मक्का की खेती करने की वैज्ञानिक विधि      Publish Date : 24/04/2025

             मक्का की खेती करने की वैज्ञानिक विधि

                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

मक्का खरीफ ऋतु की फसल है, परन्तु सिचाई के समुचित साधन उपलब्ध होने पर रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप मे मक्का की खेती आसानी से की जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का एक समृद्व स्रोत होता है। मक्का एक बहुपयोगी फसल है जो मनुष्य के साथ-साथ पशुओं के आहार का भी एक प्रमुख अवयव है और इसके साथ ही औद्योगिक दृष्टि से भी मक्का की खेती का एक महत्वपूर्ण स्थान है।

अब मक्का का उपयोग चपाती के रूप मे, भुट्टे सेंककर, मधु मक्का को उबालकर, कॉर्नफलेक्स, पॉपकार्न, लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। साथ ही साथ इससे पौष्टिक रूचिकर चारा प्राप्त होता है।

भुट्टे काटने के बाद बची हुई कडवी पशुओं को चारे के रूप मे खिलाते हैं। औद्योगिक दृष्टि से मक्का मे प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट, पेन्ट्स, स्याही, लोशन, स्टार्च और कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने लगा है। बेबीकार्न मक्का से प्राप्त होने वाले बिना परागित भुट्टों को ही कहा जाता है। बेबीकार्न का पौष्टिक मूल्य अन्य सब्जियों से अधिक होता है।

जलवायु एवं भूमिः-

                                        

मक्का उष्ण एवं आर्द्र जलवायु की फसल है। इसके लिए ऐसी भूमि जहां पानी का निकास अच्छा हो उपयुक्त होती है।

खेत की तैयारीः-

खेत की तैयारी के लिए पहली बारिश के बाद जून माह के दौरान खेत में हेरो करने के बाद पाटा चला देना चाहिए। यदि गोबर के खाद का प्रयोग करना हो तो पूर्ण रूप से सड़ी हुई खाद अन्तिम जुताई के समय जमीन मे मिला दें। रबी के मौसम मे कल्टीवेटर से दो बार जुताई करने के उपरांत दो बार हैरो करना चाहिए।

मक्का की बुवाई का समयः-

1. खरीफ - जून से जुलाई तक।

2. रबी - अक्टूबर से नवम्बर तक।

3. जायद - फरवरी से मार्च तक।

मक्का की किस्में:-

क्र.

संकर किस्म

अवधि (दिन मे)

उत्पादन (क्विंटल/हे.)

1.

गंगा-5

100-105

50-80

2.

डेक्कन-101

105-115

60-65

3.

गंगा सफेद-2

105-110

50-55

4.

गंगा-11

100-105

60-70

5.

डेक्कन-103

110-115

60-65

मक्का की कम्पोजिट जातियां:-

  • सामान्य अवधि वाली- चंदन मक्का-1
  • जल्दी पकने वाली- चंदन मक्का-3
  • अत्यंत जल्दी पकने वाली- चंदन सफेद मक्का-2

बीज की मात्राः-

  • संकर जातियां:- 12 से 15 किलो/हे.
  • कम्पोजिट जातियां:- 15 से 20 किलो/हे.
  • हरे चारे के लिएः- 40 से 45 किलो/हे.

(छोटे या बड़े दानो के अनुसार भी बीज की मात्रा कम या अधिक हो सकती है।)

बीजोपचारः-

मक्का के बीज को बोने से पूर्व किसी फंफूदनाशक दवा जैसे थायरम या एग्रोसेन जी.एन. 2.5-3 ग्रा./कि. बीज का दर से उपचारित करके बोना चाहिए। एजोस्पाइरिलम या पी.एस.बी.कल्चर 5-10 ग्राम प्रति किलो बीज का उपचार करें।

मक्का पौध अंतरणः-

1. शीघ्र पकने वालीः- कतार से कतार- 60 से.मी. पौधे से पौधे-20 से.मी. की दूरी उचित मानी जाती है।

2. मध्यम/देरी से पकने वालीः- कतार से कतार-75 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी. की दूरी उचित मानी जाती है।

3. हरे चारे के लिएः- कतार से कतार- 40 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी. की दूरी उचित मानी जाती है।

