गन्ने की फसल को बचाएं रोगों से      Publish Date : 06/01/2025

                           गन्ने की फसल को बचाएं रोगों से

                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

गन्ने की फसल एक लम्बी अवधि वाली फसल है और इसी कारण इस फसल में रोगों के लगने की समावनाएं भी निरंतर बनी रहती हैं। हालांकि गन्ने की फसल में लगने वाले यह रोग आपके क्षेत्र के अनुार अलग-अलग भी हो सकते हैं। अतः समय रहते गन्ने के इन रोगों का निदान करना भी आवश्यक है, इसके उपरांत ही आप गन्ने की उच्च पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। हमारे आज के इस लेख में गन्ने के रोगों एवं उनके निदान की जानकारी प्रदान की जा रही है।

लाल सड़न रोग और उसकी पहचान

                                                         

गन्ने में लाल सड़न रोग एक फफूंद जनित रोग होता है। इस रोग के लक्षण अप्रैल के माह से जून के महीने तक गन्ने की पत्तियों के निचले भाग (लीफ शीथ के पास) से ऊपर की और मध्य सिरे पर लाल रंग के धब्बे मोती की माला के जैसे दिखाई देते हैं।

जुलाई-अगस्त के महीने में रोग से ग्रसित गन्न के अगोले की तीसरी और चौथी पत्ती के एक अथवा दोनों किनारे ही सूखना शुरू हो जाते हैं और इसके फलस्वरूप धीरे धीरे पूरा अगोला ही सूख जाता है।

कभी कभी गन्ने के तने का रंग लाल होने के साथ-साथ उस पर सफेद रंग के धब्बे भी दिखाई देने लगते हैं। तने को अंदर से सूंघने पर उसमें से सिरके अथवा अल्कोहल के जैसी गंध भी आने लगती है।

रोग का प्रबन्धन

इस रोग से बचाव के लिए किसान भाई हमेशा गन्ने की रोगीरोधी किस्मों की बुवाई को प्राथमिकता प्रदान करें।

लाल सड़न रोग से अधिकता से प्रभावित क्षेत्रों में को. 0238 किस्म की बुवाई करने से बचना चाहिए। गन्ने की इस किस्म के स्थान पर अन्य स्वीकृत गन्ना किस्म की रोगरहित नर्सरी को तैयार कर खेत की बुवाई करें।

बुवाई करने से पूर्व कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेडाजिम 50 डब्ल्यूपी या थियोफनेट 70 डटलयूपी के साथ रोगोपचार आवश्यक रूप से करना चाहिए।

इसके साथ मृदा का जैविक शोधन मुख्य रूप से ट्राईकोडर्मा अथवा स्यूडोमोनास कल्चर से 10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 100-200 कि.ग्रा. कंपोस्ट खाद में 20-25 प्रतिशत नमी के साथ मिलाकर करना उचित रहता है।

अप्रैल के माह से लेकर जून के माह तक किसान अपने खेत का निरीक्षण समय समय पर करते रहें। रोगग्रस्त पौधों की पहचान कर उन्हें जड़ सहित उखाड़कर नष्ट कर दें और इस प्रकार से बन्ने गड्ढ़ें में 10 से 20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डाल कर उसे मिट्टी की सहायता से ढक दें अथवा 0.2 प्रतिशत थियोफनेट मिथाइल के घोल की ड्रेचिंग करनी चाहिए।

रोग के दिखाई देने पर उपरोक्त प्रक्रिया को जुलाई और अगस्त के महीने में भी जारी रखें।

  • अप्रैल से जून माह तक 0.1 प्रतिशत थियोफनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी अथवा कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए।
  • अधिक वर्षा के होने पर लाल सड़न रोग से ग्रस्त खेत का पानी का रिसाव किसी दूसरे खेत न होने दें।
  • लाल सड़न रोग से प्रभावित क्षेत्रों में 10 प्रतिशत से अधिक वाले रोगग्रस्त खेत से पेड़ी की फसल लेने से बचें।
  • लाल सड़न रोग से ग्रस्त खेत में किसी भी रोगरोधी गन्ने की किस्म की बुवाई कम से कम एक वर्ष तक न करें।

सवंमित गन्ने की कटाई करने के बाद उसके अवशेषों को खेत से पूरी तरह से बाहर कर नष्ट कर देना चाहिए तथा साथ ही गहरी जुताई कर उचित फसलचक्र को अपनाएं।

पोक्का बोइंग रोग और उसकी पहचान

                                                           

  • गन्ने की फसल का यह रोग भी फफूंद जनित रोग है।
  • इस रोग के लक्षण गन्ने की फसल पर स्पष्ट रूप से जुलाई से सितम्बर माह अर्थात वर्षाकाल तक ही कदखाई देते हैं।
  • पत्रफलक के समीप की पत्तियों के ऊपरी एवं निचले भागों पर सिकुड़न के साथ सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
  • इस रोग में चोटी की कोमल पत्तियां मुरझाकर काली सी हो जाती हैं और पत्ती का ऊपरी भाग सड़कर नीचे गिर जाता है।

