शहतूत की खेती और इसके लाभ      Publish Date : 15/05/2025

               शहतूत की खेती और इसके लाभ

                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

बीते दशकों से किसान जहां एक तरफ मौसम की मार से परेशान है, तो वहीं दूसरी ओर सरकार के रवैये ने भी किसान को तोड़कर रख दिया है। ऐसे में खाद एवं बीज की किल्लत, खेती की बढ़ती लागत और खेती में होने वाले घाटे से उबरने के लिए किसान को कुछ ऐसा करना होगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में अपेक्षित सुधार हो और साथ ही किसान खेती में होने वाले घाटे से भी उबर पाने में सक्षम हो सके।

इसके लिए यदि किसान नकदी फसल के रूप में शहतूत की नर्सरी तैयार कर उसकी खेती की ओर कदम बढ़ाए तो वह अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं। शहतूत की पत्तियों से रेशम कीट पालन के इच्छुक किसान रोजगार के बेहतर अवसर भी प्राप्त कर सकते हैं। रेशम कीट का पालन करने वालों को शहतूत की पत्तियों की आवश्यकता रहती है। इसके साथ ही यदि किसान शहतूत की खेती के साथ ही रेशम कीट का पालन भी करते हैं तो वह अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

                                       

रेशम कीट पालन में 50 प्रतिशत व्यय शहतूत की पत्तियों पर ही होता है, जिनपर रेशम के कीट का जीवन चक्र चलता है। इसी जीवन चक्र में यह कीट कोया बनाते र्हैं और रेशम के इस काए को 300 से 400 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेचा जा सकता है।

शहतूत की नर्सरी तैयार कैसे करें

शहतूत के पौधों को तैयार करने की अनेक विधियां प्रचलन में हैं जैसे- बीज के माध्यम से, ग्राफ्टिंग के माध्यम से, लेयरिंग के माध्यम से और कटिंग के द्वारा आदि।

उच्च गुणवत्तायुक्त शहतूत के पौधे कम लागत में कटिंग विधि से ही तैयार किए जाते हैं। एक उन्नत किस्म के शहतूत की कटिंग को तैयार करने के लिए 6 से 9 महीने पुरानी टहनियों को काट लेते हैं और इन्हें छाया में रख लेते हैं, जिससे यह सूखने न पाएं, इसके बाद इन टहनियों को 6-8 इंच लम्बी और 22 से.मी. मोटाई वाली टहनियों को 45 डिग्री के त्रिकोण पर तेज धार वाले चाकू से काट लेते हैं। ध्यान रखें कि कटी हुई टहनियों से छिलका न निकले और इनमें 4 से 5 तक बड यानि कली हो।

यदि कटिंग को तुरंत न लगाना हो तो कटिंग्स का बंडल बनाकर मिट्टी अथवा किसी बोरे से उन्हें ढंक दें और उनके ऊपर हल्का पानी छिड़कते रहें। इसके बाद जब भी इन्हें खेत में लगाना हो तो कटिंग्स की सीधे ही रोपाई कर दी जाती है।

पौधशाला में कटिंग लगाने का समय और तरीका

पौधशाला में कटिंग लगाने का सबसे उत्तम समय जुलाई-अगस्त एवं दिसम्बर-जनवरी का माह होता है। इस प्रकार दिसंबर-जनवरी में लगाई गई कटिंग जुलाई-अगस्त तथा जुलाई-अगस्त में लगाई गई कटिंग दिसंबर-जनवरी में मुख्या खेत में रोपाई करने के लिए तैयार हो जाती है।

सबसे पहले छोटी-छोटी क्यारी तैयार कर 6-6 इंच की दूरी पर लम्बी-लम्बी लाईन तैयार करें और फिर कटिंग का दो-तिहाई भाग 3 इंच की दूरी पर लाईनों में तिरछा गाड़ दिया जाता है।

