सोयाबीन की उन्नत खेती      Publish Date : 07/05/2025

                       सोयाबीन की उन्नत खेती

                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

गतांक से आगे.................

सोयाबीन की अंतरवर्तीय फसलें:- एकाकी सोयाबीन की खेती के अलावा इसकी खेती अंतरवर्तीय रुप से भी विभिन्न फसलों के साथ की जा सकती है। भारत में विभिन्न परीक्षणों के अनुसार सोयाबीन की अंतरवर्तीय फसलें प्रेषित की गई है। विभिन्न परीक्षणों में सोयाबीन के साथ अरहर अथवा मक्का की खेती लाभप्रद पाई गई है। अंतरवर्तीय खेती में खरपतवार नियंत्रण हेतु रसायनिक खरपतवार नाशक का उपयोग नहीं किया जा सकता। अतः खरपतवार नियंत्रण मजदूरों आदि से ठीक प्रकार समय पर करना चाहिए। कटाई तथा खाद एवं उर्वरक की क्रियाओं में भी विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

अरहर के साथ सोयाबीन की अंतरवर्तीय फसल बोना उन खेतों में अत्यंत लाभदायक होगा, जहां सोयाबीन के बाद रबी फसल लेने की संभावना न हो।

1.   अरहर की मध्यम से देर से पकने वाली किस्मों जैसे जवाहर-3, जवाहर-4, आई. सी. पी. एल. -87, आई. सी. पी. एल. -88, आई. सी. पी. एल. -151, सी-11।

2. अरहर की बीज दर 20 किलो प्रति हैक्टेयर एवं उर्वरक की सोयाबीन में अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग करें।

3.   अरहर सोयाबीन की अंतवर्तीय फसल में कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. रखें।

4.   जितने क्षेत्र में सोयाबीन लगाई जा रही है उतने क्षेत्र के हिसाब से बीजदर एवं उर्वरक खाद की अनुशंसित मात्रा (2/3) का प्रयोग करें।

5.   सोयाबीन की काश्त फल, बागों में बीच की खाली जमीन में भी करना लाभकारी है।

                                                       

खरपतवार नियंत्रणः सोयाबीन खरीफ मौसम की फसल होने से इसमें खरपतवार की गंभीर समस्या बनी रहती है। सोयाबीन के खेत को बुवाई के बाद 45 दिनों तक खरपतवार से मुक्त रखें। खरपतवार प्रबंधन के नहीं होने पर 40-45% तक उपज में कमी आती है। खरपतवार सोयाबीन की फसल पर प्रकाश, मृदा, वायु, जल तथा पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा कर उसकी उपज में भारी कमी करते हैं। बुवाई के बाद प्रारंभिक 45 दिनों तक खरपतवार द्वारा अधिक नुकसान होता है। अतः इस अवधि में खरपतवार प्रबंधन आवश्यक है। सोयाबीन फसल में खरपतवार का प्रबंधन शस्य क्रियाओं एवं आवश्यकतानुसार रसायनिक दवाईयों से करना चाहिए।

यांत्रिक विधि/शस्य क्रियाओं द्वाराः निंदाई के लिये

मानव, बैल चलित एवं ट्रैक्टर चलित कई प्रकार के यंत्र उपलब्ध है जिनमें मानव चलित ग्रबर, ड्रायलेण्ड वीडर तथा व्हील हो, हेन्ड हो बहुत ही उपयुक्त हैं। सामान्यतः 20-25 तथा 40-45 दिनों पर दो बार निंदाई करना उचित रहता है। पशुओं से चलने वाले यंत्र डोरा और तीन फाल वाला कल्टीवेटर सोयाबीन में निंदाई के लिए सुविधाजनक एवं उपयोगी पाए गए हैं।

