
धान की खेती के सम्बन्ध में कुछ महत्पूर्ण तथ्य Publish Date : 17/06/2025
धान की खेती के सम्बन्ध में कुछ महत्पूर्ण तथ्य
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
Pudding – not good for soil health
- मिट्टी के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही है।
- गैर-चावल फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन- विशेष रूप से मीथेन।
मशीन के द्वारा धान की सीधी बुवाई
1. सूखे खेत में धान की बुवाई (Dry DSR):
“शुष्क क्षेत्र में धान की बुवाई करने के बाद सिंचाई अथवा वर्षा”
इस विधि के अन्तर्गत बुवाई करने की मशीन (बीज सह उर्वरक ड्रिल) का उपयोग कर सूखें खेत में ही धान बुवाई की जाती है। बुवाई करने के बाद उसी दिन इसकी सिंचाई कर दी जाती है तथा अगली सिंचाई इसके 4-5 दिनों के अंतराल पर ही करनी होती है।
2. नम क्षेत्र में बुवाई (Tar Vattar DSR):
Vattar की स्थिति में बुवाई करने से पूर्व भारी सिंचाई (पलेवा) करने के बाद जब खेत वतर/निखर या जुताई करने की स्थिति में आ जाता है तो उचित नमी (वतर) स्तर पर खेत को अच्छे तरीके सं जोतकर तथा पाटा लगाकर तैयार करने बाद बुवाई की मशीन (बीज सह उर्वरक ड्रिल) के द्वारा धान की बुवाई कर दी जाती है और बुवाई करने के तुरंत बाद ही खेत में हल्का पाटा लगाना भी आवश्यक होता है।
ऐसा करने से बीज और मिट्टी के बीच अच्छा सम्पर्क स्थापित हो जाता है। इस विधि से धान की बुवाई सदैव शाम के समय ही करनी चाहिए, जिससे कि नमी की कम से कम हानि हो। इस विधि से बुवाई करने के बाद फसल की पहली सिंचाई 15 से 21 दिन के बाद तक की जा सकती है। यह विधि गरमी एवं गरम हवाओं के चलने की गति पर निर्भर करती है।
जब खेत वतर/निखर अथवा जुताई करने की स्थिति में आ जाए तो उचित नमी (वतर) के स्तर पर खेत की अच्छी तरह से जुताई एवं पाटा लगाकर धान की बुवाई की मशीन (बीज सह उर्वक ड्रिल) के माध्यम से धान की बुवाई की जाती है।
धान की सीधी बुवाई के समय अपेक्षित सवाधानियां
बुवाई से पहले की सावधानियां
- फील्ड लेवलिंग करना।
- खरपतवारों का प्रबन्धन करना।
- सिंचाई जल की उचित व्यव्स्था करना।
- जल निकासी की व्यवस्था स्थापित करना।
बुवाई के समय बरती जाने वाली सावधानियां
- उचित बीज दर का प्रयोग करना।
- सीडिंग उचित गहराई पर करना।
- बीज प्राइमिंग अथवा बीज का उपचार करना।
- खेत में नमी के उचित स्तर को बनाए रखना।
- खरपतवारों का प्रभावी प्रबन्धन करना।
बुवाई के बाद आवश्यक सावधानियां
- सिंचाई जल का उचित प्रबन्धन।
- खरपतवार का प्रभावी प्रबन्धन।
- पोषक तत्वों का आवश्यकता के अनुसार प्रबन्धन।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।