सहजन-एक बहुउपयोगी वृक्ष      Publish Date : 28/05/2025

                   सहजन-एक बहुउपयोगी वृक्ष

                                                                                                                     प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

नरम लकड़ी वाला सहजन, तेजी से बढ़ने वाला एक बहु-उपयोगी और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्ष है। इसकी फलियां, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीकी देशों तथा दुनिया के अन्य उष्ण कटिबंधीय भागों में शाक भाजी के रूप में लोकप्रिय हैं। इसकी लोकप्रियता का कारण संभवतः इसमें विटामिन 'सी' अंश का अधिक मात्रा में पाया जाना है। इस पौधे की जड़ और छाल में औषधीय गुण होते हैं। मूत्र मार्ग में अवरोध होने तथा तेज पेचिश के इलाज में इसका प्रयोग किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इसके पत्तों का जलीय सार उच्च-दाब-हासी (हाइपोटेंसिव एजेन्ट) होता है। इसके अतिरिक्त पत्तों में प्रोटीन, केरोटिनायड, अमीनो अम्ल तथा खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। पशु आहार में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके बीज का उपयोग वसा (चर्बी) और प्रोटीन-स्रोत के रूप में किया जाता है।

देश के विभिन्न भागों से सहजन की विभिन्न किस्मों के संग्रह और सर्वेक्षण के दौरान, इसके अलग-अलग हिस्सों के प्रयोग के बारे में स्थानीय लोगों से उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई। पंजाब में इसके बीज लकड़ी और कोमल जड़ें मसाले के रूप में प्रयोग की जाती है। उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में इसके सुखाये गए फलों व कलियों से ग्रामीण जनता खांसी और दमा का इलाज करते है।

                                                        

ऋषिकेश व हरिद्वार के ग्रामीण इलाकों में इसकी भाप से अनेकों रोगों का इलाज होता है। मूल रूप से गठिया के इलाज में, भाप से सिकाई करने में इसकी पत्तियां प्रयोग की जाती है। सहजन की लकड़ी कागज की लुगदी का एक बढ़िया साधन है और इसे एक सम्भावित कच्ची सामग्री के रूप में पहचाना गया है।

इसका प्रवर्धन कलमों द्वारा आसानी से किया जाता है। इस गुण के कारण इसका बड़े पैमाने पर आसानी से संवर्धन किया जा सकता है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर सहजन के पौधों का सर्वेक्षण करने के उपरांत सहजन (कुल-मोरिंगेसी) की दोनों जातियों मोरिंगा ओलीफेरा (Moringaoleifera सहजन) एवं मोरिंगा कॉनकेनेन्सिस (M. concanensis -कड़वा सहजन) के अनेकों क्लोनों की विस्तृत जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया गया। बीजों का वसा एवं प्रोटीन, अमीनो अम्ल और कैलरीमान के लिए तथा इसके क्लोनों का मूल्यांकन पत्तियों व फलियों से विटामिन सी और प्रोटीन के लिए किया गया। अमीनो अम्लों की मात्रा और उनके प्रकार का विश्लेषण अमीनों अम्ल विश्लेषक द्वारा किया गया।

पौधों की विभिन्न अवस्थाओं में उनके विभिन्न भागों की कैलरीमान युनिट के रूप में अन्तर्निहित ऊर्जा का आंकलन किया गया और इन मानों को कैलरी प्रति ग्राम शुष्क भार और कैलरी प्रति ग्राम भस्म मुक्त शुष्क भार आधार पर निरूपित किया गया। सहजन के पत्तों और फलियों (कोमल एवं परिपक्व अवस्था) में विटामिन 'सी' और प्रोटीन प्रतिशत का आंकलन किया गया।

                                                          

सहजन की दोनों जातियों की परिपक्व फलियों से प्राप्त बीजों में क्रमशः 27 व 33 प्रतिशत तेल प्राप्त हुआ। इन दोनों प्रजातियों की वसा अम्ल रचना है। शोधन करने पर, इन दोनों प्रजातियों के बीज-वसा के असाबुनिकरणीय भाग (0.05 प्रतिशत) से स्टेराल की अल्प मात्राएं उपलब्ध हुई जो ẞ-साइटोस्टेराल के अनुरूप थी।

