रबी में बीज शोधन कब और कैसे Publish Date : 09/12/2023
रबी में बीज शोधन कब और कैसे
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
उत्तर प्रदेश की फसलों में विभिन्न प्रकार के कीट/रोग एवं खरपतवारों आदि के चलते प्रतिवर्ष लगभग 7 से 25 प्रतिशत तक की क्षति होती है। जिसके अन्तर्गत 33 प्रतिशत खरपतवारों के द्वारा, 26 प्रतिशत रोगों के द्वारा, 20 प्रतिशत कीटों के द्वारा, 7 प्रतिशत भंडारण के द्वारा, 6 प्रतिशत चूहों के द्वारा तथा 8 प्रतिशत अन्य कारण सम्मिलित होते हैं।
उक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि फसलों को खरपतवारों के बाद सबसे अधिक क्षति रोगों के द्वारा होती है। कभी-कभी बीमारियों के कारण होने वाली यह क्षति माहमारी का रूप भी ग्रहण कर लेती है और इसके प्रकोप से शत-प्रतिशत तक फसल नष्ट भी हो जाती है।
इस प्रकार से रबी फसलों के अनेक रोगों का प्रारंभिक संक्रमण बीज, भूमि अथवा इन दोनों माध्यम से ही होता है। रोग कारक फफूंदी व जीवाणु बीज से लिपटे रहते हैं। फफूंदी बीज की सतह पर सतह के नीचे या बीज के अंदर निष्क्रिय अवस्था में मौजूद रहते हैं। बीज की बुआई करने के बाद फफूंदी अपनी प्रकृति से अनुसार नमी प्राप्त करते ही उगते बीज, अंकुर या पौधों के विभिन्न भागों पर आक्रमण करके रोग उत्पन्न करते हैं। इसके लिए बुआई करने से पूर्व बीज का उपचार उपयुक्त फफूंदी-नाशक रसायनों के माध्यम से किया जाता है। रोगों से फसलों को बचाने के लिए बीज उपचार ही एकमात्र सरल, सस्ता एवं सुरक्षित उपाय हैं।
बीज शोधन का क्या है उद्देश्य
बीज शोधन का मुख्य उद्देश्य बीज जनित या भूमि जनित रोगों को रसायनों एवं बायोपेस्टिसाइड से शोधित कर देने से बीजों एवं मृदा में पाए जाने वाली बीमारियों के शुक्राणुओं जीवाणुओं को नष्ट करना होता है। बीज शोधन के लिए फफूंदी नाशक रसायनों एवं बायोपेस्टिसाइड्स को बुवाई से पूर्व सुखा अथवा कभी-कभी संस्स्तुतियों के अनुसार घोल बनाकर किया जाता है जिसके कारण इनकी एक परत बीजों की बाहरी सतह पर बन जाती है जो बीजों के साथ पाए जाने वाले शुक्राणुओं/जीवाणुओं को अनुकूल परिस्थितियों में नष्ट कर देती है।
साथ ही मृदा में पाए जाने वाले रोग कारकों के संक्रमण के लिए भी एक कवच का काम करती है। इस प्रकार बीज जनित/भूमि जनित रोग से अगली फसल रोग रहित अथवा रूप मुक्त तैयार हो जाती है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ फसलों के विशिष्ट रोग जैसे कड़वा रोग का नियंत्रण भी शोध से ही संभव है इस प्रकार से कम खर्चे में ही भविष्य के अधिक खर्च से बचा जा सकता है
बीज शोधन के क्या है लाभ
यदि रबी के बीज की बुवाई शोधन करके की जाती है, तो निश्चित रूप से कई रोग ऐसे होते हैं, जिन पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।
1. बीज का शोधन करने से बीज की सडन कम हो जाती है।
2. बीज का उपचार करने से बीज की सतह पर चिपका हुआ रसायन उसके चारों ओर की मिट्टी में मौजूद फफूंदी को नष्ट कर देने की क्षमता रखता है।
3. बीज का शोधन करने से बीज का अंकुरण अच्छा व एक समान रूप से होता है और जब बीज सड़ने से बच जाता है तो उससे उगने वाला पौधा भी स्वस्थ ही होता है। अंकुरण पर आक्रमण करने वाली फफूंदी की संख्या भी कम हो जाती है, जिससे अधिक मात्रा में अंकुर जमीन के ऊपर आ पाते हैं।
4. बीज से फैलने वाली बीमारियों की संभावना कम हो जाती है।
5. बीज का उपचार करने से फसल सुदृझ़ एवं स्वस्थ होती है, जिससे फसलीय उत्पादन में आशातीत वृद्धि होती है और कृषकों को होने वाले आर्थिक लाभ में भी वृद्वि होती है।
रबी फसलों के बीजों का उपचार कैसे करें-
