अजोला की खेती की वैज्ञानिक विधि      Publish Date : 10/05/2025

              अजोला की खेती की वैज्ञानिक विधि

                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

"अजोला एक महत्वपूर्ण बहुगुणी फर्न है। इसका उपयोग पशुओं, मछली एवं कुक्कुट के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी उपज लागत भी बहुत कम (एक रुपया प्रति कि.ग्रा.) होती है। यह तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो पानी की सतह पर छोटे-छोटे समूह में सघन हरित गुच्छ की तरह तैरती रहती है। भारत में मुख्य रूप से अजोला की प्रजाति अजोला पिन्नाटा पायी जाती है। यह गर्मी सहन करने वाली किस्म है। इनकी पंखुड़ियों में एनाचिना नामक नील-हरित काई के प्रजाति का एक सूक्ष्मजीव होता है, जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करता है। हरे खाद की तरह यह फसल को नाइट्रोजन की पूर्ति करता है।“

अजोला की विशेषता है कि अनुकूल वातावरण में 5-6 दिनों में ही इसकी वृद्धि दोगुनी हो जाती है।यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये, तो 300-350 टन तक प्रति हैक्टर पैदावार ली जा सकती है। इससे 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रत्ति हैक्टर प्राप्त होता है।

इसमें 3.3-3.5 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं और ये भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। किसानों को कम कीमत पर बेहतर जैविक खाद मुहैया कराने की दिशा में ये बड़ा कदम है।

उपयोग एवं लाभ

जैविक हरी खाद के रूप में

                                                             

धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। इसके लिए 2 से 4 इंच पानी से भरे खेत में 10 टन ताजा अजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर 30 से 40 कि.ग्रा. सुपर फॉस्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्धि के लिये 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान अत्यंत अनुकूल होता है। धान के खेत में अजोला छोटे-मोटे खरपतवार को दबा देता है। इसके उपयोग से धान की फसल में 5 से 15 प्रतिशत उत्पादन वृद्धि संभावित रहती है।

यह वायु मंडलीय कार्बन डाइ-ऑक्साइड और नाइट्रोजन को क्रमशः कार्बोहाइड्रेट और अमोनिया में बदल सकता है। अपघटन के बाद, फसल को नाइट्रोजन तथा मि‌ट्टी में जैविक कार्बन सामग्री उपलब्ध करवाता है। ऑक्सीजेनिक प्रकाश संश्लेषण में उत्पन्न ऑक्सीजन फसलों की जड़ प्रणाली और मिट्टी में उपलब्ध अन्य सूक्ष्म जीवों को श्वसन क्रिया में मदद करता है। यह धान के सिंचित खेत से वाष्पीकरण की दर को कम करता है। अजोला एक सीमा तक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरकों (20 कि.ग्रा./हैक्टर) के विकल्प का काम कर सकता है। यह फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ाता है।

यह रासायनिक उर्वरकों के उपयोग की क्षमता में वृद्धि करता है। अजोला क्यारी से हटाया गया पानी सब्जियों की खेती के लिए वृद्धि नियामक का कार्य करता है। इससे सब्जियों एवं फूलों के उत्पादन में वृद्धि होती है।

                            सारणी 1. शुष्क पदार्थ के आधार पर सुखाए गए अजोला को संरचना

पोषक तत्व

शुष्क पदार्थ (प्रतिशत)

शुष्क पदार्थ

91.78

कार्बनिक पदार्थ

74.50

क्रूड प्रोटीन

22.25

क्रूड फाइबर

11.19

इधरअक

2.45

नाइट्रोजन मुक्त अर्क

38.61

कुल राख

25.50

अम्ल अघुलनशील राख

7.94

                                सारणी 2. विभिन्न अजोला प्रजातियों की पोषक संरचना

पोषण सन्धी सामग्री

अजोला कैरोलिनियाना

अजोला माइक्रोफिला

अजोला पिनाटा

क्रूड प्रोटीन (%)

23.07

23.69

17.59

क्रूड फाइबर (%)

13.19

15.02

16.54

कुल राख (%)

29.17

28.71

25.28

कैल्शियम (%)

2.07

2.07

1.67

फॉस्फोरस (%)

0.50

0.77

0.46

आयरन (%)

0.269

0.249

0.231

मैग्नीज (%)

0.238

0.274

0.205

सोडियम (%)

1.240

0.488

0.777

पोटेशियम (%)

2.44

4.93

2.19

तांबा (PPM)

16.37

17.55

15.90

जिंक (PPM)

64.61

71.75

46.77

मैग्नीशियम (PPM)

0.150

0.173

0.155

नमी (%)

5

5

5

पशुचारा:

