गन्ने में कीट समस्या तथा इनका समाधान      Publish Date : 17/08/2023

                                                               गन्ने में कीट समस्या तथा इनका समाधान

                                                                                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं अन्य

                                                                

हमारा देश, चीनी उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है। यहां पर गन्ना एक प्रमुख औद्योगिक फसल है। मगर फिर भी हमारे देश में गन्ना उत्पादन की औसत पैदावार दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम है, जिसका मुख्य कारण है - विभिन्न जलवायु, भूमि एवं बीमारियों की समस्यां गन्ने की औसत पैदावार गन्ने में 100 से अधिक प्रकार के कीड़े लगते हैं, जो गन्ने की फसल को हानि पहुंचाते हैं। प्रस्तुत लेख में गन्ने के कीड़ों की समस्या के समाधान के लिए प्रश्न-उत्तर के रूप में विवरण दिया गया है।

प्रश्न: गन्ना की बुआई करने के तुरन्त बाद कौन-सा कीड़ा गन्ने को हानि पहुंचाता है?

                                                 

उत्तर: बिजाई के तुरन्त बाद गन्ने में गन्ने की दीमक का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है, जो कि गन्ने की पोरी (बीज) को नष्ट कर देता है, और गन्ने का अंकुरण कम होता है। उगा हुआ पौधा या मोढी फसल या पौधा दीमक के प्रकोप से सूख जाता है।

प्रश्न: गन्ना उगने के बाद या मोढ़ी फसल में कौन-कौन से कीड़ों का प्रकोप होता है तथा उनकी रोकथाम का क्या उपाय है?

                                                  

उत्तर: दीमक तथा कनसुआ का प्रकोप प्रायः मार्च से मई तक गन्ने में देखा गया है। कनसुआ भी दीमक की तरह गन्ने के उगते ही आक्रमण शुरू कर देता है, जिसके कारण गन्ने की गोभ सूख जाती है।

इसकी रोकथाम के लिए गन्ने की बिजाई करते समय 2.5 लीटर लिण्डेन 20 इसी. या क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी. या 1.5 लीटर एण्डोसल्फान 35 ईसी. का 600-800 लीटर पानी में घोल बनााकर प्रति एकड़ गन्ने के खूडों में डालें। इससे कनसुआ कीड़े का प्रकोप कम हो जाता है। मोढ़ी फसल में अगर कनसुआ का आक्रमण हो जाता है तो एण्डोसल्फान का धूड़ा 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से मिलायें। ग्रसित गन्ने की अप्रैल से जून तक पाक्षिक कटाई करना भी लाभदायक होता है।

प्रश्न: वर्षा ऋतु से पहले अप्रैल-जून में काली भून्डी का प्रकोप गन्ने में काफी होता है। क्या इस कीड़े से भी गन्ने में हानि होती है? इस कीड़े के प्रकोप के क्या लक्षण हैं और इसकी क्या रोकथाम है?

उत्तर: काली भूण्डी के प्रौढ तथा निम्फ (बच्चे) गन्ने की पत्तियों के बीच में छिपे रहते हैं और पत्तों का रस चूसते हैं जिससे गन्ने का रंग पीला पड़ जाता है। मोढ़ी फसल में इस कीड़े का प्रकोप ज्यादा होता है। खेत दूर से ही पीला दिखाई देता है। इस कीड़े का प्रकोप अप्रैल से जून तक ज्यादा होता है। कई बार इसका आक्रमण अगस्त में भी गन्ने में देखा गया है।

इसकी रोकथाम के लिये 550 मिलीलीटर एण्डोसल्फान 35 ईसी. या 400 मिलीलीटर फैनीट्रोथियोन या 160 मिलीलीटर नूवान 76 ईसी. को 400 लीटर पानी में घोलकर पत्तों के बीच गोभ में इसका छिड़काव करें, क्योंकि यह कीड़ा पत्तियों की गोभ में ही छिपा रहता है। गन्ना काटने के बाद पत्तियों को जला देने से भी इसमें छिपे कीड़े खत्म हो जाते हैं।

प्रश्न: कई बार गन्ने में पत्तियां लाल हो जाती हैं, इसका क्या कारण है?

