अब हर साल रागी की चार फसलें ले सकेंगे किसान      Publish Date : 29/06/2025

       अब हर साल रागी की चार फसलें ले सकेंगे किसान

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

हैदराबाद स्थित इक्रीसैट के शोधकर्ताओं ने रागी के लिए रैपिड-रागी नामक दुनिया का पहला स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल विकसित किया है, जो फसल चक्र को 100-135 दिनों से घटाकर 68-85 दिन कर देता है।

अब साल में रागी की चार-पांच फसलें उगाई जा सकेंगी। हैदराबाद स्थित अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के शोधकर्ताओं ने रागी के लिए रैपिड-रागी नामक दुनिया का पहला स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल विकसित किया है, जो फसल चक्र को 100-135 दिनों से घटाकर 68-85 दिन कर देता है। पारंपरिक तरीके से केवल एक-दो फसलें ही होती हैं।

इक्रीसैट के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित रागी की खेती का नया प्रोटोकॉल फसल के विकास चक्र को काफी हद तक छोटा कर देता है, जिससे प्रति वर्ष चार से पांच फसलें प्राप्त हो सकती हैं। इससे श्री अन्न अनुसंधान से जुड़े प्रयासों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, खासकर एशिया और अफ्रीका में, जहां फिंगर मिलेट यानी रागी, जिसे मडुआ भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण पोषण संबंधी भूमिका निभाता है।

                                                             

इक्रीसैट के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इसे चना और अरहर के बाद तीसरा ओपन-एक्सेस प्रोटोकॉल बताया है। इक्रीसैट के वैश्विक अनुसंधान कार्यक्रम निदेशक डॉ. सीन मेयस ने बताया है कि अनुकूल प्रकाश, तापमान, सिंचाई और रोपण के सही घनत्व से यह विधि संसाधनों की बचत कर सकती है। मेयस ने इसे विभिन्न कृषि दशाओं के लिए उपयुक्त बताया है

बाजरा और ज्वार के बाद तीसरा सबसे महत्वपूर्ण श्री अन्न रागी (थ्पदहमत डपससमज) है, जो सार्वजनिक पोषण योजनाओं और स्कूल फीडिंग कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह घोषणा वैश्विक स्तर पर श्री अन्न को बढ़ावा देने के लिए चल रहे प्रयासों के बीच की गई है।

बता दें कि भारत द्वारा 2018 को राष्ट्रीय श्री अन्न वर्ष घोषित करने और संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को अंतरराष्ट्रीय श्री अन्न वर्ष के रूप में मान्यता देने के बाद, यह रागी की खेती का नया प्रोटोकॉल श्री अन्न उत्पादन को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभा सकता है, जिससे पोषण सुरक्षा में सुधार करने में मदद मिलेगी।

                                                

डॉ हिमांशु पाठक बताते हैं कि रैपिड-रागी स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल अपनाने से रागी की खेती में समय एवं लागत की बचत होगी। साथ ही, इससे जलवायु-लचीली फसलों के प्रजनन में भी मदद मिलेगी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।