चने की फसल का रोगों से बचाव      Publish Date : 02/03/2025

                चने की फसल का रोगों से बचाव

                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

चने की फसल को रोगों से बचाने के लिए हमारे कृषि विशेषज्ञ के द्वारा दिए गए कुछ सुझाव जिनको अपनाने से किसानों को होगा लाभ-

                                           

चने की फसल की खेती करने वाले किसानों की कमी हमारे देश में नहीं है, लेकिन इस फसल पर रोग लगने की संभावना अधिक होती है। इस फसल को रोगों से बचाने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने किसानों को कई सुझाव दिए है। इन उपायों को अपनाकर चना की खेती संबंधित किसान अपनी चने की फसल को उसमें लगने वाले रोगों से बचाका चने का अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है।

कृषि विशेषज्ञ प्रोफेसर सेंगर ने बताया कि चने की फसल में मिट्टी जनित रोगों के संक्रमण का प्राथमिक कारण बनता है फसल चक्र की अनदेखी करना। कई बार किसान एक खेत में लगातार एक फसल की खेती करते हैं। इस तरह से खेती करने से फसल में रोगों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

                                           

चने की फसल में आमतौर पर उकठा रोग का संक्रमण देखा जाता है। ऐसे में किसान गर्मियों के दौरान गहरी जुताई कर उकठा के खतरे को कम सकते हैं। इस तरह पुरानी फसल के अवशेषों में मौजूद कीट और फफूंद बीजाणु सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आ जाते हैं, जिससे वे मर जाते हैं। किसान सिंचाई से पहले ट्राइकोडर्मा के साथ सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग भी कर सकते हैं। सबसे पहले किसानों को 100 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद में 10 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाना चाहिए और सिंचाई से पहले इसे एक हेक्टेयर खेत में समान रूप से फैला देना चाहिए। इसके बाद सिंचाई के माध्यम से खेत में इस मिश्रण को फैला देना चाहिए।

उकठा रोग की रोकथाम के लिए किसान बीज उपचार का सहारा ले सकते है। बीजों को जैविक कीटनाशक और रासायनिक कीटनाशकों से उपचारित करने से कई तरह के मिट्टी जनित रोगों से बचा जा सकता है। किसान बीजों को कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर सकते हैं। पूसा चना मानव जैसी रोग प्रतिरोधी किस्में अपनाने से भी रोग से बचाव होता है। इसकी औसत उपज 2.5 टन प्रति हेक्टेयर है। इस रोग से संक्रमित पौधों को निकालकर नष्ट करें। कारबेंडाजिम का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर जड़ों के पास छिड़काव करें।

                                         

शुष्क जड़ सड़न और जड़ सड़न का प्रभाव भी चने की फसल में देखा जा सकता है। इन रोगों का संक्रमण होने पर पौधों की जड़ों में गलन पैदा होती हैं, जिससे पौधे सूखने लगते हैं। खेत में फसल अवशेष न छोड़ें, क्योंकि यह रोगजनकों को बढ़ावा देता है।

संक्रमित पौधों को हटानाः रोगग्रस्त पौधों को जड़ से उखाड़कर खेत से बाहर जलाएं। कार्बेंडाजिम का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें।

चने की फसल को फली भेदक कीट से ऐसे बचाएं

                                        

प्रदेश में अधिकांश किसानों द्वारा चने की खेती की जाती है, लेकिन चने की फसल में कीट भी लग जाते है और इस कारण किसानों को नुकसान होता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फली भेदक कीट चने की फसल को अधिक नुकसान पहुंचाता है और इस कीट से फसल को बचाने के उपाय-.

यह कीट नवंबर से मार्च तक चने की फसल में सूंडी रूप में सक्रिय रहता है। शुरुआत में यह कीट पौधों की कोमल पत्तियों और टहनियों को खाता है, और जैसे-जैसे फली आती है, यह उसके अंदर प्रवेश कर बीजों को खा जाता है। इस कीट के कारण चने की पैदावार में भारी गिरावट हो सकती है, जिससे किसानों को बड़ा नुकसान होता है।

फेरोमोन ट्रैप

                                                         

फेरोमोन ट्रैप चने के फल छेदक कीट की संख्या की निगरानी करने का एक प्रभावी उपाय होता है। इसके जाल में मादा फली भेदक द्वारा छोड़े गए यौन स्राव रसायन का उपयोग किया जाता है, जो नर पतंगों को आकर्षित करता है। इस विधि से हम कीटों के प्रकोप का पूर्वानुमान कर सकते हैं और समय रहते फसल सुरक्षा उपायों को अपनाकर अपनी फसल को इसके प्रकोप से बचा सकते हैं।

फेरोमोन ट्रैप टीन या प्लास्टिक का बना होता है, जिसमें मोम की एक थैली लगी रहती है। इसे खेत में फसल से 2 फीट की ऊंचाई पर लगाया जाता है। जाल के अंदर मादा पतंगे से निकलने वाले रसायन से नर पतंगे आकर्षित होकर जाल में फंस जाते है।. प्रति हेक्टेयर 4-5 जाल लगाए जाने चाहिए और जाल में फंसे नर पतंगों की नियमित निगरानी करनी चाहिए। जब लगातार 4-5 रातों तक 4-5 नर पतंग जाल में दिखाई दें, तो तुरंत फसल सुरक्षा उपायों को अपनाना चाहिए।.

कीट की रोकथाम

चने के खेतों में 30-40 अड्डे प्रति हेक्टेयर की दर से लगाकर कीटभक्षी पक्षियों को आकर्षित किया जा सकता है। ये पक्षी फली भेदक की सूंडी का शिकार करते है। खेत के चारों ओर धनिया जैसी पराग वाली फसल लगाकर परजीवी कीड़ों को बढ़ावा दिया जा सकता है, जो फलीभेदक कीटों के प्राकृतिक शिकारी होते है। नीम की निबौली एक प्रभावी जैविक उपाय है। 15 किलो निबौली को कूट कर 85 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से लाभ होता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।