मक्का बुवाई का तरीकाः-

                                      

वर्षा के प्रारंभ होने पर मक्का की बुवाई करनी चाहिए। सिंचाई का साधन उपलब्ध हो तो 10 से 15 दिन पूर्व बुवाई कर देनी करनी चाहिये इससे पैदावार मे अच्छी वृदि होती है। बीज की बुवाई मेंड़ के किनारे व उपर 3-5 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए।

बुवाई के एक माह पश्चात मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बुवाई किसी भी विधी से की जाय परन्तु खेत मे पौधों की संख्या 55-80 हजार/हेक्टेयर रखना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक की मात्राः-

  • शीघ्र पकने वालीः- 80: 50: 30 (N:P:K)
  • मध्यम पकने वालीः- 120: 60: 40 (N:P:K)
  • देरी से पकने वालीः- 120: 75: 50 (N:P:K)

भूमि की तैयारी करते समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे अच्छी तरह से मिलाना चाहिए तथा भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 कि.ग्रा./हे जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व डालना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक देने की विधिः-

1. नत्रजनः-

  • 1/3 मात्रा बुवाई के समय, (आधार खाद के रूप मे)।
  • 1/3 मात्रा लगभग एक माह बाद, (साइड ड्रेसिंग के रूप में)।
  • 1/3 मात्रा नरपुष्प (मंझरी) आने से पहले।

2. फास्फोरस व पोटाशः-

इनकी पूरी मात्रा बुवाई के समय बीज से 5 से.मी. नीचे डालना चाहिए। क्योंकि मिट्टी मे इनकी गतिशीलता कम होती है, अतः इनका निवेशन ऐसी जगह पर करना आवश्यक होता है जहां पौधो की जड़ें हो।

मक्का में निराई-गुड़ाईः-

बोने के 15-20 दिन बाद डोरा चलाकर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए या रासायनिक निंदानाशक मे एट्राजीन नामक निंदानाशक का प्रयोग करना चाहिए। एट्राजीन का उपयोग हेतु अंकुरण पूर्व 600-800 ग्रा./एकड़ की दर से छिड़काव करें। इसके उपरांत लगभग 25-30 दिन बाद मिट्टी चढाएं।

मक्का की अन्तरवर्ती फसलें:-

मक्का के मुख्य फसल के बीच निम्नानुसार अन्तरवर्ती फसलें लीं जा सकती है:-

मक्का          : उड़द, बरबटी, ग्वार, मूंग (दलहन)।

मक्का          : सोयाबीन, तिल (तिलहन)।

मक्का          : सेम, भिण्डी, हरा धनिया (सब्जी)।

मक्का          : बरबटी, ग्वार (चारा)।

सिंचाईः-

मक्का के फसल को पुरे फसल अवधि मे लगभग 400-600 mm पानी की आवश्यकता होती है तथा इसकी सिंचाई की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पन और दाने भरने का समय है। इसके अलावा खेत मे जल की निकास की उचित व्यवस्था भी अति आवश्यक है।

पौध संरक्षणः-

(क) कीट प्रबन्धन:

1. मक्का का धब्बेदार तनाबेधक कीटः-   

इस कीट की इल्ली पौधे की जड़ को छोड़कर समस्त भागों को प्रभावित करती है। सर्वप्रथम इल्ली तने को छेद करती है तथा प्रभावित पौधे की पत्ती एवं दानों को भी नुकसान करती है। इसके नुकसान से पौधा बौना हो जाता है एवं प्रभावित पौधों में दाने नहीं बनते है। प्रारंभिक अवस्था में डैड हार्ट (सूखा तना) बनता है एवं इसे पौधे के निचले स्थान के दुर्गध से पहचाना जा सकता है।

2. गुलाबी तनाबेधक कीटः-

इस कीट की इल्ली तने के मध्य भाग को नुकसान पहुंचाती है फलस्वरूप मध्य तने से डैड हार्ट का निर्माण होता है जिस पर दाने नहीं आते है।

