धान की एक शानदार प्रजातिः काला नमक      Publish Date : 18/06/2025

          धान की एक शानदार प्रजातिः काला नमक

                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

काला नमक धानः बुद्ध के प्रसाद से लेकर वैश्विक पहचान तक, धान की एक शानदार किस्म काला नमक का इतिहास और उगाने की पूरी विधि बता रहे हैं प्रोफेसर आर. एस. सेंगर-

काला नमक धान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अनुमान अलीगढ़वा (जिला सिद्धार्थनगर) में पुरातत्व विभाग की खुदाई के दौरान मिले दानों से लगाया जाता है। इसी से माना जाता है कि काला नमक धान की खेती इस क्षेत्र में सैकड़ों सालों से की जाती रही है। यह स्थान हिमालय की तलहटी में स्थित है और इसे धान का कटोरा नाम से भी जाना जाता है। आधुनिक अलीगढ़वा को पुराने समय में कपिलवस्तु के नाम से जाना जाता था, जो गौतम बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन की राजधानी थी। शुद्धोधन का अर्थ भी शुद्ध धान से ही है।

खाद्यान्न फसलों में धान का विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान है। भारत, धान की विभिन्न किस्मों का घर है, जिनमें बासमती धान अपने विशिष्ट गुणों के लिए वैश्विक पटल पर लोकप्रिय है। बासमती धान की कई प्रजातियां भारत की प्राकृतिक विरासत मानी जाती हैं। इसी क्रम में पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार में सुगंधित धान की एक प्रमुख किस्म काला नमक, किसानों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है। कुछ समय पहले काला नमक तब चर्चा में आया, जब अमेरिका की राईस टैक कम्पनी ने बासमती धान को टैक्समती नाम से बेचने के लिए पेटेंट प्राप्त कर लिया, जिसका बाद भारत की इस प्राकृतिक संपदा को पेटेंट दिए जाने का पुरजोर विरोध किया गया।

                                                            

काला नमक के क्षेत्रफल में तेजी से गिरावट के मुख्य कारणों में वर्ष 1998 और 1999 में ब्लास्ट रोग की महामारी प्रमुख रही है। इसके अलावा काला नमक चावल की पकने में लगने वाली लंबी अवधि, कम पैदावार और अच्छे बीजों की अनुपलब्धता भी इसके घटते रकबे के लिए जिम्मेदार हैं।

बुद्ध के प्रसाद से लेकर ब्रिटिश काल तक

वर्ष 1975 की खुदाई में भी एक कमरे से बुद्ध काल के चावल के दाने प्राप्त हुए, जिसे एक रसोईघर माना जाता है। दाने आकार और आकृति में काला नमक से हूबहू मेल खाते हैं। चीनी यात्री फाह्यान ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि जब राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति के बाद पहली बार कपिलवस्तु के भ्रमण पर निकले, तो रास्ते में बजहा के जंगल में मैथला गांव के कुछ ग्रामीणों ने उन्हें रोककर प्रसाद मांगा। इस पर राजकुमार सिद्धार्थ ने उन्हें भिक्षा में मिले काला नमक के दानों को प्रसाद के रूप में दिया और कहा कि किसी दलदली जगह पर इन दानों की बुवाई कर देना, जो इस क्षेत्र में एक अनुपम सुगन्ध पैदा करेगा और आप लोगों को हमेशा मेरी याद दिलाता रहेगा।

काला नमक की खेती के लिए बाजहा और अलीगढ़वा का क्षेत्र ही उत्तम माना जाता है। अगर इस प्रजाति को किसी दूसरे स्थान पर उगाया जाता है, तो यह अपनी विशिष्ट सुगंध और गुणवत्ता खो देती है। काला नमक को पहली बार संरक्षित करने का काम तीन अंग्रेजों - विलियम पेप, जे.एच. हेमपरे और ई. वॉकर ने किया, जो क्रमशः अलीदपुर, बीरडपुर और मोहाना नामक गांवों के जमींदार थे। इसके लिए चार संरक्षित क्षेत्र बाज्हा, मारती, मोती और महोली गांव में बनवाये गए। किसान काला नमक का उत्पादन न केवल अपने उपभोग के लिए करते थे, बल्कि इसका निर्यात समुद्र मार्ग से ढाका से होकर इंग्लैंड तक किया जाता था। इंग्लैंड में काला नमक की बढ़ती मांग के कारण ब्रिटिश सरकार ने कपिलवस्तु के आस-पास की भूमि को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया तथा बरीडपुर व अलीगढ़पुरा नाम के दो राज्यों की स्थापना की। दुर्भाग्यवश, स्वतंत्रता के बाद इस ओर ध्यान न देने से दोनों मंडियाँ (उसका बाज़ार तथा बीरडपुर मंडी) समाप्त हो गईं। ये सभी प्रमाण संकेत देते हैं कि काला नमक की खेती सिद्धार्थ नगर क्षेत्र में बौद्ध काल (563 ईसा पूर्व) या उससे भी पूर्व से होती आ रही है।

