मूँग एवं उड़द की बुआई करने का उचित समय और उन्नत किस्में      Publish Date : 04/03/2025

मूँग एवं उड़द की बुआई करने का उचित समय और उन्नत किस्में

                                                                                                     प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

गेहूँ और सरसों आदि रबी की फसलों की कटाई के बाद किसान भाई अपनी अगली फसल के बुआई की तैयारी में लग जाते हैं। यह समय किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि सही फैसलें लेने से अगली फसल की उपज एवं उसकी गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस अवधि में किसान भाई मूँग, उड़द, अरहर, बाजरा, सोयाबीन, मक्का और ज्वार के जैसी खरीफ की फसलें अथवा पशुओं के लिए चारे वाली फसलें जैसे ज्वार, चरी एवं बरसाम आदि की फसलों को उगा सकते हैं।

                                       

गर्मी के मौसम में मूँग और उड़द की पारंपरिक खरीफ और रबी फसलों के अतिरिक्त एक तीसरी फसल के रूप में किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। इससे किसानों को एक ओर तो आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्राप्त हो रहा है तो दूसरी ओर भूमि की उत्पादकता भी बढ़ रही है।

रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद मूँग और उड़द की बुआई प्रारम्भ कर दी जाती है, जिसे खेत खाली नहीं रहता है और मृदा की उर्वरता भ बनी रहती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, मूँग और उड़द की उन्नत किस्में 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इनकी बुआई करने के लिए 10 मार्च से 10 अप्रैल तक का समय सबसे उचित माना जाता है।

खेत की तैयारी और मिट्टी का चयन

मूँग और उड़द की खेती करने के लिए खेत की उपयुक्त तैयारी करना अत्यंत आवश्यक होता है। मूँग और उड़द की अच्छी पैदावार को प्राप्त करने के लिए उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। उत्तर भारत में बलुई दोमट मिट्टी और मध्य भारत की लाल एवं काली मिट्टी में भी मूँग और उड़द की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

बुआई करने से पूर्व खेत में नमी को बनाए रखना आवश्यक होता है। खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए खेत की जुताई दो से तीन बार करने और हर जुताई के बाद पाटा लगान जरूरी होता है जिससे कि खेत की नती सुरक्षित रहे। भूमि की जलधारण क्षमता में वृद्वि के लिए अंतिम जुताई से पूर्व पयाप्त मात्रा में जैविक खाद मिलाना अच्छा रहता है।

मूँग और उड़द की बुआई करने का उचित समय और उन्नत किस्में

मूँग की बुआई करने का उचित समय 10 मार्च से 10 अप्रैल और उड़द की बुआई करने का उचित समय 15 फरवरी से 15 मार्च के बीज का होता है। बुआई में देरी होने की स्थिति में 60 से 65 दिनों में पकने वाली किस्मों की बुआई 15 अप्रैल के बाद तक की जा सकती है।

मूँग की उन्नत किस्मों में पूसा-1431, पूसा-रतना, पूसा-672, पूसा विशाल, वसुधा, सूया्र, विराट, सम्राट और आर.एम.जी.-62 आदि प्रमुख किस्में हैं। इसी प्रकार से उड़द की उन्नत किस्में पीडीयू-1, के.यू.जी.-479, कोटा उड़द-4, इंदिरा उड़द प्रथम, हरियाणा उड़द-1, उत्तरा, पंत उड़द-31, माश और सुजाता आदि किस्में शामिल हैं।

ग्रीष्मकालीन मूँग और उड़द की खेती के लिए 20 से 25 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना उचित रहता है। बुआई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी. तथा बीज को 4 से 5 से.मी. की गहराई पर बोना उचित रहता है। सीड ड्रिल की सहायता से पंक्तियों में बुआई करने से फसल का विकास बेहतर होता है।

उर्वरक एवं पोषक तत्वों का प्रबन्धन

मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करने से न केवल फसलों की उपज में वृद्वि होती है, बल्कि इससे भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है इसके साथ अनावश्यक लागत से भी बचाव होता है।

मूँग की फसल के लिए उर्वरक प्रबन्धन

                                            

मूँग की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 50 कि.ग्रा. पोटाश और 20-25 कि.ग्रा. सल्फर के प्रयोग करने की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन फसल की प्रारम्भिक वृद्वि में सहायक होता है तो फॉस्फोरस जड़ के विकास और फूल बनने की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करता है।

पोटाश पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्वि करता है है तो सल्फर प्रोटीन के संशलेषण सहायक होता होता है। यदि मृदा में जिंक की कमी हो तो 20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना उचित रहता है।

उड़द की फसल के लिए उर्वरकों का प्रबन्धन

                                                      

उड़द की फसल में पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा की आपूर्ति करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 45 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा. सल्फर का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करना उचित रहता है। नाइट्रोजन का प्रयोग करने से पौधों की पत्तियों और तनों की उचित वृद्वि होती है, जबकि फॉस्फोरस की सहायता से जड़ों का उचित विकास होता है और इसके साथ ही फली बनने की प्रक्रिया भी तेज हो जाती है। फसल की गुणवत्ता को बेहर बनाने और प्रोटीन के निर्माण के लिए सल्फर का प्रयोग किया जाता है।

मूँग और उड़द में खरपतवार नियंत्रण और रोग प्रबन्धन

फसल की प्रारम्भिक वृद्वि के 4 से 5 सप्ताह के दौरान खेत में खरपतवार अधिक समस्या उत्पन्न करते हैं, क्योंकि यह मुख्य फसल के साथ पोषक तत्वों, नमी और प्रकाश आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। अतः खरपतवारों का उचित प्रबन्धन समय पर नहीं करने से फसल की सकल वृद्वि पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इसके चलते फसल के उत्पादन में भारी कमी आ सकती है। खरपतवारों का नियंत्रण करने के लिए यांत्रिक एवं रासायनिक दोनों ही प्रकार के तरीको को अपनाया जा सकता है।

पहली सिंचाई के बाद खेत में निराई और गुड़ाई करना बहुत जरूरी होता है। ऐसा करने से न केवल खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण होता है, बल्कि मृदा में वायु संचार भी बेहतर तरीके से होता है, जिससे पौधों की जड़ों का विकास बेहतर होता है। खरपतवार के रासायनिक नियंत्रण के लिए 2.5-3.0 मिलीलीटर खरपतवारनाशी का प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार अधिक हैं तो एलाक्लोर (Alachlor) या फ्लूक्लोरालिन (Flucloralin) के जैसे प्रभावी रसायनों का प्रयोग भी किया जा सकता है। फसल में इन रसायनों का छिड़काव खरपतवारों के अंकुरित होने से पहले ही किया जाना उचित रहता है जिससे कि खरपतवार अंकुरित होने से पहले ही समाप्त हो जाएं और फसल का अच्छा विकास हो सके।  

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।