
एस.आर.आई. (श्री) धान उत्पादन की उन्नत पद्धति Publish Date : 29/04/2025
एस.आर.आई. (श्री) धान उत्पादन की उन्नत पद्धति
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं गरिमा शर्मा
पिछले एक दशक के दौरान देश एवं विशेष रुप से उत्तर प्रदेश में निरंतर चावल की उत्पादकता में कमी एवं ठहराव सा आ गया है, जो कि बढ़ती हुई जनसंख्या के दृष्टिगत चावल का उत्पादन चिंता का विषय है। चावल का खाद्यान्न आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान है। उत्तर प्रदेश में क्षेत्रफल आच्छादन एवं चावल उत्पादन की दृष्टि से गेहूं के बाद धान दूसरे नंबर पर आता है। देश के कुल चावल उत्पादन का लगभग 12 प्रतिशत उत्पादन धान के अंतर्गत कुल आच्छादित क्षेत्रफल के 13 प्रतिशत भाग उत्तर प्रदेश द्वारा किया जा रहा है। अत्यधिक निवेश आधारित तकनीकी का अंगीकरण आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी एवं पर्यावरण विनाशक साबित हो रहा है।
उन्नतशील एवं संकर प्रजातियों के प्रसार, एकीकृत पोषक तत्व एवं फसल सुरक्षा प्रबंधन आदि को बढ़ाने के बावजूद चावल के उत्पादन एवं उत्पादकता को कुछ हद तक बढ़ाना संभव है, परंतु स्थायी समाधान के रुप में ऐसे उपाय की आवश्यकता है जो कम लागत से अधिक पैदावार देने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन संरक्षक तथा पर्यावरण हितैषी भी हो।
उक्त सभी विशेषताएं, सिस्टम ऑफ राईस इन्टेन्सीफिकेशन अर्थात (श्री) या एस. आर. .आई. पद्धति के अंतर्गत पाई जाती है। सामान्य धान उत्पादन तकनीकी की तुलना में श्री पद्धति सस्ती एवं अधिक पैदावार देने वाली है।
धान उत्पादन की आधुनिक (श्री) एस.आर.आई. पद्धति क्या है?
देश की 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या चावल को मुख्य खाद्यान्न के रुप में प्रयोग करती है। जिसके कारण चावल का खाद्य सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि आधारित सकल घरेलू उत्पाद में चावल का लगभग 24 प्रतिशत योगदान होता है। पिछले एक दशक के दौरान चावल की उत्पादकता देश एवं प्रदेश स्तर पर 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के आसपास रहने के कारण चावल की उत्पादकता में कमी एवं ठहराव सा आ गया है। जो कुल जनसंख्या के दृष्टिगत चावल का उत्पादन चिंता का विषय है।
ऐसी स्थिति में चावल की उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने में सिस्टम ऑफ राईस इन्टेन्सीफिकेशन अर्थात (श्री) (एस.आर.आई) पद्धति काफी उपयोगी साबित होगी।
अधिक मात्रा में देशी खाद का प्रयोग, नियंत्रित सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण हेतु कोनोवीडर का प्रयोग इत्यादि इस पद्वति की विशेषता है। एस.आर.आई. पद्धति के मुख्य प्रबंधनः एस. आर. आई. पद्धति से धान उत्पादन के मुख्य अवयव निम्नलिखित हैं।
1. मृदा उर्वरता का प्रबंधन।
2. पौध रोपण का तरीका।
3. कोनोवीडर के द्वारा खरपतवार नियंत्रण।
4. नियंत्रित सिंचाई प्रबंधन।
5. जैविक कीट प्रबंधन ।
6. जैविक रोग प्रबंधन।
एस.आर.आई. पद्धति के सिद्धांतः एस.आर.आई. पद्धति से धान उत्पादन के मुख्य अवयवों को ध्यान में रखते हुए, श्री पद्धति के सिद्धांतों को निम्नवत अपनाकर धान से चमत्कारी उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
1. कार्बनिक व जैविक खादों के द्वारा पोषक तत्वों का प्रबंधन।
2. 08 से 12 दिन की नर्सरी पौध की रोपाई।
3. मिट्टी एवं बीज चोल सहित एक पौध की रोपाई।
4. पौध से पौध की दूरी 25 सेमी.।
5. लाइन से लाइन की दूरी 25 सेमी.।
6. कोनीवीडर की सहायता से निराई-गुड़ाई।
7. नियंत्रित जल प्रबंधन इत्यादि।
भूमि का चयनः मृदा लवणीय व क्षारीय हो एवं जल भराव की स्थिति हो तो ऐसे में एस.आर.आई. पद्धति से धान की खेती नहीं की जा सकती है। ऐसी मृदा जिसमें पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ, उचित सिंचाई प्रबंधन व जल निकास की उचित व्यवस्था हो ऐसी भूमियों में सुचारु रुप से धान की खेती की जा सकती है।
देशी खाद की मृदा में कमी पाई जाती है तो पौधों की कोमल जड़ों के टूटने का भय रहता है। ऐसी स्थिति में कार्बनिक खादों की पूर्ति गोबर की खाद, जीवाश्म खाद एवं हरी खाद वाली फसलों का प्रयोग करके कार्बनिक खादों से वांछित मात्रा की पूर्ति की जा सकती है क्योंकि पौध का रोपण मिट्टी एवं बीज चोल सहित किया जाता है।
कार्बनिक पदार्थों का प्रबंधनः देशी गोबर, जैविक एवं हरी खाद वाली फसलों की खाद का प्रयोग एस. आर.आई. पद्धति का एक अभिन्न अंग है, खेत की तैयारी करते समय लगभग 15 टन सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग प्रति हैक्टेयर की दर से किया जाना चाहिए।
यदि हरी खाद के रुप में ढँचा व सनई का प्रयोग किया जाना हो तो उस खेत में रोपाई करने से 45 से 50 दिन पूर्व ढैंचा व सनई की बुवाई कर उसे फूल आने की अवस्था पर मिट्टी में अच्छी प्रकार से पलटकर सड़ने के उपरांत 8 से 12 दिन की तैयार पौध की रोपाई की जाती है।
जैविक खादों के प्रयोग से मृदा की भौतिक, रसायनिक व जैविक गुणों व मृदा की जल धारण क्षमता में अत्यधिक सुधार होता है, जिसके कारण मृदा में उचित वायु संचार की स्थिति से सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या एवं उनकी सक्रियता बढ़ जाती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।