पोषण से समृद्ध चौलाई का सफल उत्पादन      Publish Date : 16/01/2025

                     पोषण से समृद्ध चौलाई का सफल उत्पादन

                                                                                                                                     प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

चौलाई, एक छद्म अनाज की श्रेणी में रखे जाने वाला अनाज है। यह ‘राजा बीज’ के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य अनाज की फसलों की तुलना में यह जल्दी पकने वाली वर्ष में लगभग 2-3 बार खरीपफ/रबी और कुछ जायद में उगाई जाने वाली एक फसल है। यह मृदा की अम्लता और लवणता को भी सहन करने की क्षमता रखती है। इसके साथ ही फसल में पाया जाने वाला सी-4 मैटाबॉलिक पाथ और कम लागत तथा कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रों की विस्तृत श्रंखला इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में सहायक है।

                                                                    

इसके साथ ही यह फसल उन 109 विशेष फसलों में अपना स्थान बना चुकी है, जो उच्च उपज देने के साथ-साथ जलवायु अनुकूल भी है। इस फसल ने दुनियाभर के लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। इसमें मानव विकास के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। पोषण गुणवत्ता के कारण खाद्य सुरक्षा पफसल में इसे शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा यह फसल बढ़ते हुए कुपोषण को कम करने तथा ग्रामीण समुदायों के लिए आय का अतिरिक्त स्रोत बन सकती है।

चौलाई तथा अनाज चौलाई पौष्टिकता की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण फसल है। चौलाई की खेती पत्तों के लिए तथा अनाज चौलाई की खेती राजगीरा दाना प्राप्त करने के लिए की जाती है। इसको कम उत्पादन लागत और अधिक उपज की दृष्टि से रबी के मौसम में बरसीम के साथ तथा लहसुन के खेतों में मेड़ों पर अतिरिक्त उपज की दृष्टि से भी लगाया जा सकता है।

                                                             

बरसीम की पहली कटाई के उपरांत इस फसल को बढ़ने के लिए पर्याप्त सुविधा उपलब्ध रहती है। लहसुन के खेतों में मेड़ों पर इसकी खेती करके राजगीरा से अतिरिक्त आमदनी किसानों को मिल सकती है। फसल को 2-3 सिंचाई देकर भी आसानी से उगाया जा सकता है। इस फसल में गर्मी, सूखा, रोगों तथा कीटों से प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। इसके साथ ही पुष्पक्रमों की अधिकता के कारण खेतों पर मधुमक्खियों की बढ़वार रहती है, जो शहद के उत्पादन में बढ़ोतरी का एक प्राकृतिक साधन बन सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।