रबी की प्रमुख फसलों में गेहूं, गठिया गेहूं, जौ, तोरिया (लाही), राई/सरसों, अलसी, कुसुम, रबी मक्का, शिशु मक्का, जई, बरसीम, चना, मटर, मसूर और रबी राजमा आदि प्रमुख फसले हैं। इन फसलों के बीजों का बीज शोधन करके ही बोना चाहिए। इन फसलों में बीज उपचार के लिए प्रयुक्त रसायन की मात्रा एवं नाम तथा प्रयोग विधि निम्नानुसार है-
गेहूं का बीज शोधन
गेंहू में बीज जनित एवं भूमि जनित रोगों की रोकथाम के लिए बीज शोधन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए जैव कवकनाशी ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या कार्बाक्सिल नामक दवा की 2 से 2.5 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए अथवा 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कार्बेन्डाजिम नामक दवा से बीज शोधन करना चाहिए।
जौ का बीज शोधन करने की विधि
जौ की फसल को बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिए अंतःप्रवाही फफूंदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम का 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण या कार्बाॅक्सीलिक 75 प्रतिशत घुलनशील की 2.5 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करना चाहिए अथवा जैव कवकनाशी ट्राइकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित किया जा सकता है।
तोरिया लाही का बीज शोधन कैसे करें-
तोरिया में लगने वाली बीज जनित बीमारियों से बचने के लिए बीज का शोधन करना अनिवार्य होता है। इसके बीज का शोधन करने के लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से अथवा 3 ग्राम मैन्कोज़ेब प्रति किलोग्राम बीज की दर से या 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम मेटालैक्सिल नामक दवा से बीज शोधन करना चाहिए। इस प्रकार बीज शोधन से सफेद गेरूई एवं तुलासिता नामक रोग से प्रभावी बचाव होता है।
राई सरसों का बीज शोधन कैसे करें-
राई अथवा सरसों की फसल में लगने वाले सफेद गेरूई एवं तुलासिता आदि रोगों की रोकथाम करने के लिए 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से थीेरम या 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से मैटालैक्सिल नामक दवा से बीज का शोधन करके बुवाई करनी चाहिए।
अलसी में भी शोध कैसे करें-
अलसी के बीच शोध हेतु थीरम या दो ग्राम कैप्टॉन अथवा 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलोग्राम की दर से अलसी के बीज का शोध करके बुवाई करनी चाहिए। इससे अलसी की फसल में झुलसा तथा उकठा आदि बीज एवं मृदा जनित रोगों से प्रभावी बचाव किया जा सकता है।
कुसुम में बी का शोधन कैसे करें-
कुसुम की फसल को झुलसा तथा उकठा आदि भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव हेतु 2.5 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कैप्टॉन अथवा 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलोग्राम की दर से कुसुम के बीज का शोधन करके ही बीज की बुवाई करनी चाहिए।
रबी राजमा के बीच का शोधन करने की विधि-
रबी के मौसम में बोई जाने वाली राजमा की फसल में बीज जनित रोगों से बचने के लिए थीरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब 3 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज की दस से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए। 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम को मिलाकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए।
मसूर का बीज शोधन कब और कैसे-
