गेहूँ की फसल में गाभा की अवस्था आने के बाद      Publish Date : 02/02/2025

                           गेहूँ की फसल में गाभा की अवस्था आने के बाद

                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

गेहूँ की फसल की देखभाल का सबसे महतवपूर्ण समय इसकी 70 दिन की उम्र को पार कर लेने के बाद का होता है। इस समय आपका गेहूँ गाभा की अवस्था में पहुँच चुका होता है और इसमें बालियां निकलनी शुरू हो जाती हैं, इसलिए यही वह महत्वपूर्ण समय होता है कि जब गेहूँ का उत्पादन तय होता है। इस अवस्था के दौरान गेहूँ की फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करना भी आवश्यक होता है, जैसे कि गेहूँ के पौधों का रंग, उसकी पत्तियों की स्थिति और जड़ों की मजबूती आदि का निरीक्षण करना आवश्यक है।

हालांकि, गेहूँ की फसल की उत्तम गुणवत्ता और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के उसकी प्रत्येक चरण में उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। परन्तु गेहूँ की फसल की 55 से 75 दिन की अवस्था पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इस पर गेहूँ की फसल को उचित पोषण प्रदान करना और पी.जी.आर यानी प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर का उपयोग करना बहुत ही आवश्यक होता है। यह उपाय गेहूँ की फसल को गिरने से बचाते है, बालियों की लम्बाई को बढ़ाते हैं और बालियों में दानों का भराव भी अच्छे से करते हैं।

गेहूँ की फसल में खाद एवं माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का महत्व

                                                                

गेहूँ की फसल की बुआई करते समय किसान भाई उसमें डीएपी, यूरिया और पोटाश के जैसे पोषक तत्वों का उपयोग करते हैं। इसके साथ पहली और दूसरी सिंचाई के समय भी समुचित खाद का उपयोग करते हैं। हलांकि, सत्यता तो यह है कि गेहूँ की फसल  में 50-55 के बाद नीचे से खाद डालने से इसका प्रभाव कम हो जाता है, क्योंकि ठंड़ के चलते पौधों की जड़े पोषक तत्वों का अवशोषण धीमी गति से कर पाती हैं। अतः इस स्थिति में फसल की ऊपर से फोलियर स्प्रे के माध्यम से आवश्यक पोषक तत्वों का देना एक प्रभावी उपाय है। फोलियर स्प्रे में वॉटर सोल्यूबल फर्टिलाइजर अथवा माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का उपयोग करना उचित होता है। यह न केवल पौधों को तत्काल पाषण प्रदान करता है, अपितु गेहूँ में पीलापन और इसकी अन्य समस्याओं को भी दूर करता है।

किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि वह चल रहे मौसम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही गेहूँ में सिंचाई और स्प्रे का प्रबन्धन करें। यदि आपके खेत में नमी होने के उपरांत भी गेहूँ की फसल पीली पड़ रही है तो यह फंगल संक्रमण का खतरा भी हो सकता है। यदि गेहूँ की पत्तियां पीली हैं, तो यह आरन, जिंक अथवा मैग्नीज के जैसे पोषक तत्वों का छिड़काव करने से यह समस्या दूर हो जाती है। एनपीके फर्टिलाइजर 19:19:19 अथवा 20:20:20 के अनुपात में फोलियर स्प्रे करना उपयोगी रहता है। ऐसे में जो किसान गेहूँ की जैविक खेती कर रहे हैं तो उन्हें नीम का तेल या जैविक मल्टी न्यूट्रिंट्स का उपयोग करना चाहिए।

गेहूँ में पीजीआर का महत्व

फसल की 55 से 65 दिन की अवस्था पर गेहूँ में पहली गांठ (नोड) बनती है, यह समय पौधों की तेज वृद्वि और उसकी ऊँचाई के बढ़ने का समय होता है। गेहूँ की अवस्था में पीजीआर अर्थात प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स का प्रयोग करना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए पीजीआर की 200 मिली मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड की दर से स्प्रे करना उचित रहता है। इस स्प्रे से पौधों की इंटरनोड्स की आपसी दूरी कम होती है और गेहूँ के पौधे का तना मोटा और मजबूत बनता है। ऐसे में यदि पीजीआर का उपयोग नही किया जाता है तो इंटरनोड्स की आपसी दूरी अधिक बनी रहती है, जिससे पौधा कमजोर होकर गिर भी सकता है।   

गेहूँ में पोटाश और फॉस्फोरस का महत्व

                                                              

गेहूँ की बालियों में दानों के बेहतर भराव और उनकी लम्बाई को बढ़ाने के लिए फसल में पोटाश और फॉस्फोरस का संतुलित उपयोग करना बहुत आवश्यक होता है। गेहूँ की फसल को उसके प्रारम्भिक अवस्था में डीएपी के रूप में फॉस्फोरस दिया जाता है, परन्तु फसल की 60 से 70 दिन की अवस्था हो जाने के बाद इसका प्रभाव शून्य हो जाता है। अतः इस समय में दानों के भराव और पौधों की ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति करने एनपीके ग्रेड 0ः52ः34 का उपयोग करना उचित रहता है। इसके लिए एक कि.ग्रा. एनपीके का 120-140 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से पौधों को आवश्यक फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूर्ति होती है।

बोरॉन और अन्य माइक्रोन्यूट्रीएंट्स का प्रयोग

गेहूँ में बालियों के बनने और दानों के भराव में बोरान सूक्ष्म तत्व का बहुत महत्व होता है। इसका प्रयोग करने से गेहूँ की परागण (पॉलीनेशन) क्रिया को बेहतर बनाता है और इससे दानों का आकार और गुणवता बेहतर होती है। इसके लिए 100 ग्राम बोरॉन को 100 से 125 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना उचित रहता है। इसके अतिरिक्त यदि फसल में पीलापन अथवा कमजोरी दिखाई देती है तो वॉटर सोल्यूबल माइक्रो-न्यूट्रीएंट्स का छिड़काव करना चाहिए।

फसल का गिरने बचाव करने के उपाय

किसानों को अपनी गेहूँ की फसल को गिरने से बचाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय करने चाहिए। इस प्रक्रिया के तहत सबसे पहले पीजीआर का उचित समय पर छिड़काव करने से पौधों की लम्बाई नियंत्रित होकर गेहूँ के पौधों के तनों को सुदृढ़ता प्राप्त होती है और फसल के गिरने की सम्भावना कम हो जाती है। इसके साथ ही फॉस्फोरस का संतुलित उपायोग करना पौधों को बेहतर पोषण प्रदान करता है। इसके साथ ही मौसम का ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक होता है। यदि मौसम में अधिक नमी है तो किसानों को गेहूँ की सिंचाई करने से बचना चाहिए, क्योंकि मृदा में अधिक मात्रा में नमी उपलब्ध होने से फसल में फंगस जनित रोगों का खतरा भी बढ़ सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।