उक्त कीट प्रबंधन हेतु उपायः-

  • फसल कटाई के समय खेत में गहरी जुताई करनी चाहिये जिससे पौधे के अवशेष व कीट के प्यूपा अवस्था नष्ट हो जाये।
  • मक्का की कीट प्रतिरोधी प्रजाति का उपयोग करना चाहिए।
  • मक्का की बुआई मानसून की पहली बारिश के बाद करना चाहिए।
  • एक ही कीटनाशक का उपयोग बार-बार नहीं करना चाहिए।
  • प्रकाश प्रपंच का उपयोग सायं 6.30 बजे से रात्रि 10.30 बजे तक करना चाहिए।
  • मक्का फसल के बाद ऐसी फसल लगानी चाहिए जिसमें कीट व्याधि मक्का की फसल से भिन्न हो।
  • जिन खेतों पर तना मक्खी, सफेद भृंग, दीमक एवं कटुवा इल्ली का प्रकोप प्रत्येक वर्ष दिखता है, वहाँ दानेदार दवा फोरेट 10 जी. को 10 कि.ग्रा./हे. की दर से बुवाई के समय बीज के नीचे डालें।
  • तनाछेदक के नियंत्रण के लिये अंकुरण के 15 दिनों बाद फसल पर क्विनालफास 25 ई.सी. का 800 मि.ली./हे. अथवा कार्बाेरिल 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. का 1.2 कि.ग्रा./हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके 15 दिनों बाद 8 कि.ग्रा. क्विनालफास 5 जी. अथवा फोरेट 10 जी. को 12 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में पत्तों के गुच्छों में डालें।

(ख) मक्का के प्रमुख रोगः-

1. डाउनी मिल्डयूः-

मक्का बुवाई के 2-3 सप्ताह पश्चात यह रोग लगता है सर्वप्रथम पर्णहरिम का ह्रास होने से पत्तियों पर धारियां पड़ जाती है, प्रभावित हिस्से सफेद रूई जैसे नजर आने लगते है, पौधे की बढ़वार रूक जाती है।

उपचारः- डायथेन एम-45 दवा आवश्यक पानी में घोलकर 3-4 छिड़काव करना चाहिए।

2. पत्तियों का झुलसा रोगः-

पत्तियों पर लम्बे नाव के आकार के भूरे धब्बे बनते हैं। रोग नीचे की पत्तियों से बढ़कर ऊपर की पत्तियों पर फैलता हैं। नीचे की पत्तियां रोग द्वारा पूरी तरह सूख जाती है।

उपचारः- रोग के लक्षण दिखते ही जिनेब का 0.12% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

3. तना सड़नः-

पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण प्रारंभ होता हैं तथा विगलन की स्थिति निर्मित होती हैं एवं पौधे के सड़े भाग से गंध आने लगती है। पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं व पौधे कमजोर होकर गिर जाते है।

उपचारः- 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों पर डालना चाहिये।

मक्का की उपजः-

                                     

1. शीघ्र पकने वालीः- 50-60 क्विंटल/हेक्टेयर।

2. मध्यम पकने वालीः- 60-65 क्विंटल/हेक्टेयर।

3. देरी से पकने वालीः- 65-70 क्विंटल/हेक्टेयर।

फसल की कटाई व गहाईः-

फसल अवधि पूर्ण होने के पश्चात अर्थात् चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद तथा दाने मे लगभग 25 प्रतिशत् तक नमी हाने पर कटाई करनी चाहिए।

कटाई के बाद मक्का फसल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है। इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है। इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। सीधे भुट्टे सुखे होने पर थ्रेशर में डालकर गहाई की जा सकती है, साथ ही दाने का कटाव भी नहीं होता।

भण्डारणः-

कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। यदि दानों का उपयोग बीज के लिये करना हो तो इन्हें इतना सुखा लें कि आर्द्रता करीब 12 प्रतिशत रहे।

खाने के लिये दानों को बॉस से बने बण्डों में या टीन से बने ड्रमों में रखना चाहिए तथा 3 ग्राम वाली एक क्विकफास की गोली प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से ड्रम या बण्डों में रखें। रखते समय क्विकफास की गोली को किसी पतले कपडे में बॉधकर दानों के अन्दर डालें या एक ई.डी.बी. इंजेक्शन प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से डालें।

इंजेक्शन को चिमटी की सहायता से ड्रम में या बण्डों में आधी गहराई तक ले जाकर छोड़ दें और ढक्कन बन्द कर दें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।