ट्रेक्टर से चलने वलो यंत्रों जैसे कल्टीवेटर को कतारों के बीच डोरा जैसा लगाया जा सकता है। इससे कम समय में अधिक फसल में डोरा जैसी निंदाई हो जाती है या ट्रेक्टर चलित पंक्ति वाला रोटरी नींदा नियंत्रक यंत्र उपयोग में लायें। ट्रैक्टर चलित निंदाई यंत्रों का उपयोग करते समय पतले टायर का उपयोग करें एवं पंक्ति से पक्ति की दरी 40-45 सेमी. रखें।

फसल में प्रथम डोरा बुवाई के 25-30 दिन बाद करना चाहिए। डोरा चलाते समय सावधानी रखनी चाहिए कि पौधे न उखड़ने पाये। इस विधियों द्वारा खरपतवार नियंत्रण तो होता ही है, साथ ही साथ फसल में गुडाई के कारण मृदा में वायु संचार बढ़ने से उपज में और वृद्धि होती है तथा वर्षा नहीं होने की स्थिति मैं मिट्टी पलवार का काम करती है, जिससे जमीन में नमी लंबे समय तक बनी रहती है।

रसायनिक विधिः- किसी कारणवश कृषकों को डोरा/निंदाई का पर्याप्त समय नहीं मिलता है तो अनुमोदित रसायनिक नौदानाशकों का सही दर एवं सही तरीके से प्रयोग करें।

रसायनिक नींदानाशक के तीन विकल्प उपलब्ध हैः-

1. बोवनी के पूर्व उपयोग में आने वालेः फ्लूक्लोरेलीन 48 ईसी 2.22 लीटर या ट्रायईफ्लूरोलीन 50 ईसी 2 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर का 700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

2. बोवनी के तुरंत बाद व सोयाबीन के अंकुरण के पूर्व उपयोग में आने वालेः- एलाक्लोर 4 लीटर या एलाक्लोर 10 जी 20 किग्रा. या मेटोलाक्लोर 50 ईसी 2 लीटर या क्लोमोझोन 50 ईसी 2 लीटर या पेण्डीमिथालीन 30 ई. सी.।

3. 25 लीटर का प्रति हैक्टेयर 700 लीटर पानी में घोल बनाकर फ्लेट पेन नोजल से छिड़काव करें।

खड़ी फसल में उपयोग किये जाने वाले नींदानाशकः-

अ. संकरी पत्ते की नींदाओं के नियंत्रण के लिए बोनी के 15-30 दिन बाद क्विजालोफोसईथाइल 5 प्रतिशत ईसी 1 लीटर/हैक्टेयर का छिड़काव खड़ी फसल में 700 लीटर पानी में घोल बनाकर फ्लेट पेन नोजल से करें।

ब. चौड़ी पत्ती की नींदाओं के नियंत्रण के लिए क्लोरीम्यूरोन ईथाइल 36 ग्राम/हैक्टेयर का छिड़काव बोवनी के 15-25 दिन बाद करें।

स. दोनों प्रकार के नींदाओं (सकरी एवं चौड़ी) के नियंत्रण के लिए इमाजेथापायर (720 मिली) को 700 लीटर पानी में घोल बनाकर 2-3 पत्ती अथवा 3 इंच खरपतवार की अवस्था पर छिड़काव करें या क्विजालोफोस ईथाइल 5 ईसी 1 लीटर/हैक्टेयर क्लोरोम्यूरान ईथाइल 36 ग्राम/हैक्टेयर का छिड़काव बोने के 15-25 दिन बाद 700 लीटर पानी में घोल बनाकर करें। नींदा नाशकों के छिड़काव के समय भूमि में नमी होनी चाहिए एवं स्प्रेयर में फ्लेट पेन नोजल लगानी चाहिए।

समन्वित खरपतवार नियंत्रण एवं सफल खरपतवार नियंत्रण हेतु

                                            

आवश्यक सुझावः-

1. रबी फसल काटने के बाद खेत की गहरी जुताई करें। अगर प्रत्येक वर्ष संभव न हो तो हर दूसरे या तीसरे वर्ष गहरी जुताई जरुर करें।