काला नमक धान की प्रमुख किस्में

काला नमक-201: यह पारंपरिक स्वाद और सुगंध वाली किस्म है, जो अच्छी उपज देती है। एक हेक्टेयर खेत में इसकी पैदावार 35 से 40 क्विंटल तक हो सकती है।

काला नमक-202: यह नई किस्म बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी है। इसकी उपज काला नमक-201 से भी अधिक होती है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिल सकता है।

काला नमक धान की विशेषताएं?

काला नमक एक लम्बी (128-150 सें.मी.), दीर्घावधि (160-200 दिन) और प्रकाश संवेदी प्रजाति है। इसके छिलके का रंग गहरा भूरा या काला होता है। दानों की लम्बाई मध्यम (4.1-5.5 मि.मी.), औसत में मध्यम एमाइलोज (22-30 प्रतिशत), तीक्ष्ण सुगंध तथा उबालने के बाद 2 से 2.50 गुणा तक लम्बाई में विस्तार होता है। उबालने के बाद लम्बाई व चौड़ाई का अनुपात 1.8-2.00 तक होता है। उबला हुआ चावल मुलायम, फूला हुआ, चिपचिपाहट रहित, मीठा तथा जल्दी पचने वाला होता है, साथ ही यह अपेक्षाकृत लम्बे समय तक खराब नहीं होता। गोरखपुर, बस्ती तथा सिद्धार्थ नगर के स्थानीय बाजारों में बासमती धान की तुलना में काला नमक की कीमत 50-65 प्रतिशत अधिक है। दाने की लम्बाई को छोड़कर, काला नमक अन्य बासमती धान की प्रजातियों से अधिक सुगंध एवं गुणवत्ता वाला होता है।

काला नमक धान के उत्पादन की तकनीक

कलम विधिः सिद्धार्थ नगर और बस्ती के किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली एक परंपरागत रोपाई विधि है। इसमें किसान पहले 30-35 दिन की पौध को 7-8 के गुच्छों में लगाते हैं। इसके 20-25 दिन बाद इन पौधों को उखाड़ कर अलग-अलग निश्चित दूरी पर दोबारा रोपाई कर देते हैं।

काला नमक की खेती में प्रति हेक्टेयर आठ से दस किलो बीज की आवश्यकता होती है। इसके आलावा, खरपतवारों की समस्या कम होती है, पौधों की लंबाई कम रहने से पौधे गिरने से बच जाते हैं, फसल पकने में अपेक्षाकृत कम दिन लगते हैं, फसल एक समय पर पकती है।

बीजोपचार से नर्सरी प्रबंधन तक

  • काला नमक धान की खेती के लिए बीज को एमीसान या दूसरे मरकरी फफूंदनाशी से उपचारित करके बोना चाहिए।
  • पौध तैयार करने के लिए उपजाऊ, अच्छे जल निकास और सिंचाई स्रोत के पास वाले खेत का चयन करना चाहिए।
  • 700 वर्ग मी. क्षेत्रफल में एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए पौध तैयार की जा सकती है। बीज की बुवाई मध्य जून तक कर देनी चाहिए।
  • पौधशाला में सड़ा हुआ गोबर या कम्पोस्ट खाद को मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए।
  • खेत को पानी से भर कर दो या तीन जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए। खेत को छोटी-छोटी तथा थोड़ा ऊंची उठी हुई क्यारियों में बांट लेना चाहिए।
  • बीज की बुवाई से पहले 10 वर्ग मी. क्षेत्र में 225 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 100 ग्राम यूरिया और 200 ग्राम सुपर फास्फेट को अच्छी तरह मिला देना चाहिए।
  • आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई, सिंचाई, कीट, रोग और खरपतवार की रोकथाम का उचित प्रबंधन करना चाहिए। खेत में ज्यादा समय तक पानी रुकने नहीं देना चाहिए।

