
संकर धान की खेती क्यों और कैसे Publish Date : 16/05/2025
संकर धान की खेती क्यों और कैसे
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
देश में प्रथम हरित क्रान्ति की चलते देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 1950-51 में 51 मिलियन टन से बढ़कर 2006-07 में 216.1 मिलियन टन पर पहुंच गया था और अब वर्ष 2020 तक 132 करोड़ तक पहुंच जाने वाली जनसंख्या का भरण-पोषण करने के लिए कुल 375 मिलियन टन खाद्यानों (344 मिलियन टन खाद्यान्न और 31 मिलियन टन दालों) की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत खेती योग्य जमीन दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। आज सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 20 प्रतिशत से भी कम हो गया है। जबकि हमारी कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा अभी भी अपनी रोजी-रोटी के लिए खेती पर ही निर्भर है।
कृषि पर निर्भर जनसंख्या का लगभग 80 प्रतिशत भाग छोटी जोत वाले किसानों का है। जोत का औसत आकार 1.41 हैक्टेयर है। देश में 32 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से केवल 14 करोड़ 20 लाख हेक्टेयर में ही खेती की जाती है, जिसका लगभग 63 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर आधारित है।
देश में जहां तक धान के उत्पादन का सवाल है, भारत, चीन के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। अपने कुल अनाजों के उत्पादन में चीन भारत की तुलना में अधिक मात्रा में कार्बनिक खादों और संकर किस्मों का प्रयोग करता है। भारत के 162 मि० हे0 की तुलना में चीन महज 124 मि० हे0 में ही खाद्यान्नों की खेती करता है. और उसमें भी भारत के 59 मिलियन हे) की तुलना में चीन में केवल 53 मि० हे० रकबा ही सिंचित है।
इस तुलनात्मक कम क्षेत्र में भी भारत के 216.1 मि० टन खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में चीन प्रति वर्ष 344 मि० टन खाद्यान्न पैदा करता है, जिसका कारण यह है कि इस कम क्षेत्र में भी 18 मि० टन या 42.8% कार्बनिक खाद तथा 42 मिलियन टन रसायनिक उर्वरक इस्तेमाल करता है, जबकि हमारा देश इससे बड़े रकबे में भी महज 6 मि० टन या 33.3 प्रतिषत कार्बनिक खाद तथा 18 मि० टन रसायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है।
पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि अधिक उपजदायी किस्मों के चुनाव, संतुलित उर्वरक प्रयोग सामयिक कीट तथा व्याधियों के नियंत्रण, सिंचाई प्रबंधन तथा समय से फसल बुवाई के बाद भी उत्पादन का ग्राफ स्थिर बना हुआ है या नीचे गिर रहा है तथा देश की जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिसके भरण पोषण के लिए देश के अन्दर चीन की भाँति खाद्यान फसलों का उत्पादन प्रति इकाई क्षेत्रफल से बढ़ाना अति आवश्यक हो गया है।
यह तभी सम्भव है जब हम धान को अधिक उपजदायी उन्नतशील किस्मों के स्थान पर धान की संकर किस्मों का प्रयोग अधिक से अधिक क्षेत्रफल में करें और कार्बनिक खादों का रसायनिक खादों के साथ बेहतर इस्तेमाल करें अर्थात कुल आवश्यकता का एक तिहाई भाग कार्बनिक खादों तथा दो तिहाई भाग रसायनिक उर्वरकों से पूरा किया जाए।
संकर किस्में उन्नत किस्मों की तुलना में 15-20 प्रतिशत तक अधिक उपज देती हैं। खाद तथा उर्वरकों का बेहतर उपयोग भी 30 प्रतिशत तक उपज को बढ़ाने में सहयोग करता है। इसी प्रकार कीट व व्याधियों का समय से नियंत्रण भी 25-30 प्रतिशत उपज को बढ़ाने में मदद करता है और बाकी 20 प्रतिशत उपज समय से बुआई और सामयिक कृषि क्रियायें करने से बढ़ती हैं।
हमारे देश में धान के अन्तर्गत संकर किस्मों का क्षेत्रफल केवल 5-7 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 95 प्रतिशत है। अतः इसके क्षेत्रफल को बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि संकर किस्मों का बीज काफी महंगा रू0 140-150 प्रति किलोग्रम तक होता है और इसे केवल एक ही बार प्रयोग किया जा सकता है, जिससे अधिकतर किसान इसका प्रयोग नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इतना महंगा बीज उनकी क्रय शक्ति से बाहर है।