मसूर को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए थीरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब 3 ग्राम अथवा ट्राईकोडर्मा 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज को शोधित करके बुवाई करनी चाहिए। अथवा 2 ग्राम थीरम और एक ग्राम कार्बेन्डाजिम को मिलाकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके ही बुवाई करनी चाहिए। बीज शोधन के बाद राइजोबियम कल्चर एवं पीएसबी कल्चर के द्वारा 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार भी अवश्य करना चाहिए।
मटर के बीज का शोधन कैसे करें-
मटर की फसल को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए थीरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब 3 ग्राम अथवा ट्राईकोडर्मा 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज ककी दर से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए, अथवा दो ग्राम थीरम और एक ग्राम कार्बेन्डाजिम को मिलाकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए। बीज का शोधन करने के बाद राइजोबियम कल्चर एवं पीएसबी कल्चर द्वारा 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए।
चने के बीज का शोधन कब और कैसे-
चना की फसल को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए थीरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब 3 ग्राम अथवा ट्राइकोडरमा 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का शोधन करके बुवाई करनी चाहिए, अथवा दो ग्राम थीरम व एक ग्राम कार्बेन्डाजिम को मिलाकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए। बीज शोधन के बाद राइजोबियम कल्चर एवं पीएसबी कल्चर द्वारा 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए। इससे जमाव अच्छा होगा और उत्पादन भी अच्छा प्राप्त होगा।
रबी मक्का में भी शोध कब और कैसे-
रबी मक्का की फसल को बीज एवं भूमि जनित बीमारियों से बचाने के लिए 2.5 ग्राम थीरम अथवा 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके बुवाई करना चाहिए। इससे जमाव अच्छा होगा और पौधे स्वस्थ रहेंगे।
शिशु मक्का में भी शोध कैसे करें-
शिशु रबी मक्का की फसल को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से बचाने के लिए 2.5 ग्राम थीरम अथवा 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए।
जई में बीच का शोधन कब और कैसे करें-
जई की फसल में बीज जनित रोग आवृत कण्डुवा की रोकथाम के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थीरम अथवा 2.5 ग्राम जिंक मैंगनीज कार्बाेमेंट से शोधित करके बुवाई करनी चाहिए। इससे बीज का जमाव अच्छा होगा और फसल भी स्वस्थ होगी।
बरसीम की फसल का बीज शोधन कब और कैसे करें-
बरसीम की फसल को बीज जनित रोगों की रोकथाम करने के लिए 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से थीरम या 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीच की दर से मेटालैक्सिल नामक दवा से बीज शोधन करके बुवाई करनी चाहिए।
कीटनाशकों के प्रयोग में सावधानियां
फसलों में कीटों से सुरक्षा के लिए फसल रक्षा रसायन अर्थात कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। यह कीटनाशक जहरीले तथा मूल्यवान होते हैं जिनके प्रयोग के सम्बन्ध में जानकारी न होने के कारण इनसे नुकसान भी हो सकता है। अतः कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने के साथ ही साथ इनका प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियां रखी जानी चाहिए, इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए और इसकी जानकारी किसानों को होना भी बहुत जरूरी है।
कीटनाशकों के घातक प्रभावों से बचने के लिए आवश्यक होता है कि उनकी पैकिंग पर लिखे हुए दिशा-निर्देशों का पालन सही प्रकार से किया जाए। जिसमें किसी प्रकार की लापरवाही नही बरती जानी चाहिए, क्योंकि थोड़ी सी ही असावधानी के होने पर कुछ बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
