बीज अदरक का सफल उत्पादन Publish Date : 07/08/2023
बीज अदरक का सफल उत्पादन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
अदरक, एक महत्त्वपूर्ण मसाले वाली फसल है। संभवतः इसकी उत्पत्ति दक्षिण-पूर्व एशिया में हुई थी तथा यह अपने औषधीय गुणों के कारण प्रसिद्ध है। हमारे देश में इसका उत्पादन 60,000 हैक्टर क्षेत्रफल पर किया जाता है, जिससे 2,00,000 टन अदरक प्राप्त होता है, यानी संसार के कुल उत्पादन का 45 प्रतिशत हिस्सा। हमारे देश में अदरक की खेती मुख्यतः केरल, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तरी-पूर्वी राज्यों में बहुतायत से की जाती है।
हिमाचल प्रदेश में अदरक की खेती का अपना एक अलग ही महत्व है। विशेषकर सिरमौर जिले में गरीब किसान, जिनकी आर्थिक स्थिति इस नगदी फसल पर ही निर्भर करती है, उनके लिये आजीविका अर्जन का स्रोत एकमात्र अदरक है। अदरक कई प्रकार के खाद्य पदार्थों को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने, दवाइयों व मसालों के अतिरिक्त पोषक पदार्थ बनाने में भी उपयोगी है।
अदरक के उच्च कोटि के बीजोत्पादन के लिय गर्म व आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। अदरक की प्रारंभिक अवस्था व वानस्पतिक वृद्धि के समय पर्याप्त वर्षा न होने पर सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए। बीज के लिये कन्द पकते समय तापमान 20-30 डिग्री संेटीग्रेड से अधिक नही होना चाहिए।
क्षेत्र का चुनाव:- बीज अदरक के उत्पादन के लिये ऐसे क्षेत्रों का चयन करना चाहिये, जहां पर कंद सड़न रोग का प्रकोप न हो तथा भूमि में जीवांश पदार्थों की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता हो व जल-निकास की समुचित व्यवस्था हो।
खेत की तैयारी:- खेत की तैयारी करने के लिये पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद दो या तीन जुताईयां देसी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिये। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को भुरभुरा व समतल बना देना चाहिये।
उन्नत किस्में:- स्वस्थ बीजोत्पादन के लिये केवल उन्नत किस्मों का ही चयन करना चाहिये, जिनकी उस क्षेत्र के लिये सिफारिश की गई हो। रोग व कीट प्रतिरोधी उन्नत किस्में, जिसमें रेशे कम तथा सुगंधित तेल की मात्रा अधिक हो, श्रेष्ठ मानी जाती है। अदरक का मूल बीज अच्छे व विश्वसनीय स्रोतों जैसे कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विभाग आदि से ही प्राप्त करना चाहिये।
अच्छे बीजोत्पादन के लिये हिमगिरि (एस.जी.-666), कण्डाघाट सेलेक्शन, हिम सेलेक्शन, एस.जी.-464 आदि स्थानीय किस्मों का चयन उपयुक्त रहता है।
खाद व उर्वरक:- बीज अदरक को अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक खाद की आवश्यकता होती है। केवल खादों एवं उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करें। गोबर की खाद 25-30 टन, नाइट्रोजन 100 किग्रा., फास्फोरस 50 किग्रा., पोटाश 50 किग्रा. प्रति हैक्टर की मात्रा का प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी-पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय खेत में मिलायें।
शेष नाइट्रोजन दो भागों में आधी-आधी खड़ी फसल में बुआई के दो व चार माह उपरांत टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें। खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि नाइट्रोजन पत्तियों व कंदों के सीधे संपर्क में न आये तथा टॉप ड्रेसिंग के उपरांत मिट्टी में मिला दें।
बीज का चुनाव:- कंद मध्य व बड़े आकार, जिनका भार 30-35 ग्राम हो, का चुनाव करें। ध्यान रहे कि प्रत्येक कंद में 2-3 आंखें हों। कंद स्वस्थ, बीमारी व कीट रहित हों। क्षतिग्रस्त कंदों को बीच से अलग कर देना चाहिये। बीज केवल स्वस्थ फसल वाले खेत में ही चयनित करने चाहिये।
बीज की मात्रा का अंतरण:- मध्यम आकार के 15 से 20 क्विंटल कंद प्रति हैक्टर खेत के लिये पर्याप्त होते हैं। कंदों की बुआई के लिये कतार से कतार की दूरी 20 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी. रखनी चाहिये तथा कंदों को कम से कम 3-4 सेमी. की गहराई पर बोयें।