2. बोवनी के पूर्व खेत में एक बार बक्खर व पाटा अवश्य चलायें।

3. फसल चक्र अवश्य अपनायें।

4. सोयाबीन बौज के साथ कोई भी खरपतवार रसायन न मिलावें।

5. खरपतवार नाशक छिड़काव के लिए फ्लेटफेन या फ्लडजेट नौजल का ही उपयोग करें।

6. पूरे खेत में समान रुप एवं एक चाल से छिड़काव करें।

7. खरपतवारनाशों से अच्छे परिणाम के लिए 700 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर का उपयोग अवश्य करें।

8. खरपतवारनाशक का उपयोग करते समय भूमि में नमी हो। बोवनी से पूर्व डाले गये खरपतवारनाशकों को मिट्टी में अच्छी तरह से तुरंत मिला दें।

9. सोयाबीन के लिए अनुमोदित खरपतवारनाशकों का ही उपयोग करें।

10. खड़ी फसल में खरपतवारनाशक का उपयोग खरपतवार की 2-3 पत्ती अथवा 3-4 इंच की अवस्था पर ही करना चाहिए।

11. रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानियां बरतें जैसे-मुंह पर पड़ा बांधना, हाथों में दस्ताने पहनना आदि।

12. छिड़काव के बाद छिड़काव यंत्र के सभी भागों को अच्छी तरह से पानी से धोकर सफाई करें।

सिंचाईर: चूंकि सोयाबीन की फसल खरीफ मौसम में लगाई जाती है। अतः यदि वर्षा सामान्य एवं नियमित अंतराल पर होती है तो ऊपर से सिंचाई देने कीआवश्यकता नहीं है किन्तु असामान्य स्थिति में फसल की क्रांतिक अवस्था जैसे पुष्पन या फली में दाना पड़ने की अवस्था पर फसल को सूखे से अवश्य बचाना चाहिए एवं सिंचाई करने से अच्छी उपज निश्चित है। यदि संभव हो तो पौधों की नन्हीं अवस्था में भी सूखे की स्थिति को सिंचाई द्वारा दूर करना चाहिए।

                                        

पहचान एवं लक्षणः- सोयाबीन में कई स्थानों पर कभी-कभी फलियां नहीं बनती। इसका प्रमुख कारण एक प्रकार की हरी अर्द्धकुण्डलक इल्ली (क्रायसोडेक्सिस एक्यूटा) है जिसके मुंह की ओर का हिस्सा पतला व पिछला हिस्सा मोटा होता है। यह इल्ली प्रायः फूल आते समय फूलों एवं कलियों को खा लेती है जिससे पौधे बांझ दिखते हैं।

कुछ समय बाद ऐसे प्रभावित पौधे में दुबारा फूल व कलियां बनती है जिनकी संख्या काफी अधिक (प्रत्येक गतान पर 50-60 तक) होती है। परन्तु उस समय तक पानी की कमी के कारण इन पुष्प कलियों में फलियां एवं दाने बहुत कम बनते हैं। ऐसी फसल में प्रायः यह देखा गया है कि सिंचाई करते रहने पर संतोषजनक उपज मिल जाती है।

रोकथाम के उपायः ऐसे खेतों पर जहां अफलन की समस्या हर साल उग्र रूप में आती हो, वहां फसल में फूल आने से पहले एवं फूल आने के बाद की अवस्था पर निम्नलिखित में से किसी एक दवा का 700 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर में छिड़काव करने से बांझपन (अफलन) की समस्या रोकी जा सकती है। इण्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.5 लीटर/हैक्टेयर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी.1.5 लीटर/हैक्टेयर या ट्राईजोफॉस 40 ई.सी.800 मिली./हे. या मिथोमिल 40 एस.पी. 1 कि.ग्रा./हे. या इथिऑन 50 ई.सी. 1.5 ली./हे. या विनॉलफॉस 25 ई.सी. 1.5 ली./हे. में से किसी एक दवा।

एकीकृत उपायः-

1. बुवाई के समय फोरेट 10 जी से मिट्टी का उपचार 10 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फसल की आरंभिक अवस्था में लगने वाले संभावित वाहक कीटों के नियंत्रण हेतु अवश्य ही उपयोग में लें।