संकर धान का एरिया बढ़ाने के लिए कम कीमत पर सरकार के तरफ से बीज उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। हमारे देश में धान की संकर किस्मों के बीज सरकारी विक्रय केन्द्रों पर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं और यह केवल प्राइवेट सेक्टर से ही उपलब्ध हो पाते हैं जिसे लेने में किसान कुछ परेशानी महसूस करता है। संकर धान की उत्पादन तकनीकी का व्यवहारिक विवरण निम्नवत है।
भूमि का चुनाव
धान की संकर किस्मों से अधिकतम पैदावार लेने के लिए दोमट अथवा मटियार दोमट भूमि का चुनाव करना चाहिये, जिसमें पानी को रोकने की क्षमता अधिक होने के साथ-साथ जल निकास का भी उत्तम प्रबन्ध होना अति आवश्यक है।
उपयुक्त किस्मों का चुनाव
एक ही किस्म सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं होती है। अतः संकर धान की खेती हेतु उन्हीं किस्मों का चुनाव करें जो आपके क्षेत्र जलवायु विशेष के लिये संस्तुत हों।
सहारनपुर में कराये गये प्रदर्शनों में देखा गया है कि पंत संकर घान जो कि पकने में कम समय लेता है और इसमें बालियां अन्य किस्मो से पहले निकलती हैं जिस पर गन्धी बग कीटं का प्रकोप होता है जिसके प्रबन्धन पर अपेक्षाकृत दवाई का खर्च बढ़ जाता है। धान गेहूं फसल चक्र के लिए यह उत्तम किस्म है।
गेहूं की समय से बुवाई सम्भव हो जाती है। पी०एच०वी० 71 अच्छी किस्मों में है। इस किस्म का दाना पतला तथा पूसा बासमती-1 की तरह लम्बा होता है जिससे बाजार में इसकी कीमत अन्य प्रजातियों की तुलना में 50-100 रुपये प्रति कु० अधिक मिलती है और उपज भी अच्छी प्राप्त होती है। इसी प्रकार प्रो० एग्रो० की 6444 किस्म मोटे दाने वाली है, हालांकि इसकी उपज अधिक है लेकिन रेट कम मिलता है और इस किस्म में अधिक उर्वरक देने पर गिरने की प्रवृत्ति पायी गई है जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
बीज दर
उन्नतशील अधिक उपजदायी किस्मों की तुलना में संकर किस्मों की बीजदर प्रति हेक्टेयर कम है। कम लगता है अतः संकर धान की रोपाई हेतु 18 से 20 कि0ग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर प्रर्याप्त होता हैं।
पौधशाला बुवाई का समय
संकर किस्मों से अधिक उपज लेने हेतु इनकी पौध की बुवाई मई के अन्तिम सप्ताह से 10 जून तक अवश्य कर दें तथा 21-25 दिन के अन्दर पौधशाला में तैयार पौध की रोपाई मुख्य खेत में अवश्य कर दें। रोपाई में विलम्ब होने पर किल्ले कम फूटते हैं और उपज भी कम मिलती है।
पौध बुवाई की विधि व प्रबन्धन
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु 700-800 वर्ग मी० क्षेत्रफल पौध के लिए पर्याप्त होता है। जिस खेत में पौध बोनी है उसे अप्रैल-मई में पलेवा करके एक दो बार जुताई करके खेत को समतल बना लेते हैं जिससे कि पौधशाला में खरपतवार कम उगे। इसके बाद 1.25 मी० चौड़ी तथा 8-10 मी० लम्बी क्यारियां बनाते हैं। क्यारियां बनाते समय जल निकास हेतु नालियां अवश्य बनायें। क्यारी बनाने के बाद 20 कु० सड़ी गोबर की खाद, 8 किग्रा० सिंगिल सुपर फास्फेट तथा 5 किग्रा) म्यूरेट आफ पोटाश आपस में मिलाकर सभी क्यारियों में एक समान बिखेर कर जुताई करके मिट्टी में मिला दें।
इसके बाद खेत में पानी लगाकर कादल (पडलिंग करें) करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें और पौध बोने से 24-36 घंटे पूर्व बीज को पानी में भिगो दें और पौध बोने से पूर्व बीज को पानी से निकाल कर छाया में सूखने के लिए रख दें। जब बीज से पानी निथर जाए तो छाया में बीज को टाट पर फैला कर 1.5 ग्राम थीस्म और 1.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज के ऊपर फैला कर हल्के हाथ से इस प्रकार मिलायें कि रसायन की हल्की परत बीज के ऊपर चढ़ जाए।
इसके बाद पौध बोने वाले खेत में जब मिट्टी बैठ जाए और पानी स्थिर हो जाए तब बीज को एक समान बखेर कर बुआई कर दें। 24 घण्टे बाद यदि खेत में पानी दिखाई दे तो उसे खेत से बाहर निकाल दें। समय समय पर खेत की हल्की सिंचाई करते रहें।