रोपाई और खेत की तैयारी

ग्रीष्मकालीन जुताई के बाद खेत में रोपाई से 10 से 15 दिन पहले पानी भर देने से पिछली फसल के अवशेष नष्ट हो जाते हैं। खेती की मिट्टी को मुलायम व लेहयुक्त बनाने के लिए पानी भरे खेत की 2-3 जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर देना चाहिए। काला नमक की रोपाई का समय इसकी उपज तथा गुणवत्ता को प्रभावित करता है। 25-30 दिन की पौध धान की रोपाई के लिए उपयुक्त होती है। जुलाई माह काला नमक की रोपाई के लिए उत्तम माना जाता है। 20x15 सें.मी. की दूरी पर दो से तीन पौधों की रोपाई उचित रहती है। देर से रोपाई करने पर 15x15 सें.मी. की दूरी पर पौध की रोपाई करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

काला नमक में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता सामान्य धान की तुलना में आधी होती है। इसके लिए 50-60 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस (250 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) तथा 30 कि.ग्रा. पोटाश (50 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के उपरान्त करना श्रेयस्कर होता है। नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा का प्रयोग खेत की तैयारी के समय कर देना चाहिए। नत्रजन की बची हुई मात्रा का 1/2 भाग 50 दिन पर तथा शेष 1/2 मात्रा लगभग 70 दिन के बाद देना चाहिए। हल्की मिट्टी में नत्रजन को चार बराबर-बराबर मात्रा में रोपाई के समय, कल्ले फूटते समय, फूल आने तथा बाली बनते समय देना चाहिए। 25 से 30 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय डाल देना चाहिए।

काला नमक धान की जैविक खेती

काला नमक की उर्वरक मांग कम होने के कारण इसे कार्बनिक खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। कार्बनिक खेती में पोषक तत्वों की आपूर्ति गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद तथा मुर्गी की बीट आदि स्रोतों से पूरी की जा सकती है। कार्बनिक खादों को खेत में रोपाई से दो सप्ताह पहले मिला देना चाहिए। इसके लिए खरपतवार, रोग एवं कीट के नियंत्रण के लिए जैविक संसाधनों का प्रयोग किया जाता है।

खरपतवार नियंत्रण

  • खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निराई रोपाई के 20 दिन के अन्दर तथा दूसरी निराई 40 दिन के अंदर कर देनी चाहिए।
  • खरपतवारों का रासायनिक विधि से नियंत्रण के लिए 1.5 कि.ग्रा. मात्रा (सक्रिय तत्व) ब्यूटाक्लोर, या थायोबेनकार्ब प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर (खरपतवारों के अंकुरण के पूर्व) प्रयोग करनी चाहिए।
  • रसायन के प्रयोग के समय खेतों में 2-3 सें.मी. पानी होना चाहिए। उपरोक्त रसायनों के अलावा एनीलोफास 30 ई.सी. (1.65 ली.) या प्रेटीलाक्लोर 50 ई.सी. (1.25 ली.) प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए आलमिक्स 20 प्रतिशत की 20 ग्रा. मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

कीट एवं रोग नियंत्रण

धान की फसल में अन्य धान्य फसलों की तुलना में सबसे अधिक कीट एवं रोग नुकसान पहुंचाते हैं। काला नमक में कीट एवं रोगों के प्रकोप से उपज के साथ-साथ गुणवत्ता में भी ह्रास होता है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।