2. रोग से ग्रसित फसल के बीज को बुवाई के काम में न लें क्योंकि यह कम गुणवत्ता वाले व अस्वस्थ बीज होते हैं।

3. अनुशंसित बीज दर 75 से 100 किलो प्रति हैक्टेयर (किस्मों के बीज के आकार के हिसाब से) ही काम में लें क्योंकि अधिक पौध संख्या होने पर रोग के जल्दी व उग्र रूप में आने की संभावना होती है।

4. सनई या तिल की फसल सोयाबीन अफलन रोग के पाए जाने वाले क्षेत्रों में न लें क्योंकि यह फसल रोग वाहक कीटों के पालन में मदद करती है।

फसल की कटाई, गहाई व बीज भण्डारणः-

कटाईः- जब 75 प्रतिशत फलियों का रंग हरे से बदल कर पीला या भूरा या काला आदि हो जाए तब तेज धार की दराती से नीचे से काटें ताकि एक भी फली तने पर नहीं छूटे। कटी फसल को खलिहान में फैलाकर सुखाना चाहिए।

गहाईः- फसल को 2-3 दिन तक धूप में सुखाकर थ्रेशर से धीमी गति (300-400 आर.पी.एम.) पर 12 इंच की पुली लगाकर गहाई करनी चाहिए। बीच-बीच में बीज का निरीक्षण करते रहना चाहिए कि बीज टूट तो नहीं रहा है अन्यथा थ्रेशर में समन्जन (एडजस्ट) करके थ्रेशर की गति को कम करना चाहिए। गहाई के बाद भूसे को उड़ाकर निकालना चाहिए।

भण्डारणः गहाई के बाद बीज की 3-4 दिन तक धूप में अच्छा सुखाकर भण्डारण करना चाहिए। भण्डार गृह ठंडा, हवादार व कीट रहित होना चाहिए। कटाई के बाद आगामी बोवनी तक अर्थात करीब 7 से 8 माह तक बोज भण्डार में रखना होता है। इस दौरान अंकुरण क्षमता में कमी आती है। यदि कटाई, गहाई, बीज में नमी प्रतिशत, भण्डारण इत्यादि में सावधानी नहीं रखी गई, तो मानक अंकुरण (70 प्रतिशत) में 10 से 25 प्रतिशत कमी आ जाती है।

भण्डारण में सावधानियां: बीज को साफ तारपोलीन पर बिछाकर सुखायें। सूखे बीज को बोरों में भरकर गोदामों में लकड़ी के पटियों (रेक्स) पर दीवार से दूर रखें, जिससे बीज जमीन या दीवार से नमी न सोखें। बोरों की थप्पी अधिक ऊंची न लगाएं एवं बोरों को एक दूसरे के ऊपर विपरीत दिशा में रखना चाहिए। सोयाबीन के बोरों को खलिहान से लाने एवं भंडार में रखते समय ऊंचाई से न पटकें। उचित होगा कि बैलगाड़ी, ट्रेक्टर ट्रॉली से उतारते समय दो आदमी भण्डारण के स्थल पर बोरों को धीरे से रखकर थप्पी लगाएं।

बीज मानक के अनुसार बीज शुद्धता 98 प्रतिशत, अंकुरण क्षमता 70 प्रतिशत व नमी 12 प्रतिशत है। बीज के वर्गीकरण व उपचार के समय बीज में 10 प्रतिशत नमी होना चाहिए। पोलीथीन अस्तर के बोरों का उपयोग न करें क्योंकि उसमें नमी के एकत्रित होने व बीज के श्वसन क्रिया से तापमान बढ़ने की संभावना अधिक रहती है। भण्डार गृह में वायुसंचार होते रहना चाहिए। भण्डारण के लिए सही तापक्रम 20-25 डिग्री सेल्यियस है। इस तापक्रम को गांवों के भण्डार घरों में थोड़ा सुधार कर पाया जा सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।