बुआई का समय:- अदरक की बुआई के समय का कंदो के अंकुरण, वृद्धि व उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। बुआई अप्रैल से जून माह तक करनी चाहिये। ऊँचे क्षेत्रों में अप्रैल, मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मई तथा निचले मैदानी क्षेत्रों में जून में बुआई करें। बुआई हमेशा सुबह के समय ही करें, चूंकि सुबह के समय प्रकाश की तीव्रता कम होती है।
बीजोपचार:- अदरक के बीज को भंडारण एवं बुआई से पहले उपचारित करने चाहिये। बीजोपचार के लिये बाविस्टीन 0.05 प्रतिशत (5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में), इंडेथेन एम-45, 0.03 प्रतिशत (3 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में) का घोल बनाकर कंदों को लगभग आधा घंटे तक इसी घोल में डुबोकर रखें, तदोपरांत कंदों को घोल से निकालकर छाया में सुखा लें।
मल्चिंग:- कंदों की बुआई के तुरंत बाद भूमि को सड़े गोबर की खाद की 3-4 सेमी. मोटी परत से ढक दें। मल्चिंग के लिये कंपोस्ट, सूखी पत्तियां, पुआल, भूसा आदि का भी प्रयोग किया जाता है। मल्चिंग करने से भूमि में नमी संचित रहती है तथा आवश्यक पोषक तत्व मल्व में प्रयुक्त पदार्थों के सड़ने-गलने से पौधों को उपलब्ध होते रहते हैं।
सिंचाई आवश्यकतानुसार व हल्की करें ताकि सिंचाई का पानी खेत में ज्यादा समय तक न रूके। सर्दियों में 10-15 दिन व गर्मियों में 7-8 दिन के अन्तर से सिंचाई करना लाभप्रद होता है। खेत में खरपतवारों को समय-समय पर निकालते रहना चाहिये तथा 2-3 उथली गुड़ाई करके प्रत्येक बार मिट्टी चढ़ायें, जिससे कंद मिट्टी से ढके रहें।
अवांछनीय पौधों का उन्मूलन:- पौधों की वानस्पतिक वृद्धि तथा कीट एवं रोग की सहनशीलता के आधार पर ही अच्छे पौधों का चुनाव करें तथा अवांछनीय पौधों को खेत से निकाल दें। चूंकि बीज खेती का आधार होता है, इसलिये बीज उत्पादन प्रमाणित संस्था की देखरेख में ही करना चाहिये। स्वस्थ एवं सामान्य आकार वाले कंदों का ही चयन करें। क्षतिग्रस्त कंदों को बीज उपयोग के लिये नहीं रखना चाहिये।
पौधों का संरक्षण:- कंद सड़न व अदरक पीलिया आदि रोगों की रोकथाम के लिये कंदो को भंडारण व बुआई से पहले ऊपर दी गई विधि से उपचारित करें। खेत में बीमारी के लक्षण प्रकट होते ही ब्लाइटाक्स या फाइटोलान (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में) दवा का छिड़काव करें व 10-15 दिन के अंतर पर पुनः प्रयोग करें।
अदरक की खेती सदैव खेत बदलकर करें। थ्रिप्स एवं तना व कंद छेदक कीटों की रोकथाम के लिये डायजिनान या एण्डोसल्फान (0.03 प्रतिशत) घोल का छिड़काव करें। दीमक आदि के नियंत्रण के लिये खेत की तैयारी के समय 20-25 किग्रा. क्लोरोपाईरीफास 5 प्रतिशत पाउडर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।
कंदों की खुदाई:- अदरक के पत्तों का पीले व सूखकर गिरना इस बात का घोतक है कि फसल खुदाई के लिये तैयार है। ऊँचे क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर व निचले मैदानी क्षेत्रों में दिसम्बर-जनवरी में खुदाई कर लें। कंदों की खुदाई करके सावधानीपूर्वक तथा खुदाई के उपरांत कंदों को छाया में सुखा लें।
कंदों का भंडारण:- एक वर्गमीटर (1×1×1 मीटर) गड्ढ़ा एक क्विंटल बीज अदरक के भंडारण के लिये पर्याप्त होता है। बीज भंडारण कमरों व बरामदों में भी किया जा सकता है। गड़ढ़े का आकार बीज की मात्रा पर निर्भर करता है।
बीज के भंडारण के पूर्व गड्ढ़े को भी उपचारित कर लेना चाहिए। बीज अदरक को भंडारित करने के बाद घास की एक तह रखकर तख्तों से ढककर मिट्टी का लेप कर दें। बीज अदरक को बुआई से 15-20 दिन पहले गड्ढ़े से निकालना अनिवार्य होता है।
उपज:- बीज अदरक की अच्छी एवं समय से देखभाल करने पर 150-200 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त हो जाती है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।