लहसुन की खेती      Publish Date : 27/01/2025

                                    लहसुन की खेती

                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

लहसुन की खेती किसानों के लिए अधिक उत्पादन के साथ ही अधिक लाभ प्रदान करने वाली खेती होती है, हालांकि लहसुन की खेती से अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए फसल की सही तरीके से देखभाल और सही समय पर कुछ उचित कदम भी उठाना बहुत आवश्यक होता है। लहसुन की फसल से उत्तम उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसल के शुरूआती चरण से लेकर इसके अन्ति चरण तक काफी सावधानी के साथ फसल की देखभाज करना बहुत आवश्यक है।

                                                                    

वर्तमान में लहसुन की फसल 80 से 100 दिनों के बीच की अवस्था प्राप्त कर चुकी है, इसके साथ ही फसल के 90 दिन की हो जाने बाद इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना भी अति आवश्यक होता है। इस समय की गई कुछ गलतियां फसल की सेहत और उत्पादन दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं।

लहसुन की फसल अच्छी तरह से विकसित और अधिक उत्पादन दे सके इसके सम्बन्ध में कुछ तथ्यों का ध्यान रखना जरूरी होता है। हमारी आज की इस पोस्ट में लहसुन की खेती के बारे में कुछ सुझाव दिये जा रहे है, किसानों से अपील है कि वह हमारी इस पोस्ट को ध्यान से पड़कर लाभ उठाएं-

लहसुन में प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स का उपयोग

                                                                      

लहसुन की फसल के 90 दिन की हो जाने के उपरांत, किसान भाई जो सबसे बड़ी गलती करते हैं, वह है प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर ;च्ळत्द्ध का उपयोग। असल में यह एक प्रकार का रसायन होता है, जिसका उपयोग पौधों की बढ़ोत्तरी को नियंत्रित किया जाता है। जबकि लहसुन की फसल के 90 दिन की हो जाने के बाद इसका प्रयोग करना फसल के लिए हानिकारक भी हो सकता है।

इस रासयन का प्रयसोग करने के बाद लहसुन के कंद की तो बढ़ोत्तरी हो सकती है, परन्तु पौधें की अन्य जरूरी विकास की प्रक्रिया बंद हो सकती है और इससे फसल का सामान्य विकास भी प्रभावित हो सकता है। अतः किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि पीजीआर का प्रयोग आपको फसल के हार्वेस्ट से लगभग 20 से 25 पूर्व ही करना चाहिए क्योंकि इसके स्प्रे के लिए यही समय सबसे उचित रहता है।

ग्रोथ प्रमोटर खाद का उपयोग

जब लहसुन की फसल 90 दिन की अवस्था में पहुँच जाती है तो इस दौरान महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस समय किसानों को ग्रोथ प्रमोटर खाद का प्रयोग बिलकुल भी नही करना चाहिए। हालांकि, कई किसान यह गलती कर देते हैं। इस समय प्रयोग किया गया ग्रोथ प्रमोटर लहसुन के पौधों की पत्तियों में अतिरिक्त नाइट्रोजन की आपर्ति होती है जो कि इसके कंद के विकास में कोई लाभ नही देती है।

लहसुन में सिंचाई का उचित तरीका

लहसुन की फसल में सिंचाई एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, परन्तु फसल के 80 से 100 दिनों के बीच की अवस्था में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना होता है। इस समय तक लहसुन के पौधों में लगभग 70 प्रतिशत तक कंद विकसित हो चुके होते हैं। इस पानी की कम या अधिक मात्रा फसल पर नकारात्मक प्रभाव डाल ससकती है। फसल में कम पानी के चलते इसके कंद का बाहरी आवरण खराब हो सकता है तो अधिक पानी के कारण कंद का जीवनकाल भी कम हो सकता है और इससे फसल की गुणवत्ता कुप्रभावित हो सकती है।

एनपीके 00:00:50 और बोरॉन का स्प्रे

                                                                 

ल्हसुन की फसल की 90 दिन की अवस्था पर फसल में आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करना भी बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि यह समय लहसुन की फसल में इसके कंद में बढ़ोत्तरी का समय होता है, आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति से लहसुन के कंद का आकार और उसकी गुणवत्ता अच्छी बनी रहती है। इसके लिण् थ्कसान भाईयों को एनपीके 00:00:50 और बोरॉन का स्प्रे करना चाहिए। इस स्प्रे से आलू के कंद का आकार बढ़ता है और उसकी गुणवत्ता में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त बोरॉन का स्प्रे लहसुन के कंद को फटने से भी बचाता है।

लहसुन में थ्रिप्स की समस्या

                                                              

लहसुन की फसल में थ्रिप्स एक सामान्य कीट की समस्या है, जो कि फसल के 80 से 100 दिन की अवस्था पूरी होने के बाद दिखाई देती है। यह कीट लहसुन के पौधे के पत्तियों एवं उसके तनों पर हमला करता है और पौधे की वृद्वि को बाधित कर देते हैं और इसका सीधा प्रभाव लहसुन की उत्पादकता और उसकी गुणवत्ता पर पड़ता है।

यदि इस समय आपको लहसुन की फसल में थ्रिप्स की समस्या दिखाई दे रही है तो आपको फसल पर डाइमिथेएट 30 ईसी की 1 मिली. दउवा प्रति लीटर पानी की दर से या फिर लैंब्डा साइहेलोथरिन 2.5 प्रतिशत 400 मिली. प्रति एकड़ की दर से कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।