सरसों के रोग मुक्त एवं अच्छे उत्पादन के उपाय      Publish Date : 11/02/2025

               सरसों के रोग मुक्त एवं अच्छे उत्पादन के उपाय

                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

सरसों की फसल, भारतीय कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तिलहनी फसल के रूप में जानी जाती है, विशेष रूप से किसानों के लिए एह एक नकदी फसल होती है। सरसों का तेल, मसाले और पशओं के लिए एक महत्वपूर्ण खाद्य उत्पाद (खली) माना जाता है। सरसों की खेती करने के दौरान इसकी फसल में विभिन्न प्रकार की समस्याएं आती हैं, जिनमें सफेद रतुआ (White Rust Diseas) रोग, सरसों की फसल के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। यह रोग सरसों की फसल में एक फफूंद (Fungus) के द्वारा होता है, जिसको Albugo candida के नाम से जाना जाता है।

                                                              

इस रोग के कारण किसानों को सरसों की फसल से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि यह रोग सीधेतौर पर सरसों की उपज को प्रभावित करता है। सफेद रतुआ का प्रकोप सरसों की फसल के लिए एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर सकता है, परन्तु यदि किसान सही समय पर सही सावधानियां बरते और कुछ उपायों का अनुपालन करें तो सरसों की फसल का इस रोग से बचाव कर पाना सम्भव हो सकता है।

इसके लिए सरसों की समय पर बुआई, बीज का उपचार, संतुलित खाद का उपयोग, जल भराव की समस्या का समाधान और अंतरवर्ती फसल चक्र के जैसे विभिन्न उपाय कर किसान अपनी फसल का इस रोग से बचाव कर सकते हैं। इसके साथ ही, कृषि वैज्ञानिकों की सलाह का अनुपालन करना भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है।

किसानों को इस रोग के सम्बन्ध में पूरी जानकारी और समझ रखना की आवश्यकता है जिससे कि वह सरसों की फसल को नुकसान से बचा सके और इसकी बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

आज की हमारी इस पोस्ट में हमारे कृषि विशेषज्ञ प्रोफेसर आर. एस. सेंगर सफेद रतुआ रोग के प्रमुख लक्षण, कारण और इस रोग से सरसों की फसल को बचाने के लिए उचित उपाय आदि के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी प्रदान करने जा रहें हैं। अतः सरसों की फसल से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए आपसे अपील है कि हमारी इस पोस्ट को ध्यान पूर्वक अंत तक पढ़ें और इसका पूरा लाभ प्राप्त करे।

सफेद रतुआ रोग के प्रमुख लक्षण

                                                       

किसान भाईयों जब सफेद रतुआ नामक इस रोग का प्रकोप सरसों की फसल पर होता है, तो सबसे पहले इसके पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर हल्के सफेद या पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। समय के साथ ही यह धब्बे सफेद फफूंद के रूप में उभरने लगते हैं और इसके प्रकोप से फसल की वद्वि प्रभावित होने लगती है। पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं और उनमें झुर्रियां पड़ने लगती है और इसस पौधों की प्रकाश संश्लेशण क्रिया (Photosynthesis), उनकी भोजन निर्मित करने क्षमता काफी कम हो जाती है और इससे पूरी फसल की सेहत पर कुप्रभाव पड़ता है।

रोग का अधिक प्रकोप होने पर सरसों के पौधों की केवल पत्तियां ही नही, बल्कि सरसों के डंठल और कलियों के ऊपर भी सफेद रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं।

सफेद रतुआ रोग के चलते सरसों के फूल और कलियां भी सही तरीके से विकसित नही हो पाती हैं और फलियों की ग्रोथ भी उचित तरीके से नही हो पाती है जिसके परिणामस्वरूप सरसों के दाने छोटे और अपेक्षाकृत कमजोर रह जाते है। रोग वृद्वि होने पर जब यह समस्या अधिक बढ़ जाती है, तो पूरी फसल की वृद्वि पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है और इसके कारण किसानों को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।

रोग से बचाव के प्रभावी उपाय

यदि किसान भाई, सरसों की बुवाई करने से पहले और बुआई करते समय कुछ महत्वपूर्ण उपाय अपनाते हैं तो वह सफेद रतुआ के प्रकोप से अपनी फसल को बचाकर इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इस रोग से फसल को बचाने के लिए सबसे पहला काम किसानों को समय से सरासों की फसल की बुआई करके करना चाहिए। क्योंकि समय से बुआई करने पर सफेद रतुआ रोग का नियंत्रण प्रभावी ढंग से किय जा सकता है। समय से फसल की बुआई करने से इस रोग का प्रसार कम होता है और इस समय वातावरण में ठंड़ और नमी का प्रभाव कम होता है।  

सरसों की उचित समय पर बुआई करने के साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीज की बुआई करने से पूर्व किसी अच्छे फफंूदनाशक से बीज का उपचार अवश्य ही करना चाहिए, ऐसा करने से बीज के अंदर छिपे फफूंद के बीजाणु मर जाते हैं और रोग का प्रसार भी नही होता है। इसके अतिरिक्त, बीज का जैविक उपचार करना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। फसल में सही और संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करके भी इस रोग को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। सही समय और सही मात्रा में करने से पौधों की सेहत बेहतर और रोग का प्रकोप भी कम होता है।

इसके साथ ही खेत में जल भराव की समस्या के समाधान के लिए खेत में उचित जल निकासी का प्रबन्ध होना भी आवश्यक होता है। क्योंकि खेत में जल भरव होने से इस रोग के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है। इस रोग से बचाव करने का एक प्रभावी उपाय यह है कि एक खेत से प्रतिवर्ष एक ही फसल लेने से भी इस रोग का खतरा बढ़ता है। अतः इस समस्या के समाधान के लिए किसान भाईयों को अंतरवर्ती फसल चक्र का पालन करना चाहिए, कहने का अर्थ है कि यदि किसी खेत में इस वर्ष सरसों की फसल उगाई गई है तो अगले वर्ष उस खेत में कोई दूसरी फसल उगायी जानी चाहिए। ऐसा करने से मृदा में मौजूद रोगकारक जीवों की संख्या प्रभावी रूप से कम हो जाती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।