गेहूं की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व Publish Date : 31/12/2024
गेहूं की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
गेहूं की फसल में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग करना अति आवश्यक होता है। आमतौर पर किसान भाई उर्वरकों में मुख्य रूप से डी.ए.पी. और यूरिया का ही अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत ही कम प्रयोग करते हैं।
गेहूं में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म तत्वों की भी बहुत उपयोगिता है। यदि उर्वरकों की सही मात्रा, सही समय व सही ढंग से प्रयोग किया जाये तो इन सभी का गेहूं की वृद्धि तथा उसकी उपज पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर प्रति एकड़ 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस और 24 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
इसके लिये 50 किलोग्राम डी. ए. पी., 40 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश और 40 किलोग्राम यूरिया गेहूं की बुवाई के समय प्रति एकड़ ड्रिल करना चाहिए। नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा 65-70 किलोग्राम को गेहूं पहली सिचांई के समय ही खेत में दे देनी चाहिए।
यदि फास्फोरस की मात्रा सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में देनी हो तो प्रति एकड़ 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 40 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश और 125-130 किलोग्राम यूरिया की आवश्यकता होगी।
यदि खाद 12:32:16 के अनुपात में उपलब्ध हो तो गेहूं में प्रति एकड़ 75 किलो इफको 12:32:16, 100 किलोग्राम यूरिया व 15 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रयोग करना चाहिए। जिन खेतों में सल्फर की कमी होती है उनमें 100 किलोग्राम जिप्सम खेत को तैयार करते समय ही प्रयोग करना उचित रहता है।
यदि सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग किया गया हो तो सल्फर की कमी को पूरा करने के लिये जिप्सम के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि सिंगल सुपरफास्फेट में 12 प्रतिशत सल्फर की मात्रा पौधों को मिल जाती है।
गेहूं की अधिक पैदावार लेने के लिये उर्वरकों का प्रयोग सही व संतुलित मात्रा में होना बहुत आवश्यक होता है। गेहूं की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिये संतुलित उर्वरकों के साथ ही साथ जीवाणु खाद से बीज उपचार आवश्यक रूप से करना चाहिए। इसके लिये बीज को एजोटोबैक्टर तथा फास्फोरस टीका (पी.एस.बी.) के साथ मिलाकर ही इसकी बुवाई करें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।