गेहूं की फसल में पिंक बोरर से बचाव कैसे करें किसान      Publish Date : 29/01/2025

            गेहूं की फसल में पिंक बोरर से बचाव कैसे करें किसान

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

गेहूं की फसल में गुलाबी तना छेदक का नियंत्रणः गुलाबी तना छेदक (पिंक बोरर) गेहूं की फसल के लिए एक खतरनाक कीट है, जो पौधों के तनों में घुसकर ऊतकों को खा जाता है और पौधों को कमजोर कर देता है। यह समस्या खासतौर पर उन क्षेत्रों में अधिक देखी जाती है, जहां धान, मक्का, गन्ना और कपास की खेती अधिक प्रचलित है। गुलाबी तना छेदक का प्रकोप फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है और उपज में भारी गिरावट ला सकता है।

इसी समस्या का समाधान करने के लिए आईसीएआर-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) ने वैज्ञानिक और व्यावहारिक सुझाव दिए हैं। फसल की नियमित निगरानी, संक्रमित पौधों का समय पर नष्ट करना और कीटनाशकों का सही उपयोग, इन उपायों से किसान अपनी फसल को गुलाबी तना छेदक के प्रकोप से बचा सकते हैं। आईसीएआर के द्वारा दिए गए टिप्स गेहूँ की फसल को स्वस्थ और उपजाऊ बनाए रखने में किसानों के लिए मददगार साबित होंगे।

गुलाबी तना छेदक का प्रबंधन

                                                            

गुलाबी तना छेदक (कैटरपिलर) विशेष रूप से धान, मक्का, कपास और गन्ना उगाने वाले क्षेत्रों में गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह कीट पौधों के तने में घुसकर उसके ऊतकों को खा जाता है, जिससे पौधे पीले पड़ जाते हैं और यह आसानी से उखाड़े जा सकते हैं। जब प्रभावित पौधे उखाड़े जाते हैं, तो उनकी निचली नसों पर गुलाबी रंग के कैटरपिलर दिखाई देते हैं।

इस समस्या से बचने के लिए नियमित फसल निरीक्षण करना अनिवार्य है। संक्रमित पौधों को हाथ से उखाड़कर नष्ट करना सबसे पहला कदम है। इसके अतिरिक्त, कीट के प्रकोप को रोकने के लिए विभाजित खुराक में नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग करें। इस तरह की सावधानियां और उपाय अपनाकर किसान गुलाबी तना छेदक के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।

गेहूँ में कीट प्रबंधन

                                                           

गुलाबी छेदक, दीमक और बोरर जैसे कीट फसल को नुकसान पहुंचाने के प्रमुख कारक हैं। गेहूं की फसल को कीट संक्रमण से बचाने के लिए प्रभावी उपायों का पालन करना बेहद आवश्यक है। संक्रमण रोकने के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों का विभाजित खुराक में उपयोग करने की सलाह दी जाती है। यह विधि पौधों को पोषण देते हुए कीट प्रकोप की संभावना को कम करती है।

यदि फसल में संक्रमित टिलर पाए जाते हैं, तो उन्हें तुरंत हाथ से उठाकर नष्ट कर देना चाहिए। यह तरीका बोरर के हमले को प्रभावी रूप से रोकने में सहायक होता है।

संक्रमण के अधिक होने की स्थिति में क्विनलफॉस 25 प्रतिशत ईसी का उपयोग करें। इसे 1000 मिलीलीटर की मात्रा में 500 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यह उपाय फसल को कीटों से सुरक्षित रखता है।

गेहूं की फसल में पिंक बोरर से बचावः पिंक बोरर (गुलाबी कीट) गेहूं की फसल को क्षति की हद तक प्रभावित कर सकता है, विशेषरूप से ऐसे क्षेत्रों में जहां धान, मक्का, कपास, और गन्ना आदि फसलों को उगाया जाता हैं। इसका प्रभाव कम करने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं।

पेस्ट नियंत्रण के उपायः

  • नाइट्रोजन उर्वरकों का विभाजन करके उपयोग करें।
  • संक्रमित तनों को हाथ से निकालकर नष्ट करें।
  • अधिक संक्रमण होने पर 1000 मिली क्विनाल्फोस 25ःम्ब् को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

दीमक का नियंत्रण

                                                               

दीमक प्रभावित क्षेत्रों में फसल की सुरक्षा के लिए बीज उपचार सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। इसके लिए गेहूँ बीजों को क्लोरोपायरीफॉस (0.9 ग्राम ए.आई.) से उपचारित करें। इसके लिए 4.5 मिलीलीटर उत्पाद मात्रा प्रति किलोग्राम बीज का उपयोग करें।

इसके अलावा, थियामेथोक्साम 70 डब्ल्यूएस (कूजर 70 डब्ल्यूजी) को 0.7 ग्राम ए.आई./किलोग्राम बीज (4.5 मिलीलीटर उत्पाद मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) या फिप्रोनिल (रीजेंट 5 एफएस) को 0.3 ग्राम ए.आई./किलोग्राम बीज (4.5 मिलीलीटर उत्पाद मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करना भी बेहद प्रभावी रहता है।

इन उपायों को अपनाकर किसान अपनी फसल को दीमक और अन्य कीटों से बचा सकते हैं और उपज में सुधार कर सकते हैं। फसल की नियमित निगरानी और सावधानीपूर्वक कीट प्रबंधन पद्धतियां अपनाने से खेती अधिक लाभदायक और सुरक्षित बनती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।