ग्रीष्मकालीन मूंग की सस्य क्रियाएं      Publish Date : 22/02/2025

                            ग्रीष्मकालीन मूंग की सस्य क्रियाएं

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

भारत में मूंग की फसल की खेती मुख्य रूप से एकल या खरीफ में अंतः अथवा मिश्रित फसल के रूप में की जाती है। पिछले दो दशकों में नई सिंचाई परियोजनाओं से सिंचित क्षेत्र में वृद्वि हुई है। इसके साथ-साथ, बेहतर कीमतें, कम समयावधि वाली किस्में (60-65 दिन), अधिक उपज (10-15 क्विंटल/हैक्टर), फोटो थर्मो असंवेदनशील एवं पीलिया रोग प्रतिरोधी प्रजातियों की उपलब्धता के कारण इसका क्षेत्रफल ग्रीष्मकालीन मौसम में भी बढ़ा है। ग्रीष्मकालीन मूँग की सफल खेती न केवल राष्ट्रीय पैदावार में वृद्वि करती है, साथ ही यह कुपोषण की समस्या को भी कम करती है। इसके अतिरिक्त यह फसल विविधीकरण, टिकाऊ उत्पादन, मृदा स्वास्थ्य और किसानों को अतिरिक्त आय भी प्रदान करती है।

                                                                    

सामान्यतः मूंग, खरीफ मौसम की फसल है। इसके लिए इष्टतम तापमान 27-35 डिग्री सेल्सियस है। हालांकि यह फसल इससे भी अधिक तापमान सहन कर सकती है इसीलिए इसकी खेती गर्मी के मौसम में भी आसानी से की जा सकती है। सूखा, अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता व कम अवधि (60-65 दिन) की फसल होने के कारण मूंग सिंचित क्षेत्रों में ग्रीष्मकाल में खेती करने के लिए एक अच्छा विकल्प है।

भूमिः मूंग के लिए उचित जल निकास वाली बलुई-दोमट मृदा को सर्वोत्तम माना जाता है। मृदा का पी-एच मान 6.5-7 के मध्य होना चाहिए, क्योंकि यह फसल अधिक लवणीयता सहन नहीं कर पाती है। लवणीयता से पौधों की जड़ों की गांठों में उपस्थित राइजोबियम बैक्टीरिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे गांठों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया बाधित हो जाती है।

मूंग की किस्मेंः मूंग की प्रजाति का चुनाव करना, फसल प्रणाली, बुआई के समय, सिंचाई के स्रोत एवं जलवायु जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई के लिए 60-65 दिनो में पककर तैयार होने वाली किस्मों के चुनाव करने को उपयुक्त माना जाता है। लघु अवधि की प्रजातियां यह सुनिश्चित करती हैं कि अगली फसल की समय पर बुआई तथा मानसून की शुरूआती वर्षा होने से पूर्व फसल की कटाई हो सके।

                                                            

बुआईः जायद मूंग की बुआई मध्य फरवरी से मार्च के अन्तिम सप्ताह तक कर सकते हैं। बुआई के लिए 15-20 कि.ग्रा./हैक्टर बीज की आवश्यकता होती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए। बुआई से पूर्व प्रति कि.ग्रा. बीजों को 3 ग्राम थीरम या आधा ग्राम कार्बेण्डाजिम से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर छाया में सुखाकर ही बीज की बुआई करनी चाहिए। राइजोबियम से बीज उपचार करने के लिए एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ को घोलकर गरम करें। ठंडा होने पर 200 ग्राम के तीन पैकेट राइजोबियम कल्चर के इसमें मिला दें। इस मिश्रण को एक हैक्टर की बुआई में प्रयोग होने वाले बीजों पर परत के रूप चढ़ाकर और छाया में सुखाने के बाद ही बुआई करनी चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।