शकरकन्द की उत्पादकता बढ़ानें की वैज्ञानिक विधि      Publish Date : 18/08/2023

                                                 शकरकन्द की उत्पादकता बढ़ानें की वैज्ञानिक विधि

                                                                                                           डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                   

शकरकन्द में स्टार्च अधिक मात्रा में पायी जाती है। शकरकन्द को शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु वाले स्थानों पर अधिकता के साथ उगाया जाता है। इस प्रकार से यह लगभग पूरे भारवर्ष में आसानी से उगायी जाती है। शकरकन्द के उत्पादन में भारत, विश्व में छंठा स्थान रखता है, परन्तु हमारे देश में शकरकन्द उत्पादकता काफी कम है। शकरकन्द की खेती सबसे अधिक ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र में प्रमुखता से की जाती है। शकरकन्द की उत्पादकता असिंचित क्षेत्रों में 80 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और सिंचित क्षेत्रों में लगभग 200 से 260 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।

    शकरकन्द की खेती के लिए 210 से0 से 260 सेल्सियस के तापमान को उपयुक्त माना जाता है। शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु वाले स्थानों पर भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। ऐसे क्षेत्र जहाँ पर 75 से 150 सें.मी. वर्षा प्रतिवर्ष होती है, ऐसे स्थान शकरकन्द की खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। शकरकन्द की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. 5.8 से 6.7 के बीच उचित होता है।

शकरकन्द की प्रजातियाँ

                                                       

    पूसा सफेद, पूसा रेड, राजेन्द्र शकरकन्द 51, पूसा सुहावनी, नंबर 4004, एस. 30, 35, 43, वर्षा, कोंकण, अश्वनी, श्री बँदनी, श्री नंदनी एवं किरण आदि इसकी प्रमुख प्रजातियाँ हैं।

खेत की तैयारी

    शकरकन्द की बुआई करने के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करते हैं। इसके बाद दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर खेत को समतल एवं मृदा को भुरभुरा बना लेते हैं। इसके साथ ही अन्तिम जुताई में 170 से 200 क्विंटल तक अच्छी तरह सें सड़ी हुई गोबर की खाद को भी मिट्टी में मिला लेते हैं।

शकरकन्द की कटाई

    शकरकन्द की खेती कटिंग की रोपाई के माध्यम से की जाती है और रोपाई के लिए 40,000 से 45,000 कटिंग पीस या टुकड़ें एक हैक्टर में बुआई करने के लिए पर्याप्त रहते हैं। इसके प्रत्येक टुकड़ें की लम्बाई 25-30 से.मी. और इसमें कम से कम 3 से 4 गाँठों का होना आवश्यक है। इन कटिंग्स को 8-10 मिनट के लिए बोरेक्स 2.5 प्रतिशत के घोल में रखने के बाद और फिर सुखाने के बाद ही बुआई की जाती है।

शकरकन्द की रोपाई करने की विधि

                                                

    शकरकन्द की रोपाई खेत मेंड़ों अथवा समतल स्थानों पर की जाती है। शकरकन्द की कटिंग्स मई से जून-जुलाई के माह में नर्सरी में तैयार की जाती है एवं मध्य अगस्त से सितम्बर के प्रथम पखवाड़े इसकी रोपाई खेतों में कर दी जाती है। इसकी रोपई में पंक्ति से पंक्ति की आपस में दूरी 60 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 से.मी. रखकर 6 से 8 से.मी. की गहराई पर रोपाई कर देते हैं।

शकरकन्द में सिंचाई

      शकरकन्द की कटिंग्स की रोपाई करने के पश्चात् यदि खेत में उपलब्ध नमी की मात्रा कम है तो रोपाई के 5 से 7 दिन बाद प्रथम सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि वर्षा कम मात्रा में या कम अवधि के लिए ही हो रही है तो शकरकन्द में सिंचाई आवश्यकता के अनुसार 10 से 12 दिनों के अन्तराल पर सिंचई करते रहना चाहिए।

