
धनिया उत्पादन की उन्नत तकनीकीः किसान को अधिक लाभ Publish Date : 29/05/2025
धनिया उत्पादन की उन्नत तकनीकीः किसान को अधिक लाभ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
प्राचीन काल से ही विश्व में भारत देश को ‘‘मसालों की भूमि‘‘ के नाम से जाना जाता रहा है और इन्हीं मसालों में से धनिया एक प्रमुख मसाला है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते है। धनिया बीज में काफी औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते है। धनिया अम्बेली फेरी या गाजर कुल का एक वर्षीय मसाला फसल है। इसका हरा धनिया सिलेन्ट्रो या चाइनीज पर्सले कहलाता है।
धनिया का उपयोग एवं महत्व
धनिया एक बहुमूल्य बहुउपयोगी मसाले वाली आर्थिक दृष्टि से लाभकारी फसल है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते हैं। भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है और देश में धनिया के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है।
जलवायु
शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये अनुकूल होता है। बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है। धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल एवं दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है। धनिया की फसल को पाले से बहुत नुकसान होता है। धनिया बीज की उच्च गुणवत्ता एवं अधिक वाष्पशील तेल के लिये ठंडी जलवायु, अधिक समय के लिये तेज धूप, समुद्र से अधिक ऊंचाई एवं ऊंचाईहीन भूमि की आवश्यकता होती है।
भूमि का चुनाव एवं उसकी तैयारी
धनिया की सिंचित फसल के लिये अच्छा जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिये काली भारी भूमि अच्छी मानी जाती है। धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है। अच्छे जल निकास एवं उर्वरा शक्ति वाली दोमट या मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी.एच. 6.5 से 7.5 होना चाहिए। सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए, जिससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेगें तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाएंगे। बारानी फसल के लिये खरीफ फसल की कटाई के बाद दो बार आड़ी-खड़ी जुताई करके तुरन्त पाटा लगा देना चाहिए।
बुवाई करन का समय
धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाती है। धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है। धनिया की सामयिक बोनी लाभदायक है। दानों के लिये धनिया की बुआई का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा है। हरे पत्तों की फसल के लिये अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिये उपयुक्त हैं। पाले से बचाव के लिये धनिया को नवम्बर के द्वितीय सप्ताह मे बोना उपयुक्त होता है।
बीज दरः सिंचित अवस्था में 15-20 कि.ग्रा./हे. बीज तथा असिंचित में 25-30 कि.ग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती है।
बीजोपचार
भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को कार्बान्डिजिम-थाइरम (2:1) 3 ग्रा./कि.ग्रा. या कार्बाक्जिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत 3 ग्रा./कि.ग्रा. + ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को स्टेप्टोमाईसिन 500 पीपीएम से उपचारित करना लाभदायक है।
खाद एवं उर्वरक
असिंचित धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हे. के साथ 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 30 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से तथा 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित फसल के लिये उपयोग करें ।
उर्वरक देने की विधि एवं समय
असिंचित अवस्था में उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा आधार रूप में देना चाहिए। सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बोने के पहले अंतिम जुताई के समय देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रथम सिंचाई के बाद देना चाहिए। खाद हमेशा बीज के नीचे दें। खाद और बीज को मिलाकर नही दें। धनिया की फसल में एजेटोबेक्टर एवं पीएसबी कल्चर का उपयोग 5 कि.ग्रा./हे. केहिसाब से 50 कि.ग्रा. गोबर खाद में मिलाकर बोने के पहले डालना लाभदायक रहता है।