कीटनाशकों के प्रयोग से पहले बरती जानी वाली सावधानियाँ
1. प्रयोग करने से पहले ही कीटों की अच्छी तरह से पहचान कर लेना चाहिए। यदि कीटों की पहचान संभव नहीं हो पाए तो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कीट विशेषज्ञ के माध्यम से कीट की पहचान कराकर ही कीटनाशक खरीदना चाहिए।
2. किसी भी कीटनाशक का प्रयोग तब ही करना चाहिए जबकि कीट के द्वारा होने वाली आर्थिक क्षति स्तर सीमा बढ़ गई हो।
3. कीटों को समाप्त करने का सही उपाय के बारे में उचित जानकारी ले लेनी चाहिए।
4. प्रकोपित कीट के लिए संतुत किए गए कीटनाशी रसायन का ही प्रयोग करना चाहिए।
5. प्रयुक्त किए जाने वाले कीटनाशियों की विषाक्तता को प्रदर्शित करने के लिए कीटनाशक के डिब्बो पर तिकोने आकार का हरा या नीला या पीला अथवा लाल रंग का निशान बना होता है। जब कई कीटनाशी उपलब्ध हो तो लाल निशान वाले कीटनाशी का पहला प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि लाल निशान के कितना सी समस्त स्तनधारी पर सबसे ज्यादा नुकसान करती है लाल निशान वाले कितना सी की अपेक्षा पीले रंग के निशान वाली काम और पीले रंग वाली की अपेक्षा नीले रंग के निशान वाली कम नुकसान पहुंचती है तथा सबसे कम नुकसान हरे रंग के कीटनाशी से होता है
कीटनाशक खरीदते समय हमेशा उसके बनने की तिथि एवं उपयोग करने की अंतिम तिथि को आवश्यक पढ़ लेना चाहिए ताकि पुरानी दवा से बचा जा सके क्योंकि जितनी अधिक पुरानी दवा होगी वह उतनी ही कम इफेक्टिव भी होगी।
- कीटनाशी के पैकिंग के साथ एक उपयोग करने की पुस्तक अर्थात लीफलेट भी आता है, इसको भी पढ़ लेना चाहिए और उसमें दी गई चेतावनी का हरसंभव पालन करना चाहिए।
- कीटनाशकों का भंडारण हमेशा साफ सुथरी एवं हवादार एवं सुख स्थान पर करना चाहिए।
- यदि अलग-अलग समूह के कीटनाशी का प्रयोग करना है तो एक के बाद दूसरे का प्रयोग करना चाहिए।
- ऐसे कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिनके प्रयोग से पत्तों में रासायनिक अमल बनता हो।
कीटनाशकों के प्रयोग करते समय ध्यान रखे जाने वाली सावधानियां
- शरीर को बचाने वाले कपड़े ठीक ढंग से पहन लेना चाहिए, जिससे यदि उसमें कीटनाशी लग जाए तो बदलकर दूसरे कपड़े पहन सके तथा हाथों में रबड़ के दस्ताने पहन लेना चाहिए।
- कीटनाशी छिड़कने वाले को छिड़काव की पूरी जानकारी होना चाहिए तथा उसके शरीर पर कोई घाव नहीं होना चाहिए इस बात का ध्यान अवश्य रखें।
- बहुत जहरीले कीटनाशी को प्रयोग करते समय अकेले नहीं रहना चाहिए अपने साथ दूसरे किसान भाई को भी रखना चाहिए।
- कीटनाशी का गोल बनाते समय किसी बच्चे या उन आदमी या जानवर को पास में नहीं रहने देना चाहिए।
- कीटनाशी को मिलाने के लिए लकड़ी का डंडा प्रयोग करना चाहिए।
- साथ मिली हुई प्रयोग पुस्तिका को दोबारा पढ़कर उसके अनुदेशकों का अनुपालन करना चाहिए।
- कीटनाशक छिड़कने वाले यंत्र की जांच कर लेना चाहिए यदि खराब है तो पहले उसकी मरम्मत कर लेना चाहिए।
- कीटनाशी छिड़काव के बाद त्वचा को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।
- तरल कीटनाशकों को सावधानी पूर्वक मशीन में डालना चाहिए और यह ध्यान देना चाहिए यह किसी प्रकार से कान, आंख और नाक आदि में न जाने पाए यदि ऐसा होता है तो उसे तुरंत साफ पानी से बार-बार धोना चाहिए।
- छिड़काव के समय साफ पानी की पर्याप्त मात्रा पास ही में रखनी चाहिए।
- रसायन का धुआं सांस के द्वारा अंदर नहीं जाने देना चाहिए।
- कीटनाशी का प्रयोग करते समय या सुनिश्चित कर लेना चाहिए की कीटनाशी की मात्रा पूरी तरह पानी में मिल गई है अथवा नहीं।
- कीटनाशी मिलते समय जिधर से हवा आ रही हो उसी तरफ खड़ा होना चाहिए।
