खुशी प्रदान करने वाली फली      Publish Date : 04/03/2025

                    खुशी प्रदान करने वाली फली

                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

‘‘इजराइल से चलकर भारत को अपना बनाने वाली इस फली की प्रतीक्षा पूरे वर्ष बनी रहती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सर्दियों के मौसम के समापन पर प्रोटीनयुक्त बाकला की फली खाने में तो स्वादिष्ट होती ही है? साथ ही यह पर्यावरण की सेहत के लिए भी उपयुक्त होती है।’’    

                                                   

जब सर्दियों का मौसम विदाई ले रहा होता है तो हमें सब्जी वाों के ठेलों पर एक अलग प्रकार की फलीदार सब्जी दिखाई देने लगती है। सब्जी वाले कुछ दिनों के लिए ही यह बाकला की फली अथवा फाब बींस (विसिआ फांस) लाते हैं। यदि आप उनके नियमित ग्राहक हैं तो निश्चित रूप से वह आपसे इस मौसमी सब्जी को लेने का आग्रह करेंगे और कहेंगे कि यह बाजार में बहुत ही कम आती है।

भले ही बाकला की यह फली बाजार में बहुत कम दिखाई देती है, लेकिन इसके इस्टेनल की पर्रफ्श कारी पुरानी है। यह उन पुरानी फलियों में से एक है, जिसे 100-200 वर्ष पूर्व घरेलू तौर पर यूज किया जाने लगा था। हाल ही में फाब बीन्स के पूर्वजों का पहला और एकमात्र अवशेष इजराइल के माउंट कार्नोल में सात-बाड के पुरातत्व स्थल में पाया गया है। लगभग 14,000 वर्ष पुराने जंगली नमूने भी इनके उत्तरी इजराइल के इलाकों में उपस्थिति का समर्थन करते हैं।

इसका हिन्दी नाम बाकला, है और इसकी पत्तियां भूमध्य सागरीय इलाकों के साथ-साथ भारत, पाकिस्तान और चीन आदि में एक प्रमुख और पारंपरिक भोजन के रूप में उपयोग की जाती है। नाश्ते के लिए भुने और नमकीन बीजों को छोड़कर, उत्तरी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी खपत कम होती है। फाब बीन्स ठंड़ के मौसम में उगने के लिए अनुकूल होती है, यहां तक कि बर्फ की स्थिति में भी जीवित रहने की क्षमता से युक्त होती है। इस प्रकार से यूरोप एवं अमेरिका आदि में इसकी खपत का कम होना एक आश्चर्य है। सोयाबीन के विकल्प के रूप में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।

गुणों से भरपूर है बाकला

                                            

प्रोटीन से भरपूर होने के साथ ही बाकला की फलियों का एक अन्य उपयोग दवाई के रूप में भी किया जाता है, क्योंकि यह अमीनो एसिड और एल-डोपा का एक अच्छा स्रोत है, जिससे हैप्पी हॉर्मोन डोपामाइन का निर्माण होता है। यह हॉर्मोन हमें खुश रखने के साथ ही हमारे सोचने-समझने और योजना बनाने की क्षमता में वृद्वि करने में विशेा भूमिका भी निभाता है। 100 ग्राम ताजा बाकला फली में 50 से 100 मिलीग्राम एल-डोपा पाया जा सकता है। एल-डोपा की उर्पिस्थति के चलते यह फली पार्किन्सन नामक रोग में भी अति लाभकारी होती है।

सावधानी भी जरूरी

इस फली के इतने लाभों के उपरांत भी इन फलियों का सेवन हमें सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि इसकी कच्ची फलियों में पाषण-विरोधी कारक विसिन और कौनविसिन मौजूद होते हैं और यह ऐसे लोगों में फेविसम पैदा कर सकते हैं, जिन लोगों में ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोनेज नामक एंजाइम नही होता है। विसिन और कौनविसिन हमारे शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर हेमोलिटिक ण्नीमिया का कारण बन सकते हैं, जिसके कारण पीलिया और मूत्र का रंग काला पड़ने के जैसी बीमारियां हो सकती है।

                                                          

ज्ञात हो कि विश्व की लगभग चार से पांच प्रतिशत जनसंख्या फेविसम के प्रति संवेदनशील होती है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने अब इसकी ऐसी किस्में विकसित कर ली है, जिनमें यह तत्व नही पाए जाते हैं। इन फलियों का सेवन करने से पूर्व इन्हें धोना, पानी में भिगोना और उबालने से भी इसके अन्दर मौजूद हानिकारक तत्व काफी हद तक कमक हो जाते हैं। बाकला की फलियों को स्थानीय व्यंजनों में रूाामिल करने के लिए दुनिया भर में इन तकनीकों का उपयोग किया जाता है। फाबा फली के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंजन- मेदासिम (उबली हुई बीन्स), फलाफल (सब्जियों और मसालों के साथ अच्छी तरह से तला हुआ बीज का पेस्ट), बिसारा (बीज का पेस्ट) और नवेट सूप (उबली हुई अंकुरित फलियां) आदि। भारत में इसके भुने हुए बीजों को मूँगफली की तरह से भी खाया जाता है, तो उत्तर प्रदेश में इसकी फलियों को आलू के साथ पकाया जाता है।

प्रत्येक स्थन पर एक अलग अंदाज

उत्तराखंड में इसकी फलियों के कड़े हिस्से को हटाकर इन्हे उबालकर सब्जी बनाई जाती है।

बिहार में परिपक्व फली के बीजों को पहले उबाला जाता है, फिर प्याज, टमाटर के साथ भूनकर चियड़े में मिलाकर सेवन किया जाता है। हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर भी बाकला की फली को मांस और दूध के शाकाहारी विकल्प के तौर पर अपनाया जा रहा है।        

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।