किसानों की कमाई: मूली की अगेती खेती Publish Date : 01/09/2023
किसानों की कमाई: मूली की अगेती खेती
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा
भारत में मूली की खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है, मूली की खेती सर्दियों में की जाती ही है और किसान अभी मूली की अगेती प्रजातियों की बुआई कर अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के साथ ही अच्छी कमाई भी कर सकते हैं। लेकिन मूली की अगेती बुआई करने से पूर्व किसानों को कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है।
लगभग पूरे भारत में ही लोग मूली को सलाद के रूप में खाना पसंद करते हैं और यही कारण है कि मूली सलाद का एक जरूरी और महत्वपूर्ण भाग होती है। वैसे सर्दियों में तो सभी किसान भाई अपने खेतों में मूली की बुआई करते ही हैं, परन्तु यदि किसान भाई मूली की खेती से अधिक आमदनी प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए वह लोग मूली की अगेती बुआई भी कर सकेते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा मूली की अगेती खेती के लिए विभिन्न प्रजातियों को विकसित किया है, जिनमें पूसा चेतकी और पूसा मृदुला आदि को विशेष रूप से प्राथमिकता दी जा सकती है। पूसा चेतकी, मूली की कम समय में तैयार होने वाली प्रजाति है, इस प्रजाति के पत्ते एक समान रूप से हरे एवं बिना कटे हुए होते हैं, जिनका उपयोग सब्जी बनाने में किया जा सकता है। मूली की प्रजाति पूसा चेतकी, बुआई के बाद 35 से 40 दिन में पककर तैयार हो जाने वाली एक किस्म है। पूसा चेतकी के पौधों की जड़ें लगभग 25 से 30 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है और यह खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होती है।
आमतौर पर मूली लम्बे आकार और सफेद रंग की होती है,परन्तु इस सिलसिले में मूली की दूसरी प्रजाति यानी कि पूसा मृदुला आकार में गोल और लाल रंग की होती है और इसी के साथ यह बहुत ही समय में तैयार होने वाली किस्म है। इस किस्म को तैयार होने में 28 से 32 दिन का समय लगता है। यही कारण है कि मूली की इस प्रजाति की खेती शहरी क्षेत्रों के किचन गार्डन्स में भी आसानी के साथ की जा सकती है। यह किसी छोटे आकार के गमले में भी अच्छी तरीके से तैयार हो सकती है।
मूली के प्रजाति पूसा चेतकी की बुआई किसान भाई 15 जुलाई से लेकर 15 सितम्बर तक कभी भी कर सकते हैं, जबकि मूली की प्रजाति पूसा मृदुला की बुआई किसान भाई 20 अगस्त से लेकर मध्य नवत्बर तक कभी भी कर सकते हैं।
मूली के एक जड़ वाली फसल होने के कारण मूली की खेती के लिए बलुई अथवा दोमट मृदा को मूली की खेती के लिए उत्तम माना जाता है, और यदि किसान भाई चाहें तो मूली की बुआई अपने खेत की मेंड़ों पर भी कर सकते हैं। चूँकि मूली की फसल में कीट आदि लगते ही रहते है अतः किसान भाईयों से अपेक्षा की जाती है कि वे मूली की बुआई करने से पूर्व इसका बीजोपाचर आवश्यक रूप से करें।
मूली पर लगने वाले कीट इसकी पत्तियों का रस चूस लेता है, जिसके कारण मूली की पत्तियों पर धब्बे बना जाते हैं और मूली के फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। अतः ऐसे में मूली का बीजोपचार आवश्यक रूप से ही करना चाहिए।
मूली की बुआई ऐसे खेते में करना उचित रहता है जिसके अन्दर जल-भराव की समस्या न हो। मूली की बुआई पूरे खेत में मेंड़ बनाकर उनके ऊपर करना ही उचित रहता है और इन मेंड़ों की आपसी दूरी 50-60 सेंटीमीटर से अधिक नही रखनी चाहिए। मूली की हमेशा हाथों से ही करनी चाहिए और इसकी बुआई करते सयम पौधे से पौधे के बीच की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर ही रखनी चाहिए।
मूली की बुआई करने के तुरन्त बाद ही पेन्डीमेथिलिन नामक खरपतवार नाशक का छिड़काव कर देना चाहिए। जडों की समुचित बढ़वार के लिए 20 कि.ग्रा. सल्फा प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए।
नींबू की बागवानी लगाने का उचित समय
किसी भी बागवानी को लगाने के लिए मानसून के मौसम को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, अतः किसान भाई इस समय में नींबू के पौधों को भी लगाकर अपनी आय में वृद्वि कर सकते हैं। हालांकि, किसानों को नींबू लगाने से पूर्व यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि वे लाईम लगाना चाहते हैं अथवा लेमन, क्योंकि इन दोनों को ही हिन्दी में नींबू कहा जाता है। वहीं जहाँ तक कागजी नींबू की बात है तो इसको खट्टा नींबू कहते हैं और मार्केट में अगर सबसे अधिक माँग की बात करे तो यही वह नींबू है जिसकी मार्केट में डिमान्ड सदैव ही बनी रहती है।