पौधों की अच्छी बढ्द्वार के लिए बोने के 10-12 दिन के मध्य 8-9 किग्रा) यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करें। जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 400 ग्राम जिंक सल्फेट तथा । किग्रा० यूरिया को 50 ली० पानी में घोलकर शाम के समय छिड़काव करें। कीट एवं व्याधियों का प्रकोप होने पर विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार दवाओं का छिड़काव करें इससे पौध स्वस्थ प्राप्त होती है।
मुख्य खेत की तैयारी
संकर धान की रोपाई जिस खेत में करनी है उसकी गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गर्मियों में कर दें. जिससे की खरपतवार एवं हानिकारक कीटों के अण्डे बच्चे नष्ट हो जाए। यदि गोबर या कम्पोस्ट की सड़ी खाद उपलब्ध हो तो रोपाई से 2-3 सप्ताह पूर्व 100-150 कुन्तल अथवा वर्मी कम्पोस्ट या चीनी मिल की मैली, सड़ी हुई हो तो 50-75 कु० प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में एक समान बिखेर कर जुताई कर मिट्टी में मिला कर पलेवा कर दें और ओट आने पर आवश्यकतानुसार 3-4 जुताई करके रोपाई हेतु खेत की तैयारी करें।
उर्वरकों की मात्र, प्रयोग का समय व विधि
संकर घान से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 150 किग्रा) नाइट्रोजन, 75 किग्रा) फास्फोरस तथा 60 किग्रा० पोटाश प्रति हैक्टर की दर से आवश्यकता पड़ती है। जिसका 2/3 भाग रासायनिक उर्वरकों से तथा 1/3 भाग जैविक खादों जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, बी कमपोस्ट चीनी मील की मेली तथा हरी खाद आदि देना लाभकारी है। अधिक उपज प्राप्त करने हेतु उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षक की संस्तुतियों के अनुसार करना चाहिये।
यदि किसी कारणवश मृदा परीक्षण न करा पाये हों तो रोपाई से पूर्व पडलिंग के लिए खेत में पानी भरते समय 75 किग्रा) नाइट्रोजन, 75 किग्रा० फास्फोरस तथा 60 किग्रा) पोटाश का प्रयोग प्रति हैक्टर की दर से करे। इसके लिये 110 किग्रा) यूरिया, 163 किग्रा० डी०ए०पी० और 100 किग्रा० म्यूरेट आफ पोटाश का प्रयोग प्रति हैक्टेयर की दर से बेसल ड्रेसिंग के रूप में रोपाई से पूर्व करना चाहिये।
यदि खेत की तैयारी के पूर्व गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या प्रेसमड का प्रयोग संस्तुति अनुसार किया हैं तो रोपाई से पूर्व रसायनिक खारों की मात्रा में 50 प्रतिशत तक की कमी कर दें। इसके साथ ही 25 किग्रा) जिंक सल्फेट को प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय अलग से प्रयोग करें। इसे फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे DAP, NPK या सिंगिल सुपर फास्फेट के साथ मिश्रित करके प्रयोग न किया जाए। शेष बची, 165 किग्रा) यूरिया को दो बार में प्रयोग करें।
पहली बार जब रोपाई के बाद पौधे पीले होने के बाद हरे होने लगे तो 100 किग्रा0 यूरिया को अच्छी नमी पर टॉप ड्रेसिंग करके शाम के समय दें। यह स्थिति रोपाई के 14-18 दिन के मध्य और कल्ले फूटने (ब्यांत) से पूर्व आती है। शेष 65 किग्रा0 यूरिया को बालं निकलने से पूर्व अच्छी नमी पर टॉप ड्रेसिंग कर के दें। यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करने से पूर्व यदि खेत में पानी भरा हो तो उसे टॉप ड्रेसिंग से एक दिन पूर्व अवश्य निकाल दें।
मुख्य खेत में तैयार पौध की रोपाई
पौधशाला में जब पौधे 21-25 दिन के हो जाएं तो उन्हें उखाड़ कर कतार से कतार की दूरी 20 सेमी तथा कतार में पौध से पौध की दूरी 10 सेमी० (मटियार भूमि में) रखते हुए रोपाई करें। बलुई दोमट तथा दोमट भूमि में कतार से कतार की दूरी 15 सेमी तथा कतार में पौध से पौध की दूरी 10 सेमी० रखते हुए 2-3 सेमी की गहराई पर रोपाई करें और एक स्थान पर 2-3 पौधों की ही रोपाई करें। अधिक गहरी रोपाई करने पर किल्ले कम निकलते हैं।
सिंचाई
संकर धान की फसल पानी के प्रति अधिक संवेदनशील है लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं समझना चाहिए कि खेत में हमेशा पानी भरा रहना चाहिये। संकर धान की रोपाई के समय, कल्ले फूटते समय, बढ्द्वार की अवस्था में, बालियां निकलते समय, फूल की अवस्था में एवं दानों के दूग्ध अवस्था में खेत में 2-3 सेमी0 पानी का होना आवश्यक है। सावधानी यह रखनी चाहिये कि खेत में पानी के अभाव में कभी भी दरार न पड़ने पाये। दरार पड़ने से मृदा से खुराक लेने वाली पतली जड़ें टूट जाती हैं और पौधे की भूमि से खुराक लेने की प्रक्रिया में रूकावट आती हैं। जिसका सीधा प्रभाव पौधों के वृद्धि, विकास, दाने के आकार, चमक तथा उपज पर पड़ता है।
