मार्च के मुख्य कृषि कार्य      Publish Date : 18/02/2025

                          ग्रीष्मकालीन मक्का की खेती

                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

                                                          

  • मक्का एक ग्रीष्म कालीन फसल है। सभी अवस्थाओं में तापमान लगभग 18-30 डिग्री सेल्सियस के आसपास होना चाहिए। पकते समय गर्म तथा शुष्क वातावरण उपयुक्त होता है। पाला फसल की किसी भी अवस्था के लिये हानिकारक हो सकता है। असिंचित मक्का की खेती के लिए वार्षिक वर्षा 25 सें.मी. से लेकर 500 सें.मी. तक पर्याप्त होती है।
  • मृदा का चयनः अधिकतम बढ़वार और पैदावार के लिए अधिक उपजाऊ दोमट मृदा जिसमें वायु संचार अधिक हो, पानी का निकास उत्तम हो तथा जीवांश पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पाया जाता हो, उत्तम होती है। मक्का की खेती ऐसी मृदा में की जानी चाहिए, जिसका पी-एच मान 6.0-7.0 तक हो। जल भराव मक्का की फसल के लिये हानिकारक होता है। सामान्यतः मक्का की खेती सभी प्रकार की मृदा, बलुई मृदा से भारी चिकनी मृदा तक में सफलता पूर्वक की जा सकती है।
  • जायद में फरवरी के अन्त से लेकर मध्य मार्च तक बुआई कर लेनी चाहिए। मक्का के बीज को बुआई से पूर्व 1 कि.ग्रा. बीज को 2.5 ग्राम थीरम या कार्बेन्डाजिम से शोधित करना अति आवश्यक होता है। सामान्य मक्का के लिए 18-20 कि.ग्रा./हैक्टर तथा संकर मक्का की बीज दर 12-15 कि.ग्रा./हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। इसकी बुआई हल के पीछे 3 से 4 सें.मी. तक की गहराई पर करें तथा पक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखनी चाहिए।
  • मक्का की जायद ऋतु में उन प्रजातियों को लगाते हैं, जो शीघ्र पकने वाली होती हैं जैसे- पी.एम.एच.-7. पी.एम.एच.-8, पी.एम.एच. -10. कंचन, गौरव, सूर्या, तरुण, नवीन, अमर, आजाद, उत्तम, किसान, विजय व श्वेता और हरे भु‌ट्टे लेने के लिए पी.ई.एम.एच.-2. पी.ई.एम.एच.-3 तथा बेबीकॉर्न के लिए संस्तुत प्रजातियां पूसा संकर-1, पूसा संकर-2, पूसा संकर-3, एच.एम-4, बी.एल.-42, वी.एल.-78 व प्रकाश आदि प्रमुख है।
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  • उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। मक्का फसल के लिए खाद का प्रयोग खेत की तैयारी के समय किया जाता है। उर्वरक में 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 60 कि.ग्रा. पोटाश/हैक्टर तत्व के रूप में प्रयोग करते है, नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय प्रयोग करनी चाहिए। शेष नाइट्रोजन की आधी मात्रा को दो बार में पहले खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग के रूप में और दूसरा बुआई के 25-30 दिनों के बाद फूल आने के समय प्रयोग करनी चाहिए।
  • मक्का की फसल में कम से कम दो निराई-गुड़ाई आवश्यक है। पहली बुआई के 15-20 दिनों के बाद तथा दूसरी बुआई के 30-35 दिनों के बाद। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 2-3 दिनों के अन्दर एट्राजीन 2.5 कि.ग्रा. या पेन्डीमिथालिन 3.33 लीटर में से किसी एक खरपतवारनाशी का प्रयोग 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।