- कीटनाशी का प्रयोग करते समय कोई खान-पान या धूम्रपान नहीं करना चाहिए।
- हवा की विपरीत दिशा में खड़े होकर छिड़काव नहीं करना चाहिए।
- नोजल की सफाई मुंह से या मुंह के पास लाकर नहीं करनी चाहिए।
- कीटनाशी का छिड़काव करने के लिए उपयुक्त समय सुबह या शाम होती है तथा यह ध्यान रखना चाहिए की हवा की गति 7 किलोमीटर प्रति घंटे से कम होना चाहिए तथा तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास रहना अच्छा रहता है।
- कीटनाशी का प्रभाव किसी व्यक्ति पर दिखाने पर उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं और साथ में कीटनाशी का डब्बा भी लेकर जाएं।
- फूल आने पर फसलों पर कम छिड़काव करना चाहिए और यदि छिड़काव करना हो तो हमेशा शाम के समय करना चाहिए, जिससे मधुमक्खियां रसायन से प्रभावित न हो सकें।
- एक बार में जितनी जरूरत हो उतने ही कीटनाशी दवा ले जाएं और उसी का छिड़काव करें।
कीटनाशियों के प्रयोग के बाद सावधानियां
- बचे हुए कीटनाशक की शेष मात्रा को सुरक्षित भंडार कर देना चाहिए।
- कभी भी कीटनाशी का गोल पंप में नहीं छोड़ना चाहिए।
- पंप को ठीक से साफ करके ही भंडार गृह में रखना चाहिए।
- खाली डिब्बे को किसी अन्य काम में ना ले बल्कि उसे तोड़कर 2 फीट गहरी मिट्टी में दबा देना चाहिए।
- कागज या प्लास्टिक के डिब्बे को यदि जलाना हो तो उसके धुएं के पास नहीं खड़ा होना चाहिए।
- कीटनाशी छिड़काव के समय प्रयोग किए गए कपड़े बर्तन आदि को ठीक प्रकार से धोकर रखना चाहिए।
- अंतिम छिड़काव व फसल की कटाई या तुड़ाई में दवा में बताई गई अंतर का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
- कीटनाशी छिड़काव के बाद 6 घंटे तक वर्षा नहीं होनी चाहिए यदि 6 घंटे के अंदर वर्षा हो जाती है तो पुनः खेत में छिड़काव करना चाहिए।
- कीटनाशी छिड़काव के बाद छिड़क गए खेत में किसी अन्य आदमी या जानवर को कुछ देर तक नहीं जाने देना चाहिए।
- कीटनाशि का छिड़काव करने के बाद ठीक से स्नान करके कपड़े पहन लेना चाहिए।
विष का उपचार कैसे करें
सभी सावधानियां रखने के बावजूद भी यदि कोई व्यक्ति इन कीटनाशियों का शिकार हो जाए तो निम्नलिखित सावधानियां अपनानी चाहिए
- रोगी के शरीर से विष को यथाशीघ्र निकलने का प्रयास करना चाहिए।
- विस्मारक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
- रोगी को तुरंत किसी पास के अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
- यदि किसी व्यक्ति जहर खा लिया है तो एक गिलास गुनगुने पानी में दो चम्मच नमक मिलाकर उल्टी करनी चाहिए तथा गुनगुने पानी में साबुन घोल कर देना चाहिए तथा एक गिलास गुनगुने पानी में एक ग्राम जिंक सल्फेट मिलकर देना चाहिए।
- यदि व्यक्ति ने विष का सेवन कर लिया है तो शीघ्र ही खुले स्थान पर ले जाना चाहिए शरीर के कपड़े ढीले कर देना चाहिए। यदि दौरे पड़ रहे हो तो अंधेरे स्थान पर ले जाना चाहिए और यदि सांस लेने में समस्या हो रही है तो पेट के सहारे लेटाकर उसकी बाहों को सामने की ओर फैला लें एवं रोगी की पीठ को हल्के-हल्के फ्लेट हुए दबाए तथा कृत्रिम सांस का भी प्रबंध करें।
इस तरह उपरोक्त सावधानियां को ध्यान रखते हुए यदि की कीटनाशी का प्रयोग किया जाएगा तो उनको किसी प्रकार का नुकसान होने से बचाया जा सकता है लेकिन सभी किसान भाइयों को इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि कीटनाशकों के प्रयोग करने से लेकर और उसके भंडारण और रखरखाव तक विशेष सावधानी बरतें। यदि किसी प्रकार की भी कठिनाई या सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही हो तो निकट के डॉक्टर के पास जाना चाहिए और तुरंत ही इसका उपचार लेना चाहिए।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।