
बहुस्तरीय कृषि पद्धति के वर्तमान लाभ Publish Date : 08/03/2025
बहुस्तरीय कृषि पद्धति के वर्तमान लाभ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
भारत में किसानों के लिए उपलब्ध भूमि की उपयोगिता को बढ़ाने के लिए उसी मृदा पर एक ही मौसम में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ बोया जाना ही बहुस्तरीय कृषि प्रणाली की विशेषता है। इस पद्वति में जमीन पर मचान बनाकर विभिन्न ऊंचाई स्तर वाली फसलों को लगाया जाता है। सीमित कृषि भूमि और संसाधनों की अधिकतम दक्षता द्वारा उत्पादन करने की यह एक उत्तम तकनीक है। इसके प्रचार-प्रसार और प्रशिक्षण से देश के निम्न और मध्यमवर्गीय किसानों को इसका लाभ उपलब्ध करवाया जा सकता है।
बहुस्तरीय कृषि पद्धति आज एक आशाजनक कृषि की तकनीक साबित हो सकती है। यह समान संवर्धन वाली फसलों को एक साथ उगाने का बहुत ही उन्नत तरीका है। इसमें कई प्रकार की फसलों को एक ही जमीन पर उनकी ऊंचाइयों के अनुसार किसी बहुस्तरीय भवन की तरह उगाया जाता है। मुख्यतः इसमें पहले स्तर पर भूमि के अंदर एवं कम ऊंचाई पर उगने वाली फसलें जैसे-अदरक, आलू, टमाटर, प्याज, मिर्ची, बैंगन, लौकी, कुंदरू आदि लगाए जाते हैं। ये भूमि की मृदा को जकड़े हुए रखते हैं। इसके ऊपर की जमीन पर कुछ हरी पत्तीदार फसलें जैसे-पालक, मेथी, धनिया पत्ती आदि 15-20 दिनों में भूमि को पूरी तरह से ढक देते हैं। इससे फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले खरपतवारों में कमी आती है।
जब कटाई का समय पास होता है, तो ऊपर की पत्तियों को न तोड़कर जड़ सहित ही उखाड़ दिया जाता है। इससे मृदा ढीली और भुरभुरी हो जाती है। यह मृदा के स्वास्थ्य को भी उन्नत बनाता है। ऐसा करने से ऑक्सीजन और सूर्य का प्रकाश नियमित रूप से गहराई तक पहुंचता है और नीचे की फसलों की मजबूती और संवर्धन में सहायक होता है। अगर ऊपर की फसलों को नहीं निकाला गया तो वे नीचे की फसलों के विकास में बाधा पहुंचा सकती हैं।
यह खेती खुली जमीन में नहीं हो सकती। इसके लिए शेड या मचान बनाने की जरूरत होती है। यह किसी उपयुक्त लकड़ी और तारों के संयोजन या बांस और घासफूस के साथ बनाया जाता है। यह प्रतिकूल मौसम में फसलों की रक्षा करता है। यह मचान महंगे पॉलीशेड की तरह काम करता है। यह मौसमरोधी और जैवनाशी होता है। प्रकाश और छाया का एक संतुलित वातावरण वाष्पन की क्रिया को भी धीमी कर देता है। इससे भूमि अधिक जल ग्रहण करती है और जल का अनावश्यक क्षय नहीं होता है। मचान अगले स्तर की फसलों के लिए सहारे का काम करती हैं और लताओं वाली हरी सब्जियां भाजी, गलका, लौकी, कुम्हड़ा एवं अन्य सब्जियां उगाने में सहायक होती हैं। चौथे स्तर पर पपीता जैसी फसल की खेती करते हैं। इसे मचान के विभिन्न भागों में एक नियमित दूरी पर लगाया जाता है। पांचवां स्तर मचान के ऊपर मेश या तार पर लगाया जाता है। यह छोटी और हरी पत्तीदार सब्जियों का होता है जैसे- कुंदरू और करेला आदि।
लगने वाली लागत
मचान का तंत्र स्थापित करने में प्रति एकड़ की दर से 50 हजार से एक लाख रुपये तक के खर्च का वहन करना होता है। यह अगले पांच वर्षों के लिए पर्याप्त होता है। अगर आप ग्रामीण इलाके के निवासी हैं, तो ये चीजें आपको स्थानीय तौर पर बहुत ही कम कीमत पर मिल जाएंगी। ये आपकी लागत को और भी कम कर देंगी। इसमें बोई जाने वाली फसलों के बीज स्थानीय होते हैं। ये फसलें मौसम के लचीलेपन और लंबे समय तक फसल देने वाली होती हैं। इतना ही नहीं प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में भी फसल ज्यादा प्रभावित नहीं होती है। इसमें जल की लागत भी 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है, जो इस खेती की विधि को और भी आकर्षक और प्रभावी बना देती है।
