128

14

उत्तर प्रदेश

उकठा एवं रतुआ के मध्यम प्रतिरोधी

पंत मसूर-5 (एल-45994)

2008

120-128

17-18

दिल्ली

फली-छेदक तथा रतुआ के मध्यम प्रतिरोधी

आई पी एल-406 (अंगूरी)

2007

120-125

17

उत्तरी-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र

उकठा एवं रतुआ प्रतिरोधी

पूसा मसूर-5 (एल-4594)

2006

125-135

17

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं दिल्ली

दाना बारीक, रतुआ प्रतिरोधी, मध्यम बढ़वार

वी एल मसूर 507

2006

140-209

10-12

उत्तरी-पश्चिमी, उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र

उकठा प्रतिरोधी, दाने भूरे रंग के एवं बड़े

हरियाणा मसूर-1 (एल एच 89-48)

2006

135-138

14

हरियाणा

सभी रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोधी

वी एल मसूर 125

2006

170-175

18-20

उत्तराखण्ड़ के पर्वतीय क्षेत्र

उकठा प्रतिरोधी, दानें छोटे एवं काले रंग के

वी एल मसूर 126

2006

126-150

12-16

उत्तरी-पश्चिमी, उत्तरी-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र

उकठा तथा रतुआ के मध्यम प्रतिरोधी, दानें छोटे एवं काले रंग के

मालवीय विश्वनाथ (एच यू एल-57)

2005

125-130

14

उत्तरी-पूर्वी मैदानी क्षेत्र

उकठा तथा रतुआ प्रतिरोधी तथा दोना छोटा

के एल एस 218

2005

125-130

14-15

उत्तरी-पूर्वी मैदानी क्षेत्र

उकठा तथा रतुआ प्रतिरोधी तथा दोना छोटा

पंत मसूर-5

2001

130-165

15-18

उत्तराखण्ड़

उकठा प्रतिरोधी तथा दाना मोटा

पूसा वैभव (एल-4147)

1997

120-125

17

उत्तरी-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र

आयरन की अधिकता

पूसा शिवालिक (एल-4676)

1995

120-125

15

उत्तरी-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र

मोटा दाना, उकठा एवं रतुआ प्रतिरोधी

प्रजातियों का चुनाव तथा बुआई का समय

     क्षेत्र विशेष की जलवायु एवं प्रजाति के विभिन्न गुणों जैसे कि उपज, बीमारी प्रतिरोधिता एवं दानों के आकार के आधार पर प्रजातियों का चुनाव निर्भर करता है। उन्नत प्रजातियों के बीज को किसी विश्वसनीय स्रोत से खरीदते समय उसके बैग पर लिखी समस्त आवश्यक सूचनाएं जैसे अंकुरण, भौतिक शुद्वता, आनुवांशिक शुद्वता, लॉट नम्बर, आदि के सहित सारणी-2 में वर्णित बीज मानकों के आधार पर अच्छी तरह से पढ़ कर ही बीज की खरीददारी करनी चाहिए। बीज उत्पादन के लिए बुआई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक प्रजातियों एवं क्षेत्र के अनुसार उचित रहता है।

                                                              

                    सारणी-2: उन्नत बीज के मानक

बीज के मानक

बीज मानकों का स्तर

आधार बीज

प्रमाणित बीज

दूरी

10 मीटर

5 मीटर

अन्य प्रजातियों के पौधें

0.10 प्रतिशत

0.20 प्रतिशत

फसल के निरीक्षणों की संख्या

दो बार

दो बार

बीज लॉट का आकार (अधिकतम)

200 क्विंटल

200 क्विंटल

शुद्व बीज (न्यूनतम)

98 प्रतिशत

98 प्रतिशत

शुद्व बीज (न्यूनतम)

98 प्रतिशत

98 प्रतिशत

अक्रिय तत्व (अधिकतम)

दो प्रतिशत

दो प्रतिशत

अन्य फसलों के बीज (अधिकतम)

05 प्रति कि.ग्रा.

10 प्रति कि.ग्रा.

खरपतवारों के कुल बीज (अधिकतम)

10 प्रति कि.ग्रा.

20 प्रति कि.ग्रा.

अन्य प्रजाति के बीज (अधिकतम)

10 प्रति कि.ग्रा.

20 प्रति कि.ग्रा.

अंकुरण कठोर बीज के सहित (न्यूनतम)

75 प्रतिशत

75 प्रतिशत

बीज में नमी (अधिकतम)

09 प्रतिशत

09 प्रतिशत

वायुरोधी पैकिंग के दौरान बीज में नमी (अधिकतम)

08 प्रतिशत

08 प्रतिशत

कार्यशील बीज का नमूना शुद्वता विश्लेषण

60 ग्राम

60 ग्राम

कार्यशील बीज का नमूना अन्य प्रजातियों की गणना

600 ग्राम

600 ग्राम

खाद एवं उर्वरक

     मृदा में जीवांश पदार्थ की कमी होने की स्थिति में 150-200 क्विंटल गोबर की खाद को बुआई से पूर्व अन्तिम जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। उर्वरकों के रूप में मसूर को 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन तथा 45-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति हेतु 100 कि.ग्रा. डीएपी प्रति हैक्र की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में बिखेर कर अथवा सीडड्रिल के द्वारा बीज की बुआई क