ग्रसित अगोला में ठीक नीचे की पोरियों की संख्या बढ़कर पोरियां छोटी पड़ जाती हैं और इसके साथ ही पोरियों पर चाकू से कटने के जैसे निशान भी दिखाई देने लगते हैं।

रोग प्रबन्धन के उपाय

  • किसी भी फफूंद नाशक का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए।
  • इस रोग के लक्षण फसल पर दिखाई देते ही कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी का 0.1 फीसदी (400 ग्राम फफंदूीनाशक) का 400 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी के 0.2 फीसदी (800 ग्राम फफूंद नाशक) का 400 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

पत्ती की लालधारी और बैक्टीरियल टॉप रॉट रोग के लक्षण

                                                       

  • गन्ने के फफूंदजनित इस रोग का प्रभाव जून के माह से लेकर वर्षा ऋतु के अंत तक रहता है।
  • इस रोग में गन्ने की पत्ती के मध्यशिरा के समानांतर गहरे लाल रंग की जलीय धारियां दिखाई देती हैं।
  • इस रोग के संक्रमण से गन्ने के अगोले के बीच की पत्तियां सूखने लगती हैं और बाद में पूरा अगोला ही सूख जाता है।
  • पौधें की शिखर कलिका से तने का भीतरी भाग ऊपर से नीचे की और सड़ने लगता है।
  • गूदे के सड़ जाने से गन्ने में बहुत बदबू आती है और इसके साथ ही तरल पदार्थ सा प्रतीत होता है।

रोग प्रबन्धन के उपाय

  • यांत्रिक प्रबन्धन के तहत समस्त सवंमित पौधों को काटकर खेत से तुरंत ही बाहर कर देना चाहिए।

रोग के रासायनिक प्रबन्धन के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी का 0.2 फीसदी (800 ग्राम फफूंद नाशक) और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.01 फीसदी (40 ग्राम दवाई) का 400 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना उचित रहता है।

घासीय प्ररोह रोग की पहचान

                                                           

  • गन्ने में यह रोग फाइटोप्लाज्मा के द्वारा सवंमित होने पर होता है। इस रोग का प्रभाव वर्षा ऋतु में अधिक देखा जाता है।
  • इस रोग में रोगी पौधे की पत्तियों का रंग सफेद हो जाता है।
  • इस रोग में थानों की वृद्वि भी रूक जाती है, जिससे गन्ने के पौधे पतले और बौने रह जाते हैं और ब्यांत के बढ़ जाने से गन्ने का पूरा थान ही झाड़ीनुमा हो जाता है।

रोग प्रबन्धन के उपाय

  • इस रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़ कर खेत से दूर नष्ट कर देना चाहिए।
  • आर्द्र वायु उष्मोपचार शेधन तकनीकी के तहत बीज गन्ने को 54 डिग्री सेंटीग्रेड वायु के तापमान, 95-99 प्रतिशत की आर्द्रता पर 2.5 घंटे तक उपचारित करना चाहिए।
  • जल उष्मोपचार के माध्यम से बीज गन्ने को 52 डिग्री सेंटग्रेड तापमान पर 2 घंटे के लिए उपचारित करना चाहिए।

रोग की अधिकता की दशा में वाहक कीट के नियंत्रण हेतु कीटनाशक इमिडाक्लोप्रिड 17.8 मिली. की 200 मिली. दवा प्रति हेक्टेयर का 625 लीटर पानी में घोल बनाकर दिड़काव करना उचित रहता है।

कंडुआ रोग की पहचान

                                                              

  • यह रोग एक फफूंद जनित रोग होता है।
  • रोगी पौधों की पत्तियां छोटी, नुकीली और पंखे के आकार की हो जाती हैं और गन्ना लम्बा एवं पतला हो जाता है।
  • गन्ने के अगोले के ऊपरी भाग से काला कोड़ा निकलता है, जो एक सफेद और पतली झिल्ली के माध्यम से ढका हुआ रहता है।

रोग प्रबन्धन के उपाय

  • बुवाई से पूर्व गन्ने के टुकड़ों को प्रोपिकोनॉजोल 25 ईसी या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी के 0.1 फीसदी घोल में 5 से 10 मिनट तक उपचारित करने के बाद ही बुवाई करें।
  • रोग ग्रस्त पौधों में बन रहे काले कोड़ों को बोरों से ढंक कर खेत से बाहर निकाल कर खेत से दूर दनष्ट कर देना चाहिए।
  • प्रोपिकोनॉजोल 25 ईसी के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर दो बार करना चाहिए। 
  • आर्द्र वायु उष्मोपचार अथवा जल उष्मोपचार से शोधन करना उचित रहता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।