बोने की विधि
बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजों को दो भागों में तोड़ कर दाल बनावें। धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें। कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से. मी. रखें। भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 से.मी. रखना चाहिए। धनिया की बुवाई पंक्तियों में करना अधिक लाभदायक है। कूड में बीज की गहराई 2-4 से.मी. तक होना चाहिए। बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम प्राप्त होता है।
अंतर्वर्तीय फसलें
चना + धनिया, (10:2), अलसी एवं धनिया (6:2), कुसुम + धनिया (6:2), धनिया + गेहूँ (8:3) आदि अंतर्वर्तीय फसल पद्धतियां उपयुक्त पाई गई है। गन्ना + धनिया (1:3) अंतर्वर्तीय फसल पद्धति भी लाभदायक पाई गई है।
फसल चक्र
धनिया-मूंग, धनिया-भिण्डी, धनिया-सोयाबीन, धनिया-मक्का आदि फसल चक्र लाभदायक पाये गये हैं।
सिंचाई प्रबंधन
धनिया में पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद (पत्ति बनने की अवस्था), दूसरी सिंचाई 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था) करना चाहिए। हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105-110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक रहता है।
खरपतवार प्रवंधन
धनिया में फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35-40 दिन है। इस अवधि में खरपतवारों की निंदाई नहीं करते है तो धनिया की उपज 40-45 प्रतिशत कम हो जाती है। धनिया में खरपतवरों की अधिकता या सघनता व आवश्यकता पड़ने पर किसी उचित खरपतवानाशी दवा का प्रयोग कर सकते हैं।
कीट प्रबंधन
माहू /चेपा (एफिड):- धनिया में मुख्यतः माहू/चेपा रसचूसक कीट का प्रकोप होता है। इस कीटे के हरें रंग वाले शिशु व प्रौढ़ दोनो ही पौधे के तनों, फूलों एवं बनते हुए बीजों जैसे कोमल अंगों का रस चूसते हैं। चेपा की रोकथाम के लिए कीटनाशी दवाईयों का प्रयोग करें।
रोग प्रबंधन
उकठा उगरा विल्ट/रोगः
- उकठा रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएनड्री कवक के द्वारा फैलता है। इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते है और पौधे सूख जाते हैं।
- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं।
- बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें।
- बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
तनाव्रण/तना सूजन/तना पिटिका (स्टेमगॉल)
- यह रोग प्रोटामाइसेस मेक्रोस्पोरस कवक के द्वारा फैलता है। रोग के कारण फसल को अत्यधिक क्षति होती है। पौधो के तनों पर सूजन हो जाती है। तनों, फूल वाली टहनियों एवं अन्य भागों पर गांठें बन जाती है। बीजों में भी विकृतिया आ जाती है।
इस रोग का प्रबंधन के निम्न उपाय हैं-
- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं।
- बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें।
- बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि. ग्रा.बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
- रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्टेªप्टोमाइसिन 0.04 प्रतिशत (0.4 ग्रा./ली.) का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
चूर्णिलआसिता /भभूतिया/धौरिया (पावडरी मिल्ड्यू)
यह रोग इरीसिफी पॉलीगॉन कवक के द्वारा फैलत रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों एवं शाखा सफेद चूर्ण की परत जम जाती है। अधिक पत्तियों पीली पड़कर सूख जाती हैं। इस रोग का प्रबंधन निम्न प्रकार से करें-
- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं।
- बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें।
- बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
- कार्बेन्डाजिम 2.0 एमएल/ली. या एजॉक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी 1.0 ग्रा./ली. या हेक्जाकोनोजॉल 52.0एम एल/ ली. या मेटालेक्जिलमेंकोजेब 72 एम जेड 2.0 ग्रा./ली. की दर से घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
पाले (तुषार) से बचाव के उपाय