फसलें की उत्पादन पद्धति के अनुसार कीट-पतंगों से नुकसान कम होता है। ज्यादा कीटों के होने पर पीले या नील रंग के बोर्ड पर गुड़ या सरसों के तेल से लेप करके फसल के बीचों-बीच लगाया जाता है। इससे कीट उड़कर उसमें चिपक जाते हैं और मर जाते हैं। यह पद्धति एक छोटी सी जगह के प्रभावी उपयोग के लिए प्रसिद्ध है।
बहुस्तरीय कृषि प्रणाली
- मक्का-चना-मूंगफली
- गन्ना-आलू-प्याज
- गन्ना-सरसों
- मूली-धनिया-मिची
- नारियल-केला-अनार
- गाजर-लाल भाजी-टमाटर
- आम-पपीता-अनार
- पालक-मूली-प्याज
- मूंगफली-टमाटर-मिर्च
- नारियल-केला-कॉफी
- नारियल-केला
- आलू् बैंगन-भिंडी-पोइ
भारत में अधिकतर किसान छोटे और सीमांत श्रेणी के हैं और यह मूल रूप से मौसमी फसलों की खेती करते हैं, इसलिए एक निश्चित समय अंतराल के बाद ही उनके पास आमदनी प्राप्त करने की स्थिति होती है। हालांकि, भारी बारिश और तूफान कई बार खेती को बर्बाद कर देते हैं। इस कारण बहुस्तरीय कृषि प्रणाली पूरे वर्ष भर कमाने के लिए एक नया द्वार खोलती है। इसके साथ ही पूरी फसल खराब होने का खतरा कम होता है। इस कृषि प्रणाली की उपयोगिता को देखते हुए, सार्वजनिक और निजी एक्सटेंशन एजेंसियों को देश में इस प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए अपनी गतिविधियों को तेज करना चाहिए। इसके साथ ही सूचना के माध्यम जैसे समाचार पत्रों, टीवी, इंटरनेट, पुस्तक और पत्र-पत्रिकाओं आदि स्रोतों का उपयोग इसके प्रसार के लिए कार्य किया जाना चाहिए।
बहुस्तरीय कृषि प्रणाली के लाभ
- प्रति इकाई क्षेत्र की आय इस प्रणाली के साथ बारी-बारी से बढ़ती है। यह विभिन्न मौसमों में अनेक फसलों की कटाई से पूरे वर्ष में आय और रोजगार के समान वितरण को सुनिश्चित करती है।
- यह प्रणाली फसल की उपज हानि के जोखिम को कम करती है और वर्षभर कृषि उत्पादों की एक स्थिर आपूर्ति को सक्षम बनाती है।
- बहुस्तरीय कृषि प्रणाली रोजगार उत्पन्न करने और बेहतर श्रम उपयोग प्रारूप प्रदान करने में सक्षम बनाती है।
- यह भूमि उपयोग को अधिकतम करने में मदद करती है। समूची भूमि का उपयोग फसल के रूप में एक साथ खड़ी (लंबा, मध्यम और छोटा) क्षैतिज और भूमिगत (गहरे जड़ वाले पौधों और उथले जड़ वाले पौधों) के रूप में किया जाता है।
- यह प्रणाली उच्च तीव्रता की वर्षा, मृदा कटाव और भूस्खलन जैसे खतरों के प्रभाव को कम करती है।
- भूमि की विभिन्न गहराइयों पर मृदा की नमी का प्रभावी ढंग से उपयोग करती है।
- इस प्रणाली में प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाता है। पानी के उपयोग में दक्षता का उपयोग करती है।
- यह प्रभावी खरपतवार नियंत्राण में मदद करती है।
- यह उत्पादों की श्रेणी में कुशल खेती प्रदान करती है। बाजार की वरीयताओं के अनुसार फसल उगाई जा सकती है।
- बहुस्तरीय कृषि प्रणाली पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखती है।
- पेड़ और पौधों की प्रजातियों का मिश्रण इसमें होता है, जो बहुस्तरीय प्रणाली में अच्छी तरह से विकसित हो सकते हैं।
- यह कृषि प्रणाली जैव विविधता और सूक्ष्म जलवायु की स्थिति को बढ़ाती है जिससे फसल को लाभ होता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त बहुस्तरीय खेती प्रणाली के माध्यम से प्राप्त होने वाले लाभों की सूचि काफी लम्बी है। अतः देश के किसानों को खेती की इस प्रणाली के लाभ प्राप्त करने के लिए खेती की इस प्रणाली को अपनाकर लाभ कमाना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।