उत्तर: अष्टपदी माईट छोटे-छोटे से लाल रंग के जीव-जन्तु होते हैं, जो कि गन्ने में पत्तियों के ऊपर देखे गये हैं और पत्तियों का रस चूसते हैं और इसका अधिक प्रकोप से पत्तियां सूख जाती हैं। अगर इस माईट का प्रकोप ज्यादा हो तो कई बार पत्तियों का रंग लाल भी हो जाता है।

अष्टपदी माईट या रैड माईट की रोकथाम के लिये 500 मिलीलीटर मिथाईल डैमटोन (मैटासिस्टाक्स) 25 ईसी. या 600 मिलीलीटर रोगोर 30 ईसी. को 250-300 लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव करें।

प्रश्न: पाइरिल्ला नामक कीड़ा गन्ने को किस तरह हानि पहुंचाता है? इस कीड़े के प्रकोप के क्या लक्षण हैं और इसकी रोकथाम के क्या उपाय हैं?

उत्तर: इस कीड़े को गन्ने के घोड़े के नाम से जाना जाता हैं और इसका प्रकोप अप्रैल से जून और अगस्त से नवम्बर तक अधिक होता है। इस कीड़े के प्रकोप से गन्ने में 80-85 प्रतिशत तक की हानि होती है, जिससे चीनी उत्पादकता में प्रभाव पड़ता है।

                                                                  

यह कीड़ा पत्तों का रस चूसकर उसे कमजोर और पीला कर देता है। ज्यादा प्रकोप से कीड़ा विचित्र सा पदार्थ पत्तियों पर निकालता है, जिसके पत्तियों के ऊपर ऊपर फफूंदी पैदा हो जाती है और पत्तियां काली पड़ जाती हैं। ऐसे गन्ने में करीब 35 प्रतिशत चीनी की पैदावार घट जाती है। ऐसे गन्ने से गुड़ बनाना भी मुश्किल हो जाता है।

इसकी रोकथाम के लिये रासायनिक दवाई का या परजीवी का प्रयोग किया जाता है। ज्यादातर पाईरिल्ला की रोकथाम परजीवियों द्वारा आसानी से की जा सकती है। ये सारे परजीवी गन्ने के खेत में कुदरती तौर पर मिलते हैं, अगर इनकी संख्या खेत में कम हो तो गन्ना अनुसंधान केन्द्र उचानी, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय या गन्ना मिल से प्राप्त किये जा सकते हैं।

कीटनाशक दवाईयों के प्रयोग से जैसे कि एंडोसल्फान 35 ई.सी. या फैनीट्रोथियान 50 ई.सी. की 400-600 मिलीलीटर दवाई को 400-600 लिटर पानी में घोलकर छिड़काव प्रति एकड़ गन्ने के खेत में करने से इसका प्रभावी नियंत्रण होता है।

प्रश्न: क्या गन्ने में सफेद मक्खी का प्रकोप भी होता है? यह कीड़ा कैसे नुकसान करता है और इसकी क्या रोकथाम है?

उत्तर: पाईरिल्ला की तरह इस कीडे के प्रौढ़ तथा निम्फ (बच्चे) गन्ने की पत्तियों का रस चूसते हैं और पौधे पीले पड़ जाते हैं। ज्यादा प्रकोप होने से पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ जमा हो जाता है, जिस पर काली फफूंदी लग जाती है, जिससे पौधे के भोजन बनाने की शक्ति कम हो जाती है।

इस कीड़े के प्रकोप से 15-25 प्रतिशत गन्ने की पैदावार घट जाती है। गुड़ व चीनी भी अच्छी किस्म की नहीं बनती। इस कीड़े का प्रकोप अगस्त से नवम्बर तक के समय में ज्यादा होता है।

इसकी रोकथाम के लिये 800 मिलीलीटर मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी. या 650 मिलीलीटर रोगोर 30 ई.सी. को 400-600 लिटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

प्रश्न: गुरदासपुर बोरर (Gurudaspur Borer) गन्ने में कैसे नुकसान करता है और इसकी रोकथाम के क्या उपाय हैं?

