पछेती गेहूँ में ध्यान देने योग्य कुछ आवश्यक तथ्य      Publish Date : 08/02/2025

             पछेती गेहूँ में ध्यान देने योग्य कुछ आवश्यक तथ्य

                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

  • देरी से बुवाई की जाने गेहूँ की बुवाई में नाट्रोजन की आणी मात्रा और पोटाश एवं स्फुर की अधी मात्रा को बुवाई करने से पहले मिट्ठी में मिला देना चाहिए और नाईट्रोजन की शेष मात्रा को पहली सिंचाई के समय देना उचित रहता है।
  • गेहूँ में सिंचाई 20-22 दिन के अंतराल पर ही करना सही रहता है, हालांकि, यदि खेत की मिट्ठी बलुई है तो ऐसे में कम गहरी एवं जल्दी-जल्दी सिंचाई करनी चाहिए।
  • गेहूँ में बालियों के निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई नही करनी चाहिए, ऐसा करने से गेहूँ के फूल खिर जाते हैं जिससे फसल में झुलसा रोग का प्रकोप हो सकता है। दानों का मुँह काला पड़ जाता है और करनाल बंठट एवं कंडुवा रोग का प्रकोप होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं।
  • जब गेहूँ की फसल का रंग सुनहरा हो जा और दाने भर जाएं तो गेहूँ की सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। फसल की इस स्थिति के बाद सिंचाई करने से फसल के दाने की चमक एवं उसकी गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और पोटियां आने की सम्भावनाएं भी बढ़ जाती हैं।
  • यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार कम संख्या में उगें हैं तो इससे गेहूँ की उपज पर कोई नकारात्मक प्रभाव नही पड़ता है, परन्तु यदि जंगली जई और गल्ली-डंड़ा आदि खरपतवार खेत में उगे हैं तो इन्हें हटाना आवश्यक हो जाता है। ऐसे में इन खरपतवारों को हाथ अथवा खुरपी की सहायता से निकालना श्रेयकर रहता है।
  • गेहूँ की फसल को पाले से बचाने के लिए फसल की हल्की सिंचाई स्प्रिंकलर विधि से करनी चाहिए और थायो यूरिया की 500 मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए अथवा घुलनशील सल्फर पाउडर का 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • गेहूँ की फसल में दीमक की रोकथाम के लिए गेहूँ के बीज का क्लोरोपायरीफॉस 0.9 ग्राम सक्रिय तत्व या थाईमेथोक्साम 70 डब्ल्यू. पी. (क्रुसेर 70 डब्ल्यू.पी.) का 0.7 ग्राम सक्रिय तत्व या फीपरोनील (रेजेंट 5 एफ.एस.) का 3 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधन करना चाहिए।
  • खड़ी फसल में क्लोरोपायरीफॉस की 3 तीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 50 कि.ग्रा. बालू अथवा बारीक मिट्ठी को 2-3 लीटर पानी में घोलकर दीमक से प्रभावित खेत में प्रयोग करने के जुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि आपकी पिछली फसल में भी दीमक का प्रकोप रहा है तो खेत की अन्तिम जुताई के समय कोई भी अच्छा कीटनाशी पाउडर 20 से 25 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करने से लाभ प्राप्त होता है।

सैनिक कीट (आर्मी वर्म):

                                                          

इस कीट के लार्वा (सून्डी) भूमि की सतह से पौधों के तनों को काटता है। आमतौर पर यह दिन में छिप हुआ रहता है और रात होने पर बाहर निकलते हैं और गेहूँ के पौधों की जड़ों को काटते हैं। इस कीट की रोकथाम करने के लिए 1.5 प्रतिशत क्विनॉलॅॉस 375 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर सुबह अथवा शाम के समय प्रयोग करना चाहिए।

गेहूँ की फसल में माहू कीट का प्रकोप फसल के ऊपरी भाग (तने एवं पत्तियों) पर हो जाने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मि.ग्रा. का पानी के साथ घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से इसका छिड़काव करना चाहिए।

जड़ माहू (रूट एफिड) गेहूँ के पौधों की जड़ों से रस को चूसकर उसके पौधों को सुखा देते हैं। अतः जड़ माहू कीट के नियंत्रण के लिए गाऊचे नामक रसायन 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करने से लाभ होता है। अन्यथा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 250 मि.ली. अथवा थाइमेथोक्स 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300 से 400 लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव करना चाहिए।

गेरूआ रोगः शरबती-चन्दौसी गेहूँ के साथ मालवी गेहूँ की खेती करने से गेरूआ रोग की सम्भावना कम हो जाती हैं और इसके साथ ही रोगरोधी नई प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए। रोग का प्रकोप अधिक होने पर प्रोपीकोनाजोल (0.1 प्रतिशत) 1 मि.ली. या टेबुकोनाजोल (0.1 प्रतिशत) 1 मि.ली. दवाई का छिड़काव करना उचित रहता है।

गेहूँ के खेत में चूहों का नियंत्रण करने हेतु 3 से 4 ग्राम जिंक फॉस्फाईड को एक कि.ग्रा. आटा, थोड़ा सा तेल एवं गुड़ मिलाकर इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर चूहों के बिल का पास रख देनी चाहिए। पूर्व में 2 से 3 दिन तक दवा को आटा, गुड़ एवं तेल मिलाकर इसकी गोलियां बनाकर चूहों के बिल में डाल देनी चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।