सहजन के बीज कड़वे नहीं होते तथा इन्हें खाद्य वसा के स्रोतों में शामिल किया जा सकता है। परन्तु वसा-स्रोत के रूप में कड़वा सहजन के बीजों के उपयोग पर विचार करने से पहले, यदि किसी प्रकार की थोड़ी भी विषाक्तता हो तो इस बात की अपेक्षा की जाती है कि इसका अध्ययन किया जाए।

वसा एवं पौधे के अन्य गौण घटकों को निकाल देने के बाद, शेष बीज में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया गया (सहजन 65% एवं कड़वा सहजन 72%)। प्रोटीन अमीनों अम्ल संघटन के परिणामों से ज्ञात हुआ कि सहजन एवं कड़वा सहजन की प्रोटीन में लाइसिन (1.16 एवं 2.0 प्रतिशत) तथा मेथइओनीन (1.58 एवं 1.6 प्रतिशत) जो पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझा जाता है।

एक माह की आयु वाले पौथों, विशेष रूप से सहजन के पत्तों, उसकी लकड़ी, छाल और जड़ के कैलरी मान का आंकलन करने पर यह क्रमशः 4315.7 कैलरी/ग्राम, 4189.2 कैलरी/ग्राम, 3816.5 कैलरी/ग्राम और 4106.5 कैलरी/ग्राम शुष्क भार आधार पर पाया गया तथा कड़वा सहजन में यह क्रमशः 4301.9 कैलरी/ग्राम, 4162 कैलरी/ग्राम, 3834.1 कैलरी/ग्राम और 4211.1 कैलरी/ग्राम मिला। लेकिन छः माह तक की आयु के पौधों में यह मान बढ़े जो बाद में स्थिर हो गये। परन्तु जड़ें इसकी अपवाद रहीं और पौधे के 3 माह की बढ़वार के बाद इसमें वृद्धि नहीं हुई।

                                                          

सहजन की दोनों जातियों की फलियों में सबसे अधिक अन्तर्निहित ऊर्जा पायी गई उसके बाद पत्तों, फूलों, शाखाओं, लकड़ी, जड़ और छाल का स्थान आता है। फलियों की उच्च कैलरीमान का कारण फली में विद्यमान वसा व प्रोटीन है। जहां तक पौधे के विभिन्न भागों के कैलरीमान का सम्बन्ध है, छः महीने की आयु के पश्चात् इसमें विशेष अन्तर नहीं पाया गया। लेकिन अपवाद स्वरूप, अगले सालों में पतझड़ के बाद निकलने वाले नये पत्तों में इसकी मात्रा (कैलरीमान) बढ़ जाती है और 60 दिन तक यह मात्रा बढ़ती रहती है जो बाद में लगभग स्थिर हो जाती है।

सहजन के पत्तों और फलियों की कोमल और विकसित दोनों ही अवस्थाओं में, इसके विटामिन 'सी' और प्रोटीन प्रतिशत का आंकलन किया गयाऔर नरम, तथा परिपक्व और कटोर, दोनों अवस्थाओं में सहजन के विभिन्न क्लोनों के ताजे पत्तों में प्रोटीन व विटामिन 'सी' अधिक मात्रा (55.0-143.8 मि.ग्रा./100 ग्राम) में पाया गया ।

इन दोनों प्रजातियों में पत्तियों, फलियों तथा बीजों में प्रोटीन का प्रतिशत भिन्न-भिन्न हैं। सहजन की पत्तियों में यह 17.5-27.75 प्रतिशत, कोमल फलियों में 13.75-26.87 प्रतिशत तथा परिपक्व फलियों में 14.37-27.75 प्रतिशत पाया गया। इनके बीज निश्चित रूप से प्रोटीन (42.50-59.37 प्रतिशत) का अच्छा स्रोत है। सहजन की दूसरी प्रजाति कड़वा सहजन की पत्तियों में 19.0-22.36, कोमल फलियों में 18.70-23.12, परिपक्व पत्तियों में 20.0-27.50 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया गया। इस प्रजाति के बीजों में 70.15 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया गया।

उपर्युक्त परिणामों से यह संकेत मिलता है कि अगर पत्तों, फलियों और बीजों के प्रोटीन और अमीनो अम्लों के उच्च प्रतिशत के साथ-साथ पौधे के भिन्न-भिन्न हिस्सों की अंतर्निहित ऊर्जा और विटामिन 'सी' का उचित ढंग से उपयोग किया जाए तो यह पोषण एवं ऊर्जा के वर्तमान साधनों के पूरक बन सकते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।