
दलहन-तिलहन की खेती को बढ़ावा दिया ही जाना चाहिए Publish Date : 03/02/2025
दलहन-तिलहन की खेती को बढ़ावा दिया ही जाना चाहिए
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
“उर्वरकों के अत्याधिक एवं अविवेकपूर्ण उपयोग को रोकने और अधिक जल खपत वाली फसलों की खेती को सीमित किया जाए”
आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में भारत के कृषि क्षेत्र में नीतिगत सुधार करने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही दलहन एवं तिलहन की खेती को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ परंपरागत फसलों की उत्पादकता में वृद्वि करने और ऐसी फसलों की खेती करने पर विशेष बल दिया गया, जिनकी बहुत कमी हैं।
रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि दुनिया के अन्न उत्पादक देशों में भारत का एक प्रमुख स्थान है और भारत कुल वैश्विक उत्पादन में 11.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है, परन्तु उत्पादकता के मामले में हम कई देशों से बहुत पीछे हैं। वर्ष 2012-13 से 2021-22 के दौरान उत्पादन में मात्र 2.1 प्रतिशत की वृद्वि ही हो पाई है और वह भी फलों एवं सब्जियों के उत्पादन के फलस्वरूप।
चूँकि भारत के पास कृषि योग्य भूमि सीमित ही उपलब्ध है, ऐसे में विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें फसल विविधिकरण की ओर रूख करना होगा। चावल-गेहूँ जैसी फसलों को सीमित कर हमें ऐसी फसलों पर फोकस करना चाहिए जिनके आयात पर हजारों करोड़ रूपयों का व्यय करना पड़ता है।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत के पास कृषि के क्षेत्र में अभी भी अपार क्षमता उपलब्ध है, परन्तु तीन प्रकार के बदलावों पर विचार करना बहुत आवश्यक है। मूल्यों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए बाजार के तंत्र को तैयार किया जाना चाहिए। इसके सम्बन्घ में उर्वरकों के अत्याधिक उपयोग को रोकने के साथ ही ऐसी फसलों पर फोकस करना होगा, जो कि कम पानी और बिजली की खपत को कम करती हों। इस प्रकार के बदलाव करने से भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी को अधिकतम करने में सहायता प्राप्त होगी।
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में दलहन और तिलहन के उत्पादन में लगातार आती कमी पर भी चिंता व्यक्त की गई है, क्योंकि हाल के वर्षों में तमाम प्रयासों के उपरांत भी तिलहन की खेती में मात्र 1.9 प्रतिशत की वृद्वि ही हो पाई है। ऐसे में घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आयात पर ही निर्भर है। इन फसलों की उपज के बढ़ाने के लिए परती वाले क्षेत्रों में दलहनी फसलों को उगाने और जलवायु के अनुकूल फसलों की खेती प्रणाली को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए।
तिल की खेती
- 11.6 प्रतिशत है, कुल वैश्विक उत्पादन में भारत की भागीदारी।
- वर्ष 2023-24 के अनुसार, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी 64.4 प्रतिशत तक की हो चुकी थी।
रोजगार प्रदान करने में कृषि क्षेत्र का दबदबा कायम
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, रोजगार प्रदान करने में कृषि क्षेत्र का दबदबा अभी भी कायम है। पिछले 6 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में 2 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है। वर्ष 2017-18 में रोजगार के क्षेत्र में कृषि क्षेत्र की भागीदारी 44.1 प्रतिशत रही, जो कि वर्ष 2023-24 के दौरान बढ़कर 46.1 प्रतिशत हो गई थी। जबकि वर्ष 2022-23 में यह प्रतिशत 45.8 रहा था।
हालांकि, इसका दूसरा पक्ष यह भी रहा कि तमाम प्रयासों के उपरांत भी कृषि क्षेत्र के रोजगारों को किसी अन्य क्षेत्र में स्थानांतरित नही किया जा सका। पिछले वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में स्पष्ट किया गया था कि बढ़ती जनसंख्या को उत्पादक बनाए रखने के लिए वर्ष 2030 तक औसतन प्रत्येक वर्ष 78.5 लाख नौकरियां गैर कृषि क्षेत्रों में सृजित करनी होंगी।
कृषि क्षेत्र की एक सकारात्मकता यह भी रही कि इस क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी पिछले 6 वर्षों के दौरान 7.5 प्रतिशत तक बढ़ी है। वर्ष 2017-18 में महिलाओं की भागीदारी 57 प्रतिशत थी, जो कि वर्ष 2023-24 में बढ़कर 64.4 प्रतिशत हो गई। हालांकि पुरूषों के मामले में यह आंकड़ा कुछ निराश करने वाला है, क्योंकि इसी समय में भारतीय कृषि क्षेत्र में पुरूषों की भागीदारी 40.2 प्रतिशत से कम होकर 36.3 प्रतिशत के स्तर पर आ गई।
एक दशक में कृषि क्षेत्र की आय में 5.23 प्रतिशत तक की वृद्वि
आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, एक दशक में कृषि क्षेत्र की आय में 5.23 प्रतिशत की वार्षिक वृद्वि दर्ज की गई है। इस दौरान गैर-कृषि आय में 6.24 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है। बागवानी, पशुधन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में विकास तेज रहा। वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक के दशक में मछली पालन के क्षेत्र में औसतन 13.67 और मवेशी के क्षेत्र में 12.99 प्रतिशत की दर से वृद्वि हुई है।
गत वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में कृषि क्षेत्र में कोई वृद्वि नही हो पाई, परन्तु इसकी दूसरी तिमाही में खरीफ उत्पादन में तेजी और पर्याप्त मानसूनी वर्षा के चलते 3.5 प्रतिशत की वृद्वि हुई जो कि पिछली चार तिमाहियों से अधिक है। गत वर्ष खरीफ के उत्पादन 1647.05 लाख टन के हुआ जो कि वर्ष 2023-24 की तुलना में 5.7 प्रतिशत अधिक रहा। पिछले पांच वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में यह 8.2 प्रतिशत अधिक है। ऐसा चावल, मक्का और श्रीअन्न के उत्पादन में तीव्र वृद्वि के चलते हो पाया है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।