
फसलों की उपज बढ़ाने के वैज्ञानिक उपाय Publish Date : 31/05/2025
फसलों की उपज बढ़ाने के वैज्ञानिक उपाय
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
भारत एक कृषि प्रधान देश है, देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है। फसलों की उपज को बढ़ाना न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्नत कृषि तकनीकों, बेहतर बीजों, जल प्रबंधन और कीट नियंत्रण के माध्यम से फसलों की उपज में वृद्धि की जा सकती है। आज के इस पोस्ट के माध्यम से आप फसलों की उपज बढ़ाने के उपायों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
फसलों की उपज बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण कृषि कार्य
मृदा परीक्षणः मृदा परीक्षण फसल की पैदावार बढ़ाने की दिशा में पहला कदम है। मृदा परीक्षण मिट्टी की पोषक सामग्री और पीएच स्तर को निर्धारित करने में मदद करता है। मृदा परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर, किसान मिट्टी में आवश्यक उर्वरकों का प्रयोग कर सकते हैं। इस जानकारी के आधार पर मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाए रखने में भी मदद मिलती है।
उच्च गुणवत्ता युक्त बीज का चयनः बीज किसी भी फसल की उत्पादकता का मूल आधार होता हैं। इसलिए, उच्च गुणवत्ता युक्त बीज का चयन करना बहुत आवश्यक होता है। उन्नत किस्मों के बीज न केवल उच्च उत्पादन देने में सक्षम होते हैं, बल्कि वे रोग और कीट प्रतिरोधक भी होते हैं। अतः बुवाई के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों या कृषि विश्वविद्यालयों से प्रमाणित बीज का ही चयन करना चाहिए। बीज का चयन करते समय स्थानीय जलवायु और मिट्टी को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण होता है।
समय पर बुवाईः सही समय पर फसलों की बुवाई करना बहुत जरूरी है। समय पर बुवाई कीट और रोग संक्रमण के जोखिम को कम करने में किसान की मदद कर सकती है। इससे फसल की उपज भी अधिक प्राप्त हो सकती है।
खाद और उर्वरक प्रबंधनः बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए मिट्टी में हरी खाद, कंपोस्ट खाद, और जैविक खादों का उपयोग करना चाहिए। इसके साथ ही संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भी आवश्यक है। उर्वरक का सही मात्रा में और सही समय पर प्रयोग करना चाहिए। इससे पौधों को उचित मात्रा में आवश्यक पोषण प्राप्त होता है।
सिंचाई प्रबंधनः जल का उचित प्रबंधन फसलों की उपज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आधुनिक सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप सिंचाई, स्प्रििंकलर सिंचाई और सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से फसल की पैदावार बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यह तकनीकें पानी के संरक्षण और फसलों को आवश्यक मात्रा में पानी प्रदान करने में सहायता करती हैं।
खरपतवार प्रबंधनः खरपतवार पोषक तत्वों और पानी के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों एवं नमी को ग्रहण करते हैं। जिससे फसल की उपज एवं गुणवत्ता में कमी आती है। ऐसे में खरपतवारों पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी हो जाता है। खेत में विभिन्न प्रकार के खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई या रासायनिक शाकनाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
कीट और रोग प्रबंधनः फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कीट और रोग प्रबंधन रिना भी आवश्यक है। कीट और रोग फसलों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे उपज में कमी आ सकती है। जैविक एवं रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग और कीट नियंत्रण के लिए समेकित प्रबंधन विधि का पालन किया जा सकता है। इसके साथ ही रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन भी उपज बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
उचित फसल चक्र अपनानाः फसलों की उत्तम पैदावार के लिए उचित फसल चक्र का पालन करन भी आवश्यक है। फसल चक्र के अनुसार विभिन्न फसलों को एक निश्चित क्रम में उगाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। इसके साथ ही खेत में खरपतवारों, रोग एवं कीटों की समस्या में भी कमी आती है।
पौध संरक्षण विधियां अपनानाः पौध संरक्षण विधियां फसलों की उपज को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पौधों के क्षतिग्रस्त या रोग ग्रस्त हिस्सों को काट कर अलग करें। पौधों को गिरने से बचाने के लिए तने के आस-पास मिट्टी चढ़ाएं। बेल वाली फसलों के संरक्षण के लिए उन्हें सहारा दें।
फसल कटाई के बाद प्रबंधनः फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कटाई के बाद प्रबंधन आवश्यक है। फसलों का उचित भंडारण और परिवहन खराब होने और अपव्यय को रोकने में मदद कर सकता है। कोल्ड स्टोरेज और नियंत्रित वातावरण भंडारण जैसी आधुनिक भंडारण तकनीकों का उपयोग फसल के उत्पादों में लम्बे समय तक ताजगी बनी रहती है।
मौसम की जानकारी का उपयोगः फसलों की उपज बढ़ाने में मौसम की जानकारी का सही उपयोग करना महत्वपूर्ण है। समय-समय पर मौसम विभाग द्वारा जारी की गई सूचनाओं का पालन करके किसान अपनी खेती की योजनाएं बना सकते हैं। इससे फसलों को मौसम की मार से बचाया जा सकता है और उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
कृषि यंत्रों का उपयोगः कृषि यंत्रों का उपयोग फसलों की उपज को बढ़ाने में सहायक साबित हो सकता है। ट्रैक्टर, हल, कंबाइन हार्वेस्टर एवं अन्य यंत्रों का सही समय और सही तरीके से उपयोग करके फसलों की बुवाई, कटाई, और अन्य प्रक्रियाओं को तेजी से और सटीकता से उपयोग किया जा सकता है। इससे समय एवं मानव श्रम की बचत होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोगः आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग कर फसलों की उपज को कई गुना तक बढ़ाया जा सकता है। इन तकनीकों में ड्रोन का उपयोग, सेंसर आधारित सिंचाई प्रणाली, और प्रिसिजन फार्मिंग जैसी तकनीकें शामिल हैं। ये तकनीकें फसल की निगरानी और उत्पादन में सुधार लाने में सहायता करती हैं। इसके अलावा, जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) और जियो टैगिंग का उपयोग करके खेतों की स्थिति और फसल की वृद्धि की निगरानी की जा सकती है।
कृषि विशेषज्ञों से सलाहः फसलों की उपज बढ़ाने के लिए कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें। कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, और स्थानीय कृषि अधिकारियों से मिलकर नई तकनीकों, बीजों, और कृषि विधियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कृषि विशेषज्ञों के सुझावों पर अमल करके किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
प्रशिक्षण और जानकारी का आदान-प्रदानः कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालयों, और अन्य संस्थानों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेकर किसान आधुनिक कृषि तकनीकों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, आपस में जानकारी का आदान-प्रदान करना भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सरकारी सहायताः केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के द्वारा किसानों के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं का लाभ उठा कर किसान फसलों की उपज को बढ़ा सकते हैं। इन योजनाओं के तहत किसानों को बीज, उर्वरक, कृषि यंत्र एवं अन्य सुवधाओं पर सब्सिडी मिलती है, जिससे उनकी उत्पादन लागत कम होती है और फसल उत्पादन में वृद्धि होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।