गेहूँ में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें      Publish Date : 27/01/2025

                          गेहूँ में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

खरपतवार, वह पौधे होते हैं जो खेत में बिना बुवाई करे ही उग आते है और यह पौधें बोई गई फसलों को विभिन्न प्रकार से हानि पहुँचाते हैं। हालांकि, मुख्य रूप से खरपतवार फसलीय पौधों के साथ पोषक तत्व, नमी, स्थान और प्रकाश आदि को लेकर प्रतिस्पर्धा करते हैं और इससे फसल के उत्पादन में कमी आ जाती है। इसके अलावा कुछ खरपतवार ऐसे भी होते हैं, जिनकी पत्तियों और जड़ों से मृदा में हानिकारक पदार्थ निकलते हैं, जिससे फसलीय पौधों की वृद्वि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

                                                                     

इन खरपतवार के पौधों में विशेष रूप से गाजर घास (पार्थेनियम) और धतूरा आदि तो न केवल कृषि उत्पादों की गुणवत्ता को कम करते हैं, बल्कि मानव एवं पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होते हैं। अतः इन खरपतवारों की उचित समय पर ही रोकथाम अथवा नियंत्रण करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है।

एक अनुमान के अनुसार, खरपतवार, फसलों को प्राप्त होने वाली 47 प्रतिशत नाइट्रोजन, 42 प्रतिशत फॉस्फोरस, 50 प्रतिशत पोटाश, 24 प्रतिशत मैग्नीशियम और 39 प्रतिशत कैल्शियम का उपयोग कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों के लिए हानिकारक कीटों तथा रोगों आदि को भी आश्रय प्रदान कर फसलों को क्षति पहुँचाते हैं।

                                                           

हालांकि, खरपतवार का नियंत्रण करना भी एक कठिन समस्या होती है, परन्तु हाल ही में किए गए कुछ अनुसंधानों के माध्यम से यह सिद्व हो चुका है अब पहले की अपेक्षा खरपतवार का नियंत्रण आसानी और प्रभावी तरीके से किया जा सकता है।

खरपतवार

शाकनाशी रसायन

मात्रा ग्राम/हैक्टर

प्रयोग करने का समय

संकरी पत्ती वाली घास के लिए

पेन्डीमिथालीन

(स्टाम्प 30ई.सी.)

1000-1500

(3333-4950)

बुवाई के 1 से 3 दिनों के अंदर

आईसोप्रोटायूरॉन

(एरिलान 75 डब्ल्यू.पी.)

 

1000

(1333)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रतिशत + मेटसल्फ्यूरॉन 5 प्रतिशत (टोटल 80 (75 + 5) डब्ल्यू.डी.जी.)

30 + 2

(40)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

क्लॉडिनोफॉप

(टोपिक 15 डब्ल्यू.पी.)

60 (400)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

फीनाक्सीप्रॉप-ईथाइल (प्यूमा सुपर 10 ई.सी.)

100 – 120

(1000 - 1200)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

पीनाक्साडेन

(एक्सिल 5 ई.सी.)

35 – 40

(700 - 800)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

सल्फोसल्फ्यूरॉन

(लीडर 75 डब्ल्यू.जी.)

25

(33.3)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

चौड़ी पत्ती वाली घास के लिए

2, 4-डी,-ई

(बीड वार 38 ई.सी.)

500

(1315)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

मेटसल्फ्यूरॉन (अलग्रिप 20 डब्ल्यू.पी.)

4 (20)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

कारफेनटाजोन

(अफीनीटी 50 डब्ल्यू.डी.जी.)

20 (50)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाली घास के लिए

आइसोप्रोट्यूरान (एरिलान 75 डब्ल्यू.पी. + 2,4-डी,-ई)

750 + 500

(1000 - 1315)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

मीसोसल्फ्यूरॉन + आयोडोस लफ्येरॉन एैटलेंनटीस 3.6 (30 + 0.6 डब्ल्यू.डी.जी.)

12 + 2.2

(400)

बुवाई करने के 30 से 35 दिनों के बाद

हालांकि, तापमान के कम रहने के कारण रोगों का खतरा भी कम रहता है परन्तु फसल में फफूंद जनित रोगों के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपिकोनाजोल का 0.1 प्रतिशत अथवा मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव कर देना चाहिए। गेहूँ की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फॉस्फाइड अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया से बने चारे का प्रयोग किया जा सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।