फसल की सुरक्षा

रोग नियंत्रण

    शकरकन्द की फसल में लीफ-स्पॉट, बलैक रॉट तथा सॉफ्ट रॉट आदि रोग लगते हैं। लीफ स्पॉट का नियंत्रण डायथेन एम-45 अथवा डायथेन जेड़-78 की एक ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है। ब्लैक रॉट के नियंत्रण हेतु टीवर को मरक्युरिक क्लोराईड या बोरेक्स 2.5 प्रतिशत के द्वारा शोधित करके नर्सरी तैयार करनी चाहिए।

कीट नियंत्रण

                                                

    शकरकन्द में स्वीट पोटेटो वीविल या सूण्डी एवं स्वीट पोटेटो, स्पैनक्स या कैटर-पिलर आदि कीट लगते हैं। वीविल के नियंत्रण हेतु थायोडॉन-35 ई.सी. 2 मि.ली. का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना उचित रहता है। कैटरपिलर के नियंत्रण के लिए लेड-आर्सिनेट का स्प्रे 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से पानी में घोलकर इसका छिड़काव करना चाहिए।

निराई-गुड़ाई

    शकरकन्द की रोपाई के 20 से 25 दिन के बाद इसकी निराई-गुड़ाई करने के साथ ही मिट्टी को भी चढ़ाया जाना भी आवश्यक है, और आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर फसल की निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवार मुक्त बनाए रखना चाहिए। शकरकन्द की बेल की पलटाई दो से तीन बार अवश्य करनी चाहिए, जिससे कि शकरकन्द अच्छी तरह से बढ़त प्राप्त कर सके।

फसल की कटाई/खुदाई

    शकरकन्द में खुदाई उसकी प्रयोग की गई प्रजाति के ऊपर निर्भर करती है। शकरकन्द की पत्तियाँ जब पीली पड़नें लगे तो यह संकेत करता है कि फसल अब खुदाई के लिए तैयार हो गई है। सबसे पहले इसकी वाइन काटकर अलग कर देनी चाहिए। इसके बाद टृयूबर की खुदाई की जाती है। वहीं वाइन की कटिंग से 4 से 6 दिन पहले खेत में पानी लगा देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से शकरकन्द की खुदाई करने में आसानी रहती है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि खुदाई करते समय शकरकन्द के ट्यूबर को कटने से बचाए रखने का प्रयत्न करते चाहिए। कटे हुए ट्यूबर्स से शकरकन्द की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

पोषक तत्वों का खजाना है शकरकन्द

    शकरकन्द के विषय माना तो यह जाता है कि यह शर्करा से भरपूर होती है, परन्तु वैज्ञानिक तथ्य इसके बिलकुल विपरीत हैं और शकरकन्द के अन्दर खनिज एवं विटामिन्स भी प्रचुर मात्रा में ही पाये जाते हैं। शकरकन्द, बीटा-कैरोटीन, विटामिन-सी और पोटेशियम आदि का एक मुख्य स्रोत भी होता है। शकरकन्द में विटामिन ए, विटामिन-सी, पोटेशियम, मैगनीज, विटामिन बी6, विटामिन बी5 और विटामिन ई आदि भी उपलब्ध होते हैं।

                              सारणीः शकरकन्द में उपलब्ध पोषक तत्व की मात्रा (प्रति 100 ग्राम)

पोषक तत्व

उपलब्ध मात्रा

ऊर्जा कैलोरी

जल

86 प्रतिशत

 

प्रोटीन

77 प्रतिशत

 

कार्बोंहाइड्रेटस

20.1 ग्राम

 

शर्करा

4.2 ग्राम

 

रेशे

3 ग्राम

 

वसा

0.1 ग्राम

 

संतृप्त वसा

0.02 ग्राम

 

ओमेगा-6

0.01 ग्राम

 

                                                   

अतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसान भाई शकरकन्द की खेती को वैज्ञानिक तरीके से कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं और शकरकन्द की खेती वैज्ञानिक विधि से करने पर किसानों की आय में भी आशाजनक वृद्वि होती है। शकरकन्द की खपत अच्छी होने के कारण इसके विपणन में भी अधिक समस्याएं नही आती हैं। 

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगरए निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।