उत्तर: जुलाई से सितम्बर के महीनों में गुरदासपुर बोरर की सुण्डियां प्रारम्भ में गन्ने के ऊपरी भाग को खाती हैं व तने के चारों ओर धारियां-सी नजर आती हैं। एक गन्ने से दूसरे गन्ने पर यह गन्ने की सूण्डियां चली जाती हैं व नुकसान करती रहती हैं। गन्ने का ऊपरी हिस्सा सूख जाता है और कीट लगने वाली जगह से मामूली झटका देने पर ही टूट जाता है। इस कीड़े के बचाव के लिये निम्नलिखित उपाय करें:

कीटग्रसित गन्ने को जून के अंत से सितम्बर के अंत तक हर सप्ताह काटकर नष्ट कर दें। यह काम सामूहिक रूप से गन्ना मिल द्वारा हर वर्ष किया जाता है। मोढ़ी फसल की जुताई करके उससे ठूंठ नष्ट करे दें।

प्रश्न: जड़ बेधक नामक कीड़ा गन्ने में कब लगता है और यह कैसे गन्ने को हानि पहुंचाता है?

उत्तर: यह कीट गन्ने की फसल को आमतौर पर शुरू में हानि करता है। वर्षा से पहले इस कीड़े का प्रकोप तो कम रहता है, मगर वर्षा के बाद अगस्त से नवम्बर तक इस कीटा का प्रकोप अधिक होता है, जिससे गन्ना खेत में ही सूख जाता है।

इस कीडें की रोकथाम के लिये 8 किलोग्राम क्विनलफास 5 प्रतिशत दानेदार प्रति एकड़ के हिसाब से लाईनों में डालकर हल्का-सा पानी लगायें। यह काम अगस्त के महीने में कर लेना चाहिये।

प्रश्न: चोटी बेधक या अगोला बेधक कीड़ा गन्ने की फसल को किस तरह हानि पहुंचाता है और इसकी रोकथाम उपाय क्या है?

उत्तर: इस कीड़े के प्रकोप से गोभ वाली पत्ती में सुराख होना, पत्तियों बीच में धारियां बन जाना व पौधों के ऊपर गुच्छा बन जाना (Bunchi Top) इसके प्रमुख लक्षण हैं, जिससे गन्ने की बढ़वार रूक जाती है। इस कीड़े की मादा पत्तियों की निचली सतह पर अण्डे देती हैं, जो कि रूई जैसे पदार्थ से ढ़के रहते हैं। इस कीड़े की पांच पीढ़ियाँ (मार्च-सितम्बर) तक पूर्ण होती हैं। इसका प्रकोप गन्ने में सबसे ज्यादा होता है।

रोकथाम के लिये अण्डों के समूह को हाथ से निकालना व ग्रसित पौधों की अप्रैल से जून तक पाक्षिक कटाई करना लाभदायक रहता है। आवश्यकतानुसार 13 किलो फ्यूराडोन (कार्बोफ्यूरान) 3-सी या 8 किलोग्राम फोरेट 10-जी प्रति एकड़ कतारों में जून के अंत या वर्षा शुरू होने से पहले गन्ने के खेत में डालें।

प्रश्न: क्या तुराई बेधक कीड़ा गन्ने में भी हानि पहंचाता है? इसके क्या लक्षण हैं और इसकी रोकथाम के उपाय क्या है?

उत्तर: इस कीड़े का प्रकोप सितम्बर से लेकर कटाई तक रहता है। इस कीड़े का प्रकोप गन्ने बनने के बाद ही शुरू होता है और गन्ने में सुराख कर गम्भीर नुकसान करता है। इसके बाहर से कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। 

इसकी रोकथाम के लिये कोई भी कीटनाशक अभी सिफारिश नहीं की गई है। केवल फसल काटने के बाद, उगे हुये फुटाव तथा अन्य अवशेषों को नष्ट कर दें।

कीटरोधी किस्में ही बोयें, जिनमें इस कीड़े का प्रकाप न के बराबर हो। स्वस्थ बीज बोयें और रोग-ग्रस्त खेतों से बीज न लें। रोग-ग्रस्त खेतों से मोढ़ी की फसल भी न लें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।