सर्दी के मौसम में जब तापमान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे गिर जाता है तो हवा में उपस्थित नमी ओस की छोटी-छोटी बूंदें बर्फ के छोटे-छोटे कणों में बदल जाती है और ये कण पौधों पर जम जाते हैं। इसे ही पाला या तुषार कहते हैं। पाला ज्यादातर दिसम्बर या जनवरी माह में पड़ता है। पाले से बचाव के निम्न उपाय अपनायें-
- पाला अधिकतर दिसम्बर-जनवरी माह में पड़ता है। इसलिये फसल की बुवाई में 10-20 नवंबर के बीच में करें।
- यदि पाला पड़ने की संभावना हो तो फसल की सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए।
- जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे, तो आधी रात के बाद खेत के चारों ओर कूड़ा-करकट जलाकर धुऑ कर देना चाहिए।
- पाला पड़ने की संभावना होने पर फसल पर गंधक अम्ल 0.1 प्रतिशत (1.0 एम एल/ली.) का छिड़काव शाम को करें।
- जब पाला पड़ने की पूरी संभावना दिखाई दें तो डाइमिथाइल सल्फोआक्साईड (डीएमएसओ) नामक रसायन 75ग्रा./1000ली. का 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में 10-15 दिन कें अंतराल पर करने से फसल पर पाले का प्रभाव नही पड़ता है।
- व्यापारिक गंधक 15 ग्राम बोरेक्स 10 ग्राम प्रति पम्प का छिड़काव करें।
कटाई
फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करनी चाहिए। धनिया दाना दबाने पर मध्यम कठोर तथा पत्तिया पीली पड़ने लगे, धनिया डोड़ी का रंग हरे से चमकीला भूरा/पीला होने पर तथा दानों में 18 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करना चाहिए। कटाई में देरी करने से दानों का रंग खराब हो जाता है। जिससे बाजार में उचित कीमत नही मिल पाती है। अच्छी गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने के लिए 50 प्रतिशत धनिया डोड़ी का हरा से चमकीला भूरा कलर होने पर कटाई करना चाहिए।
गहाई
धनिया का हरा-पीला कलर एवं सुगंध प्राप्त करने के लिए धनिया की कटाई के बाद छोटे-छोटे बण्डल बनाकर 1-2 दिन तक खेत में खुली धूप में सूखाना चाहिए। बण्डलों को 3-4 दिन तक छाया में सूखाएं या खेत मे सूखाने के लिए सीधे खड़े बण्डलों के ऊपर उल्टे बण्डल रख कर ढेरी बनावें। ढेरी को 4-5 दिन तक खेत में सूखने दें। सीधे-उल्टे बण्डलों की ढेरी बनाकर सूखाने से धनिया बीजों पर तेज धूप नही लगने के कारण वाष्पशील तेल उड़ता नहीं है।
उपज
सिंचित फसल की वैज्ञानिक तकनीकि से खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 5-7 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त होती है।
भण्डारण
भण्डारण के समय धनिया बीज में 9-10 प्रतिशत नमी रहना चाहिए। धनिया बीज का भण्डारण पतले जूट के बोरों में करना चाहिए। बोरों को जमीन पर तथा दीवार से सटे हुए नही रखना चाहिए। जमीन पर लकड़ी के गट्टों पर बोरों को रखना चाहिए। बीज के 4-5 बोरों से ज्यादा एक के ऊपर नही रखना चाहिए। बीज के बोरों को ऊंचाई से नही फटकना चाहिए । बीज के बोरों न सीधे जमीन पर रखें और न ही दीवार पर सटाकर रखें। बोरियों को ठण्डे किन्तु सूखे स्थानों पर भण्डारित करना चाहिए। भण्डारण में 6 माह बाद धनिया की सुगन्ध में कमी आने लगती है।
प्रसंस्करण
धनिया प्रसंस्करण द्वारा 97 प्रतिशत धनिया बीजों की पिसाई कर पावडर बनाया जाता है। जो मसाले के रूप में भोजन को स्वादिष्ट, सुगंधित एवं महकदार बनाने के उपयोग में आता है। शेष तीन प्रतिशत धनिया बीज, धनिया दाल एवं वाष्पशील तेल बनाने में उपयोग होता है। धनिया की ग्रेडिंग कर पूरा बीज,दाल एवं टूटा-फूटा, कीट-व्याधि ग्रसित बीज अलग किये जाते हैं। धनिया की ग्रेडिंग करने से 15-16 रू. प्रति किलो का खर्च आता है। ग्रेडेड धनिया बैग या बंद कंटेनर में रखा जाता है।
उत्पादकता बढ़ाना
- पाले से बचाव के लिए बुआई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में करें तथा गंधक अम्ल 0.1 प्रतिशत का छिड़काव शाम को करें।
- धनिया की खेती उपजाऊ भूमि में करें।
- तनाव्रण एवं चूर्णिलआसिता प्रतिरोधी उन्नत किस्मों का उपयोग करें।
- उकठा, तनाव्रण, चूर्णिलआसिता जैसे रोगों का समेकित नियंत्रण करें।
- खरपतवार का प्रारंभिक अवस्था में नियंत्रण करें।
- भूमि में आवश्यक एवं सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति करें।
- चार सिंचाई क्रांतिक अवस्थाओं पर करें।
- कटाई उपयुक्त अवस्था पर करें एवं छाया में सुखाये। इस हेतु कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी को अपनाएं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।