कागजी नींबू आकार में छोटा तथा इसका वजन 40 से 45 ग्राम और इसका छिलका काफी महीन होता है। कागजी नींबू की माँग इसके अन्दर उपलब्ध अधिक रस के होने के कारण होती है। इस नींबू में काँटें भी अधिक होती है जों पेड़ में ऊपर की ओर बढ़ते हैं।
जबकि, लेमन नींबू आकार में कागजी नींबू की अपक्षा बड़ा होता है इस नींबू का वजन लगभग 50-70 ग्राम के बीच होता है और इस नींबू उपयोग सबसे अधिक अचार बनाने के लिए किया जाता है। लेमन नींबू के पेड़ में काँटें नही होते हैं और यदि होते भी हैं तो बहुत छोटे होते हैं। लेमन नींबू का पेड़ झाड़ीनुमा होता है और इस नींबू में खटास भी कागजी नींबू की अपेक्षा थोड़ी कम होती है।
नींबू की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु
नींबू की खेती करने के लिए नम तथा गर्म जलीवायु की आवश्यकता होती है और इसकी खेती के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड औसत तापमान को उपयुक्त माना जाता है, जबकि, 75 से 200 सेंटीमीटर तक की वर्षा वाले क्षेत्रों में नींबू की खेती अधिक लाभाकारी रहती है। हालांकि, इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है कि ऐसे क्षेत्र जहाँ एक लम्बे समय तक ठएड़ पड़ती है और पाला पड़ने की सम्भावानाएं भी मौजूद रहती हैं, उन क्षेत्रों की जलवायु नींबू की खेती के लिए उपयुक्त नही रहती है।
नींबू की खेती के लिए मृदा
नींबू की खेती सभी प्रकार की उपजाऊ मृदाओं में आसानी से की जा सकती है, परन्तु नींबू के उत्पादन की दृष्टि से इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। नींबू की खेती करने के लिए खेत की मृदा का पीएच मान 5.5 से लेकर 6.5 के बीच होना चाहिए। यदि मृदा का पीएच मान इससे कम है तो इसके लिए किसान भाई खेत की मिट्टी में बेकिंग सोड़ा मिला सकते हैं।
नींबू की उन्नत किस्में
बारामासीः- नींबू की इस वैरायटी में वर्ष में 2 बार नींबू के फल आते हैं तथा इसके फलों के पकने का समय जुलाई से लेकर अगस्त तथा फरवरी से लेकर मार्च तक का समय होता है।
कागजी नींबूः- यह नींबू की कोई विशेष प्रजाति नही होती है।
नींबू में सिंचाई
एक अच्छे उत्पादन को प्राप्त करने के लिए नींबू की खेती में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक होता है। नींबू की खेती में सर्दियों में 20 दिन तथा गर्मियों में 10 के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए जबकि वर्षाकाल में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करना आवश्यक होता है।
नींबू के खेतों में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम अर्था टपक सिंचाई प्रणाली को अधि उपयुक्त पाया गया है। इसके साथ ही सिंचाई करते समय यह आवश्यक रूप से ध्यान रखने योग्य तथ है कि नींबू के खेतों में किसी भी दशा में जल-भराव नही होना चाहिए।
नींबू की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रबन्धन कैसे करें
किसान भाई नींबू की खेती में गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग दबखूबी कर सकते हैं। नींबू के 03 वर्ष के पौधे में वर्ष में दो बार फूल के आने से पहले वर्मी कम्पोस्ट अथवा गोबर की खाद का प्रयोग 5 किग्रा. प्रति पौधा की दर से करना उचित रहता है। नींबू के पौधें की आयु 10 वर्ष से अधिक होने पर साल में एक बार 250 ग्राम डीएपी, 150 गाम नाइईट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम का प्रयोग भी आवश्यक रूप से करना चाहिए।
नींबू के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनका उपचार
नींबू के पौधों में विभिन्न प्रकार के रोगों एवं कीटों का प्रकोप होता है। अतः नींबू की उचित पैदावार को प्राप्त करने के लिए सही समय पर रोग एवं कीटों का प्रबन्धन करना भी आवश्यक होता है। हालांकि इसके लिए किसानों को नींबू के पौधों को लगाते समय ही कुछ तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।
सर्वप्रथम तो किसानों को चाहिए कि वे पौधों को लगाते समय ही स्वस्थ्य पौधों का उपयोग करें, क्योंकि यदि आपके द्वारा रोपित किए जाने वाले पौधे ही स्वस्थ तथा वायरस विहीन होंगे तो नींबू की फसल में रोग लगने की सम्भावना स्वतः ही कम हो जाती है।
वैसे नींबू की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों में कैंकर, आर्द्र-गलन, नींबू का तेला और धीमा उकठा रोग आदि शामिल हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभागए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।