    अजोला सस्ता, सुपाच्य एवं पौष्टिक पशु आहार है। इसे खिलाने से वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं के दूध में अधिक पाई जाती है। पशुओं के मूत्र में रक्त की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है। अजोला खिलाने से यह कमी दूर हो जाती है। इससे पशुओं की कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन की आवश्यकता की पूर्ति होती है और पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा होता है। इसमें प्रोटीन, आवश्यक अमीनोअम्ल, विटामिन (A तथा B-12) तथा बीटा कैरोटीन एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत, प्रोटीन 12-15 प्रतिशत, रेशा 10-15 प्रतिशत, खनिज 7-10 प्रतिशत, अमीनो अम्ल, जैव-सक्रिय पदार्थ एवं पॉलिमर्स आदि पाये जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है। अतः इसकी संरचना इसे अत्यंत पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। उच्च प्रोटीन एवं निम्न लिग्निन तत्वों के कारण मवेशी इसे आसानी से पचा लेते हैं। यही नहीं अजोला को भेड़-बकरियों, शूकरों, खरगोश एवं बत्तखों के आहार के रूप में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रतिपशु 1.5 कि.ग्रा. अजोला नियमित रूप से दिया जा सकता है, जो पूरक पशु-आहार का काम करता है।

यदि दुधारू पशु को 1.5 से 2 कि.ग्रा. अजोला प्रति दिन दिया जाता है, तो दुग्ध उत्त्पादन में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि की जा सकती है। इसे खाने वाली गाय-भैसों की दूध की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर हो जाती है। अजोला की वजह से गाय-भैंस के दूध में गाढ़ापन बढ़ जाता है। अगर इसे गाय-भैंस, भेड़-बकरियों को खिलाया जाता है, तो इससे इनका उत्पादन और प्रजनन की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

कुक्कुट आहार

कुक्कुट आहार के रूप में अजोला का प्रयोग करने पर ब्रॉयलर पक्षियों के भार तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि पाई जाती है। मुर्गियों को 30-50 ग्राम अजोला प्रतिदिन खिलाने से इनके शारीरिक भार व अण्डा उत्पादन क्षमता में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि होती है। यह मुर्गी-पालन करने वाले व्यावसायियों के लिए बेहद लाभकारी चारा सिद्ध हो रहा है।

अन्य उपयोग

अजोला, मछली-पालन में भी एक महत्वपूर्ण आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। इसे जैविक खाद, मच्छर-प्रतिरोधी क्रीम, सलाद तैयार करने तथा बायोरक्वेंजर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

अजोला तैयार करने की विधि

किसी छायादार स्थान पर 60×10×2 मीटर आकार का गड्‌ढा खोदें, गड्‌ढे में 120 गेज की प्लास्टिक शीट को बिछाकर ऊपर के किनारों पर मिट्टी का लेप लगा दें। 80-100 कि.ग्रा. उपजाक मिट्टी की परत गड्‌ढे में बिछा दें। इसके बाद 5-7 कि. ग्रा. गोबर को 10-15 लीटर पानी में घोल बनाकर मिट्टी पर फैला दें।

गड्ढे में 10-15 सें.मी. (400-500 लीटर) तक पानी भरें। अब मिट्टी व गोबर के मिश्रण को जल में अच्छी तरह मिश्रित कर दें। इस मिश्रण पर 2 कि.ग्रा. ताजा अजोला को फैला दें। इसके बाद पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिड़कें, जिससे यह अपनी सही स्थिति में आ सकें। गड्ढे को नायलॉन की जाली से ढककर 15-20 दिनों तक वृद्धि होने के ­­लिए छोड़ दें। लगभग 21 दिनों के बाद 15 20 कि.ग्रा. अजोला प्रतिदिन प्राप्त हो सकता है। प्रतिदिन इसी दर से उपज प्राप्त करने हेतु 20 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 50 कि.ग्रा. गोबर का घोल बनाकर प्रतिमाह गड्ढे में मिला दें।

कटाई

10-15 दिनों के भीतर, गड्‌ढा तेजी से भर जाता है। इसके बाद, रोजाना 500-600 ग्राम अजोला काटा जा सकता है। कटे हुए अजोला से गोबर की गंध को हटाने के लिए ताजे पानी से धोना चाहिए।

सावधानियां

  • संक्रमण रहित वातावरण का होना अति-आवश्यक।
  • अजोला की उच्च वृद्धि और उत्पादन सुचारू रूप से करने के लिए, प्रतिदिन लगभग 200 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से इसे चाहर निकाल कर उपयोग करना आवश्यक।
  • बेहतर विकास के लिए तापगान एक गहत्वपूर्ण कारक है। इसके लिए लगभग 35 डिग्री सेल्सियस और सापेक्षिक आर्द्रता 65-80 प्रतिशत होनी चाहिए। इसके लिए ठंडे क्षेत्रों में प्लास्टिक की शीट से ढका जाना जरूरी।
  • माध्यमका पी-एच मान 5.5 से 7 के बीच होना जरूरी।
  • प्रत्येक 10 दिनों के बाद, एक बार अजोला तैयार करने के लिए टैंक या गड्ढे के 25-30 प्रतिशत पानी को ताजे पानी से बदल देना चाहिए, ताकि नाइट्रोजन की अधिकता से बचा जा सके।
  • प्रत्येक 6 महीने के अंतराल में, अजोला बनाने के लिए टैंक या गड्ढे को एक बार पूरी तरह से खाली करके साफ करना चाहिए इसके बाद नई मिट्टी, गोबर, पानी और अजोला कल्चर को डालना चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।