मार्च के मुख्य कृषि कार्य      Publish Date : 21/02/2025

                             मार्च के मुख्य कृषि कार्य

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

मूंगफली

                                                                    

  • तिलहन फसलों में मूंगफली का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मूंगफली के दाने और तेल दोनों की ही बाजार में अच्छी मांग रहती है। मूंगफली वानस्पतिक प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत हैं। इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में 1.3 गुना, अंडों से 2.5 गुना एवं फलों से 8 गुना अधिक होती है। इस के बीज में 45-50 प्रतिशत तेल तथा 26-30 प्रतिशत प्रोटीन एवं 21-25 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पायी जाती है। इसके साथ ही इसमें विटामिन 'बी', विटामिन 'सी', कैल्शियम, जिंक, फॉस्फोरस और मैग्नीशियम आदि पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। शरीर के लिए काफी लाभदायी होते हैं। मूंगफली को भारतीय काजू भी कहा जाता है।
  • उष्ण कटिबंधीय पौधा होने के कारण इसे लम्बे समय तथा गर्म मौसम की आवश्यकता पड़ती है। अंकुरण और प्रारंभिक वृद्धि के लिए 14-15 डिग्री सेल्सियस तापमान का होना आवश्यक है। फसल के जीवन काल में पर्याप्त सूर्य के प्रकाश का उच्च तापमान तथा सामान्य वर्षा का होना अति उत्तम रहता है। फसल की वृद्धि के लिए सर्वोत्तम तापमान 70-80 डिग्री फॉरेनहाइट होता है। इसकी खेती उन सभी स्थानों पर में को जाती है। जहां 60-130 मि.मी वार्षिक वर्षा होती है। बहुत अधिक वर्षा भी मूंगफली की खेती के लिए हानिकारक होती है। फसल कटाई के समय स्वच्छ और तेज धूप होना अति लाभदायक होता है। इस अवस्था में उत्पाद भली-भांति सूख जाता है तथा उत्पाद के गुण भी अच्छे होते हैं।
  • मूंगफली की खेती के लिए अच्छी जलधार कक्ष मतावाली बलुई. बलुई दोमट, दोमट और काली मृदा अधिक उपयुक्त रहती है। बलुई दोमट गृदा, जिसका पीएच मान 5.5 7.0 के मध्य हो उपज के लिए सबसे उत्तम होती है। इसकी अच्छी उपज के लिए मृदा हल्की होनी चाहिए और जीवांश पदार्थ पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। भारी मृदा की अपेक्षा हल्की मृदा की मूंगफली का रंग अच्छा होता है छिलका पतला होता है और अधिक उपज होती है। जायद में बुआई मार्च से अप्रैल तक की जा सकती है, जिससे फसल अच्छी पैदावार ली जा सके। बुआई पक्तियों में करनी चाहिए, पक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 25-30×8-10 से.मी. रखनी चाहिए। जायद की फसल में 95-100 कि.ग्रा./हैक्टर बीज बुआई में लगता है। बोने से पहले बीज को 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम 50 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के मिश्रण को 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करना चाहिए। इस शोधन के 5-6 घण्टे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए।
  • उन्नत प्रजातियां जैसे- टी.जी. 37-ए, आर-8808, एस.बी 11. आई.सी.जी. एस.-1. आई.सी.जी.एस.-44, प्रताप राज मूंगफली, आई.सी.जी.एस.-11. आई.सी.जी.एस.-37 आदि प्रमुख हैं। ये आलू, सब्जी मटर एवं राई की कटाई के बाद खाली मृदा में उगाई जा सकती है।

                                                          

निराई गुड़ाई की मूंगफली की खेती में 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 गुड़ाई निराई करना लाभदायक होता है। गुच्छेदार प्रजातियों में मिट्टी चढ़ाना लाभदायक पाया गया है, जब पौधों में फलियों के बनने की क्रिया प्रारंभ हो जाये, तो कभी भी निराई गुड़ाई या मिट्टी चढ़ाने की क्रिया नहीं करनी चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।