8-10 लाईन लगाने के बाद एक फुट जगह छोड़ देनी चाहिए। इससे घास-फूंस निकालने में आसानी रहती है। कटिंग को लगाने के बाद उसे चारो ओर से मिट्टी में दबा देना चाहिए और खेत में गोबर की खाद डालकर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

एक एकड़ की पौधशाला में कटिंग पर 6-8 पत्तियों के आने के बाद 15-20 दिन के अंतराल पर उर्वरक का प्रयोग करने के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए।

रोपण विधि

नर्सरी में कटिंग लगाने के 6 माह बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं। एक एकड़ खेत में लगभग 5,000 पौधों की आवश्यकता होती है और कलम की रोपाई 3x3 या 6x3x2 मीटर की दूरी पर करें। पौध के विकास में ण्क वर्ष का समय लगता है और उचित देखभाल करने पर तीसरे वर्ष में एक एकड़ के क्षेत्र में लगभग 10,000 किलोग्राम पत्तियों का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है और इतनी पत्तियों पर 300 किलोग्राम तक कोया उत्पादित किया जा सकता है।

शहतूत की उन्नत प्रजातियाँ

                                              

के-2, एस-16, टीआर-10, और एस-54 आदि शहतूत की उन्नत प्रजातियाँ हैं, किसान भाई शहतूत की इन प्रजातियों का उपयोग कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

भूमि का चयन

शहतूत की खेती के लिए बलुई तथा दोमट मृदा को सर्वोत्तम माना गया है। सिंचाई की उत्तम सुविधा के साथ जिस खेत में वर्षा का पानी नहीं रूकता हो ऐसी समतल जमीन में शहतूत को अच्छे तरीके से तैयार किया जा सकता है।

उर्वरक, कीटनाशक एवं सिंचाई

वृक्षारोपण करने के 2 से 3 माह के बाद 50 किलोग्राम नाईट्रोजन प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें तथा खेत की सिंचाई कर निराई-गुड़ाई करते रहें। वर्षा के महीनों में 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। इसके साथ ही मई-जून के महीने में सिंचाई का विशेष ध्यान रखें।

शहतूत के पौधों में दीमक के लगने से बचाने के लिए खेत को तैयार करते समय ही 100 किलोग्राम बीएचसी पाउडर 20 फीसदी, एल्ड्रिन 5 फीसदी को मिलाना उचित रहता है।

शहतूत में कटाई-छंटाई (प्रूनिंग)

शहतूत को एक बार लगाने और उचित देखभाल करने के बाद लगभग 15 वर्षों तक उच्च गुणवत्ता वाली पत्तियों को प्राप्त किया जा सकता है। शहतूत की कटाई-छंटाई जून-जुलाई के माह में जमीन से 6 इंच की ऊँचाई पर तथा दिसंबर माह के मध्यम में जमीन से 3 फुट की ऊँचाई पर की जाती है और कटाई-छंटाई के समय ध्यान रखें कि पेड़ की छाल नहीं निकलने पाएं।

इस प्रकार वर्ष में दो बार कटाई-छंटाई करके अधिक पत्ती प्राप्त की जा सकती हैं। जबकि वृक्षनुमा पेड़ की छंटाई वर्ष में एक बार दिसंबर माह में की जा सकती है। कटाई-छंटाई लगातार करने से शहतूत की पत्ती अधिक प्राप्त होती है इससे अधिक लाभ प्राप्त होता है क्योंकि कोया का उत्पादन करने में 50 प्रतिशत व्यय पत्तियों पर ही होता है।

आर्थिक लाभ

शहतूत की खेती के लिए प्रति एकड़ 5,000 पौधों की आवश्यकता होती है, जबकि आमदनी की बात करे तो एक पौधे से 2 से 2.5 रूपये तक की आमदनी प्राप्त होती है। बाजार में एक किलोग्राम कोया की कीमत अनुमानित 250-300 तक होती है और इस तैयार किए गए कोया को रेशम विभाग को आसानी से बेचा जा सकता है, हालांक कोए के भाव में भी उतार-चढ़ाव होते रहते हैं

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।