  • खड़ी फसल में फुदके दिखाई दें तो खेत से 3-4 दिन के लिए पानी निकालने से इनकी संख्या काफी कम हो जाती है। फुदके के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 25 ग्रा. सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से (100 मि.ली. 17.8 प्रतिशत घुलनशील द्रव्य) अथवा फिप्रोनिल 50 प्रतिशत सक्रिय पदार्थ/हेक्टेयर (1 ली. 5 प्रतिशत घुलनशील द्रव्य/हेक्टेयर) के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए, जिससे पूरे पौधे नीचे तक भीग जाएं। फिप्रोनिल रसायन तना छेदक कीट के लिए भी प्रभावशाली है।
  • पर्णच्छद अंगमारी (जीवाणु झुलसा) बीमारी को फैलने से रोकने के लिए जल भराव नहीं होना चाहिए, साथ ही नाइट्रोजन का प्रयोग भी रोक देना चाहिए। यदि बीमारी का प्रकोप अधिक हो तो 15 ग्रा. स्ट्रेप्टोसाइक्लिन, 500 ग्रा. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 500 ली. पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। पर्णच्छद झुलसा, पर्णच्छद विगलन तथा झोंका रोगों की रोकथाम के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स, ट्राईकोडरमा (10 ग्रा./ली.) अथवा 5 ग्रा. स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स, प्रोपिकोनाजोल/कार्बेन्डाजिम 1 ली. दवा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए तथा दूसरा छिड़काव 10 दिन के बाद करने से इन रोगों का प्रभाव काफी कम हो जाता है।

काला नमक धान के कम उत्पादन के कारण

निम्न गुणवत्ता वाला बीजः काला नमक प्रजाति के बीज का उचित उत्पादन तथा वितरण न होने के कारण किसान सैकड़ों वर्षों से अपना ही बीज बोते आ रहे हैं। इससे बीज की गुणवत्ता अच्छी नहीं रह पाती तथा बीज की शुद्धता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रोग और कीटः काला नमक में मुख्य रूप से दो रोग, नेक ब्लास्ट, भूरा धब्बा तथा पीला तना छेदक कीट सबसे अधिक हानि पहुँचाते हैं। लगातार वर्ष 1998 तथा 1999 में नेक ब्लास्ट की महामारी के फलस्वरूप काला नमक का क्षेत्र तेजी से घटा है। काला नमक में फूल आने के समय तापमान कम होने के कारण नेक ब्लास्ट तथा अन्य रोगों का आक्रमण बढ़ जाता है। इसके साथ-साथ धान का फुदका कीट का प्रकोप भी बढ़ जाता है, जिससे काला नमक की गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

बाजार सुविधा का अभावः काला नमक की मांग राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होने के बावजूद सुव्यवस्थित बाजार व्यवस्था न होने के कारण किसान काला नमक की खेती से हतोत्साहित होते हैं।

देर से पकना और कम उत्पादकताः काला नमक एक लम्बी अवधि में पकने वाली किस्म है और इसकी उत्पादकता भी अपेक्षाकृत काफी कम है।

विकास परियोजनाएं और भविष्य की दिशा

काला नमक धान के विकास में वैज्ञानिकों द्वारा अब तक बहुत कम प्रयास किए गए थे। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2001 में पश्चिमी यूपी के 4 मंडलों को मिलाकर बासमती निर्यात जोन घोषित करने और सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय को इसका मुख्यालय बनाने के बाद इस दिशा में प्रगति हुई है। विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे शोध के कारण काला नमक की गुणवत्ता को बनाए रखने और उसकी उत्पादकता बढ़ाने का काम चल रहा है। इसके तहत काला नमक के 4 उत्पादन केंद्र, पूर्वी यूपी के सिद्धार्थ नगर, बस्ती और गोरखपुर जिलों से एकत्रित किये गये। इन केंद्रों को शुद्ध वंश क्रम विधि द्वारा शुद्ध करने के बाद इनका मूल्यांकन किया गया।

मूल्यांकन से प्राप्त आंकड़ों से पता चला कि काला नमक के विभिन्न शुद्ध जननद्रव्यों में विभिन्नता प्रकृति में विद्यमान है। कुछ जननद्रव्यों में विभिन्न रोगों के प्रति रोगरोधिता पाई गयी है। निकट भविष्य में जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा आणविक स्तर पर इसके अच्छे गुणों के लिए उत्तरदायी जीनों को पहचान कर दूसरी प्रजातियों, जो कि स्थानीय जलवायु के अनुकूल व अधिक उत्पादकता वाली हैं, में स्थानांतरित करके इसके विकास की योजना है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।