खरपतवार नियंत्रण
जहां पर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो और खेत में बराबर पानी भरा रहता है वहां पर रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर ब्यूटाकलोर 50 प्रतिशत दवा की 3-4 लीटर मात्रा अथवा एनिलोफास 30 प्रतिशत दवा को 1.65 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में मिश्रित कर प्रति हैक्टेयर क्षेत्रफल में छिड़काव करें। व्यूटाकलोर दवा का प्रयोग करते समय खेत में 2-3 सेमी० पानी का भरा होना अति आवश्यक है इसके अभाव में यह दवा कार्य नहीं करती है। जहां पर खेत में पानी नहीं रूकता है वहां पर बेन्थियोकार्ब 50 प्रतिशत दवा की 3.0 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के बाद तथा 2-3 दिन के अन्दर प्रति हैक्टेयर की दर से अच्छी नमी पर छिड़काव करें।
संकर धान की खड़ी फसल में बिमारियों तथा कीटों की रोकथाम
जिन क्षेत्रों में मृदा में जस्ते की कमी से खैरा बीमारी प्रतिवर्ष आती है वहां पर रोपाई से पूर्व 25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें। यदि बीमारी के लक्षण खड़ी फसल में आ रहा हो तो 5 किग्रा० जिंक सल्फेट और 20 किग्रा0 यूरिया को 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर 10-12 दिन के अन्तराल पर एक से दो बार प्रति है. की दर से छिड़काव करें।
यदि यूरिया की टॉप ड्रेसिंग पूर्व में कर चुके हैं तो जिंक सल्फेट को चूने के पानी के साथ घोल बना कर छिड़काव करें। इसके लिए 2.5 किग्रा. बिना बुझे चूने को 10 लीटर पानी में भिगो दें और लकड़ी से अच्छी प्रकार हिलाकर चूने को पानी में घोल लें अगले दिन सुबह के समय पानी को छान लें चूने के इस पानी को जिंक सल्फेट के साथ मिलाकर मिश्रण तैयार कर ले, इस मिश्रण को 800-1000 ली० पानी में मिलाकर प्रति हे0 की दर से छिड़काव करे।
जीवाणु झुलसा रोग
इस बीमारी के लक्षण पत्तियों पर सर्वप्रथम दिखाई देते हैं जिसमें पत्तियां ऊपरी नोक अथवा किनारे से सूखने लगती हैं और पत्तियों के किनारे सूखकर अनियमित एवं टेढ़े मेढ़े आकार के हो जाते हैं और पौधों की ब्यात और बढ़वार रूक जाती है।
इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही सर्वप्रथम खेत में स्थिर पानी को बाहर निकाल दें। यूरिया की टॉप ड्रेसिंग यदि बाकी हो तो उसे रोक दें। 15 ग्राम स्ट्रैप्टोसायक्लिन और 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से 10-12 दिन के अन्तर से एक दो बार छिड़काव करें।
शीथ झुलसा रोग
इस बीमारी में पत्ती कंचुल पर अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो पत्तियों, तनो पर ऊपर की ओर फैल कर पौधों को सुखा देते हैं। खड़ी फसल में लक्षण दिखाई देने पर थायोफिनेट मिथाइल (टापसीन एम) दवा की 1.5 किग्रा० मात्रा को 700-800 लीटर पानी में घोल कर 12-15 दिन के अन्तराल से एक से दो बार छिड़काव करें।
तना छेदक कीट
यह कीट दो बार फसल को हानि पहुंचाता है। पहली बार किल्ले निकलने के बाद 30-35 दिन की अवस्था में बीच की गोफ को काट देता है जिससे बीच की गोफ सुख जाती है और दूसरी बार बाल निकलने से पूर्व गोफ को काट देता है जिससे बाले सफेद निकलती है और उनमें दाना नहीं बनता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु फसल रोपाई के 30-35 दिन बाद लगातार 10 दिन के अन्तराल से ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम अण्ड परजीवी का 3 कार्ड प्रति हैक्टेयर की दर से शाम के समय 24-25 जगह पत्तियों के नीचले सतह पर स्टेपलर से स्टपल करके 8-8 मीटर की दूरी पर 4-6 बार लगाये अथवा कारटाफ हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत दानेदार दवा को 18 किग्रा मात्रा को सुखे खेत में शाम के समय प्रयोग करें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।